शुक्रवार, 17 जनवरी 2020

A Kidney(in Ureter) stone 17.5 MM Size Removed in 15 days successfully

एक महिला पेशेंट जिसकी उम्र 25 yrs है। वह युरेटर की पथरी(Stone) से पीड़ित थी। उसके बहुत तेज दर्द था तथा पेशाब में खून(Blood) भी आ रहा था। पेशेंट की ट्रीटमेंट से पहले की रिपोर्ट निम्न है:-


फर्स्ट ट्रीटमेंट से ही लगभग 15 दिन में ही युरेटर की पथरी मुलायम होकर पेशाब के रास्ते बाहर निकल गई। जो निम्न है:-

मंगलवार, 31 दिसंबर 2019

पित्ते की पथरी 22 MM SIZE 2 महीने 10 दिन में घुलकर समाप्त हुई।

एक महिला पेशेंट जिसकी उम्र लगभग 30 yrs थी वह पित्त की थैली की पथरी (Gallstone) से पीड़ित थी जिसका साइज 22.0 MM था, उसको 70 डेज का ट्रीटमेंट दिया था। जिसकी treatment से पहले की रिपोर्ट निम्न है:-

बुधवार, 17 जुलाई 2019

ब्लड प्रेशर की जांच कराते वक्त नहीं करनी चाहिए ये 7 गलतियां ।

ब्लड प्रेशर की जांच कराते वक्त अक्सर लोग कई प्रकार की गलतियां करते हैं, जिनके बारे में वह अनजान होते हैं। अगर आप भी इन गलतियों के बारे में नहीं जानते तो हम आपको ब्लड प्रेशर के वक्त होनी  वाली सात गलतियों के बारे में बताने जा रहे हैं।

 

ब्लड प्रेशर जांचते वक्त बात करना

जब डॉक्टर आपका ब्लड प्रेशर जांच रहा होता है उस वक्त अगर आप बात करते रहेंगे तो आपका ब्लड प्रेशर सही से नहीं मापा जा सकेगा और वह ऊपर-नीचे हो सकता है, जिसके कारण आपको कई प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है जैसे की आपको गलत दवाईयां भी लिखी जा सकती है।

शनिवार, 1 जून 2019

एल्कलाइन भोजन

दोस्तों कई दिनों से हम सोच रहे थे हम आपको एक ऐसी चीज बताएं जिस से के आपके शरीर के सभी रोग स्वतः ही समाप्त हो जाए, जैसे डायबिटीज, कैंसर, हार्ट, ब्लड प्रेशर, जोड़ों का दर्द, UTI – पेशाब के रोग, Osteoporosis, सोरायसिस, यूरिक एसिड का बढ़ना, गठिया – Gout, थाइरोइड, गैस, बदहजमी, दस्त, हैजा, थकान, किडनी के रोग, पेशाब सम्बंधित रोग, पत्थरी और अन्य कई प्रकार के जटिल रोग. इन सबको सही करने का सबसे सही और सस्ता उपयोग है शरीर को एल्कलाइन कर लेना. किसी डॉक्टर ने इसके बारे में क्या खूब कहा है के –
“No Disease including cancer, can exist in an alkaline envioronment” Dr. Otto Warburg – Noble Prize Winner 1931
Ph level kya hai – पी एच लेवल क्या है?
इसको समझने के लिए सबसे पहले आपको PH को समझना होगा, हमारे शरीर में अलग अलग तरह के द्रव्य पाए जाते हैं, उन सबकी PH अलग अलग होती है, हमारे शरीर की सामान्य Ph 7.35 से 7.41 तक होती है, PH पैमाने में PH 1 से 14 तक होती है, 7 PH न्यूट्रल मानी जाती है, यानी ना एसिडिक और ना ही एल्कलाइन. 7 से 1 की तरफ ये जाती है तो समझो एसिडिटी बढ़ रही है, और 7 से 14 की तरफ जाएगी तो Alkalinity क्षारीयता बढ़ रही है. अगर हम अपने शरीर के अन्दर पाए जाने वाले विभिन्न द्रव्यों की PH को Alkaline की तरफ लेकर जाते हैं. तो हम बहुत सारी बीमारियों के मूल कारण को हटा सकते हैं, और उनको हमेशा के लिए Cure कर सकते हैं. ।

cancer and PH – कैंसर

उदहारण के तौर पर सभी तरह के कैंसर सिर्फ Acidic Environment में ही पनपते हैं. क्यूंकि कैंसर की कोशिका में शुगर का ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में Fermentation होता है जिससे अंतिम उत्पाद के रूप में लैक्टिक एसिड बनता है और यही लैक्टिक एसिड Acidic Environment पैदा करता है जिस से वहां पर एसिडिटी बढती जाती है और कैंसर की ग्रोथ बढती जाती है. और ये हम सभी जानते हैं के कैंसर होने का मूल कारण यही है के कोशिकाओं में ऑक्सीजन बहुत कम मात्रा में और ना के बराबर पहुँचता है. और वहां पर मौजूद ग्लूकोस लैक्टिक एसिड में बदलना शुरू हो जाता है।

Gout and PH – गठिया

दूसरा उदहारण है के Gout जिसको गठिया भी कहते हैं, इसमें रक्त में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे रक्त एसिडिक होना शुरू हो जाता है, जितना ब्लड अधिक एसिडिक होगा उतना ही यूरिक एसिड उसमे ज्यादा जमा होना शुरू हो जायेगा. अगर हम ऐसी डाइट खाएं जिससे हमारा पेशाब Alkaline हो जाए तो ये बढ़ा हुआ यूरिक एसिड Alkaline Urine में आसानी से बाहर निकल जायेगा।

UTI and PH – पेशाब का संक्रमण

तीसरा उदहारण है के UTI जिसको Urinary tract infection कहते हैं, इसमें मुख्य रोग कारक जो बैक्टीरिया है वो E.Coli है, ये बैक्टीरिया एसिडिक वातावरण में ही ज्यादा पनपता है. इसके अलावा Candida Albicanes नामक फंगस भी एसिडिक वातावरण में ही ज्यादा पनपता है. इसीलिए UTI तभी होते हैं जब पेशाब की PH अधिक एसिडिक हो. 

Kidney and PH – किडनी

चौथी एक और उदाहरण देते हैं के किडनी की समस्या मुख्यतः एसिडिक वातावरण में ही होती है, अगर किडनी का PH हम एल्कलाइन कर देंगे तो किडनी से सम्बंधित कोई भी रोग नहीं होगा. मसलन क्रिएटिनिन, यूरिक एसिड, पत्थरी इत्यादि समस्याएँ जो भी किडनी से सम्बंधित हैं वो नहीं होंगी. 

वर्तमान स्थिति

आजकल हम जो भी भोजन कर रहें हैं वो 90 प्रतिशत तक एसिडिक ही है, और फिर हमारा सवाल होता है के हम सही क्यों नहीं हो रहे. या फिर कहते हैं के हमने ढेरों इलाज करवाए मगर आराम अभी तक नहीं आया. बहुत दवा खायी मगर फिर भी आराम नहीं हो रहा. तो उन सबका मुख्यः कारण यही है के उनका PH लेवल कम हो जाना अर्थात एसिडिक हो जाना. आज हम इसी विषय पर बात करेंगे के कैसे हम अपना PH level बढ़ाएं और इन बिमारियों से मुक्ति पायें. 

कैसे बढ़ाएं PH level – Body ka PH kaise sahi kare

  1. कच्ची सब्जियां – विशेषकर लौकी, पालक, चौलाई, हरी अजवायन, गाजर, अदरक, पोदीना, गोभी, पत्ता गोभी, कद्दू, मूली, शिमला मिर्च, खीरा इत्यादि हरी पत्तेदार सब्जियां. इन सब सब्जियों को कच्चा या जूस बना कर ही सेवन करना है, इनको सब्जी की तरह पकाना नहीं है. जैसा प्रकृति ने दिया है वैसा ही इस्तेमाल करना है.
  2. फल – सेब, खुबानी, ऐवोकैडो, केले, जामुन, चेरी, खजूर, अंजीर, अंगूर, अमरुद, नींबू, आम, जैतून, नारंगी, संतरा, पपीता, आड़ू, नाशपाती, अनानास, अनार, खरबूजे, किशमिश, इमली, टमाटर इत्यादि फल.
  3. इसके अलावा तुलसी, सेंधा नमक, अजवायन, दालचीनी, बाजरा इत्यादि.

AlkaLine Water बनाने की विधि.

रोगी हो या स्वस्थ उसको यहाँ बताया गया ये Alkaline Water ज़रूर पीना है. इसके लिए ज़रूरी सामान – 1 निम्बू, 25 ग्राम खीरा, 5 ग्राम अदरक, 21 पोदीने की पत्तियां, 21 पत्ते तुलसी, आधा चम्मच सेंधा नमक, चुटकी भर मीठा सोडा. अभी इन सभी चीजों को लेकर पहले छोटे छोटे टुकड़ों में काट लीजिये, निम्बू छिलके सहित काटने की कोशिश करें. एक कांच के बर्तन में इन सब चीजों को डाल दीजिये और इसमें डेढ़ गिलास पानी डाल दीजिये, पूरी रात इस पानी को ढक कर पड़ा रहने दें. और सुबह उठ कर शौच वगैरह जाने के बाद खाली पेट सब से पहले इसी को छान कर पीना है. छानने से पहले इन सभी चीजों को हाथों से अच्छे से मसल लीजिये. और फिर इसको छान कर पीजिये. 

Alkaline के लिए दूसरी विधि.

1 लौकी जिसे दूधी भी कहा जाता हैं का जूस एक गिलास इसमें 5-5 पत्ते तुलसी और पोदीने के डालिए इसमें सेंधा नमक या काला नमक डाल कर पियें।
ध्यान रहे के इनको सुबह खाली पेट ही पीना है, अर्थात इनसे पहले कुछ भी खाना पीना नहीं है और इनको पीने के बाद एक घंटे तक कुछ भी खाना पीना नहीं है.
चाय कॉफ़ी चीनी ये सब ज़हर के समान है, अगर आप किसी रोग से ग्रस्त हैं तो सबसे पहले आपको इनको छोड़ना होगा, और इसके साथ ऊपर बताये गए फल सब्जियां कच्चे ही सेवन करें.

शनिवार, 2 मार्च 2019

पित्त की थैली की पथरी (gall bladder stone) का इलाज संभव है।

एक पुरुष पेशेंट जिसकी उम्र लगभग 42 yrs थी वह पित्त की थैली की पथरी (Gallstone) से पीड़ित था जिसका साइज 13.3 MM था, उसको 90 डेज का ट्रीटमेंट दिया था। जिसकी treatment से पहले की रिपोर्ट निम्न है:-
फर्स्ट ट्रीटमेंट से ही लगभग 69 दिन में ही पित्त की थैली की पथरी घुलकर समाप्त हो गई। पेशेंट की ट्रीटमेंट के बाद की रिपोर्ट निम्न है

इस ट्रीटमेंट से दर्द होना तो पहले दिन से ही बंद हो गया था।अब ये पूरी तरह से ठीक क्योर(cure) हैं।
इनका इलाज इलेक्ट्रो-होम्योपैथी की हर्बल मेडिसिन से किया गया है जो की शरीर के भीतर के सभी विषों(टॉक्सिन्स) को बाहर करके शरीर के रस(लिम्फ) और खून (ब्लड) को शुद्ध (pure) करके शरीर को नवजीवन प्रदान करती हैं। इस पद्दति की मेडिसिन हानि रहित होती हैं , इनका कोई साइड इफ़ेक्ट नही होता है। 

Dr. Ashok kumar
(Mob:- 9716126839, 8178513616)

बुधवार, 30 जनवरी 2019

सफेद दाग (Leucoderma) का इलाज संभव है।

Case N0:- 2
यह एक पुरुष पेशेंट है जिसकी उम्र 24 साल है। इसके हाथों में सफेद दाग का रोग पिछले 8 साल से है। इसके हाथ की फ़ोटो इलाज(ट्रीटमेंट) से पहले की निम्न है:-
अब इनका इलाज इनकी प्रकृति (Temperament) और सही निदान(diagnosis) के बाद Electro homeopathy  की हर्बल मेडिसिन से किया गया है अभी 4 माह के इलाज(ट्रीटमेंट) के बाद इन्हें काफी आराम(रिलीफ) है जिसका फ़ोटो निम्न है:-

इनका इलाज(ट्रीटमेंट) अभी continue है। इनका इलाज इलेक्ट्रो-होम्योपैथी की हर्बल मेडिसिन से किया गया है जो की शरीर के भीतर के सभी विषों(टॉक्सिन्स) को बाहर करके शरीर के रस(लिम्फ) और खून (ब्लड) को शुद्ध (pure) करके शरीर को नवजीवन प्रदान करती हैं। इस पद्दति की मेडिसिन हानि रहित होती हैं , इनका कोई साइड इफ़ेक्ट नही होता है। 

 DR. ASHOK KUMAR
 Mob:- 9716126839, 8178513616

मंगलवार, 29 जनवरी 2019

सफेद दाग (Leucoderma) का सफल इलाज (ट्रीटमेंट) संभव है।





Case N0 :- 1

एक महिला पेशेंट जिसकी उम्र 30 साल है। पिछले 12 साल से सफेद दाग के रोग से पीड़ित थी। उस समय का उसका फ़ोटो निम्न है :-


वो अब से 6 माह पहले मेरे पास आई थी तो उसका ट्रीटमेंट उसकी प्रकृति (टेम्परामेंट) चेक करने और डायग्नोसिस करने के बाद शुरू किया गया।
उसे पहले 2 महीने में ही 10% आराम मिल गया था लेकिन 6 महीने में 80% ठीक हो गई है और इलाज अभी continue  चल रहा है। अब की फोटी निम्न है:-

इनका इलाज इलेक्ट्रो-होम्योपैथी की हर्बल मेडिसिन से किया गया है जो की शरीर के भीतर के सभी विषों(टॉक्सिन्स) को बाहर करके शरीर के रस(लिम्फ) और खून (ब्लड) को शुद्ध (pure) करके शरीर को नवजीवन प्रदान करती हैं। इस पद्दति की मेडिसिन हानि रहित होती हैं , इनका कोई साइड इफ़ेक्ट नही होता है। 

Dr. Ashok kumar Mob:- 9716126839, 8178513616


मंगलवार, 22 जनवरी 2019

पित्त की थैली की पथरी (GALLBLADDER STONE) का इलाज संभव है।

एक पेशेंट जिसकी उम्र लगभग 30 yrs थी वह पित्त की थैली की पथरी (Gallstone) से पीड़ित था उसको 45 डेज का ट्रीटमेंट दिया था। जिसकी treatment से पहले की रिपोर्ट निम्न है:-

फर्स्ट ट्रीटमेंट से ही लगभग 45 दिन में ही पित्त की थैली की पथरी घुलकर समाप्त हो गई। पेशेंट की ट्रीटमेंट के बाद की रिपोर्ट निम्न है


इस ट्रीटमेंट से दर्द होना तो पहले दिन से ही बंद हो गया था।अब ये पूरी तरह से ठीक क्योर(cure) हैं।
इनका इलाज इलेक्ट्रो-होम्योपैथी की हर्बल मेडिसिन से किया गया है जो की शरीर के भीतर के सभी विषों(टॉक्सिन्स) को बाहर करके शरीर के रस(लिम्फ) और खून (ब्लड) को शुद्ध (pure) करके शरीर को नवजीवन प्रदान करती हैं। इस पद्दति की मेडिसिन हानि रहित होती हैं , इनका कोई साइड इफ़ेक्ट नही होता है। 

Dr. Ashok kumar
(Mob:- 9716126839, 8178513616)

बुधवार, 7 नवंबर 2018

अगर दिखें ये 5 संकेत तो समझ लें आपका Digestive System है खराब


पाचन तंत्र भोजन को ऊर्जा में बदल कर आपके शरीर को रोगों से लड़ने के सक्षम बनाता है। इसलिए बिना अच्छे डाइजेशन के स्वस्थ रहना भी मुश्किल है। पाचन क्रिया खराब होने पर आपको न तो खाना पचता है और न ही भरपूर पोषण मिलता है। वहीं, खराब डाइजेशन के कारण आपको मतली आना, पेट दर्द या सूजन, अपच और गैस जैसी प्रॉब्लम का सामना भी करना पड़ता है। विशेषज्ञों के अनुसार, खराब डाइजेशन यानि पाचन क्रिया में गड़बड़ी कई गंभीर बीमारीयों का कारण बन सकती हैं। ऐसे में इनसे संकेतों को पहचानकर समय पर इलाज करवाना बहुत जरूरी है। आज हम आपको खराब डाइडेशन के कुछ ऐसे लक्षण बताने जा रहे हैं, जिसे पहचानकर आप भी पाचन क्रिया में सुधार कर सकते हैं।

सोमवार, 7 मई 2018

Flaxseed Oil for Women's Health

This oil is considered as a boon for women's health. Given below are some of the many benefits of flaxseed oil, especially to women, which will be followed by the common benefits to men and women.
  • The essential fatty acids in flaxseed oil help to minimize the risk of breast cancer. Researches have found that a high content of omega-3 fatty acids can reduce the incidence of breast cancer.
  • It can be used to treat various women's health problems such as premenstrual syndrome, menstrual cramps, pre-menopausal symptoms, endometriosis and female infertility. It can also improve uterine function and health.

रविवार, 6 मई 2018

गुप्त रोगो क़ी चमत्कारी दवा

सबसे पहले तो अलसी आप और आपके जीवनसाथी की त्वचा को आकर्षक, कोमल, नम, बेदाग व गोरा बनायेगी। आपके केश काले, घने, मजबूत, चमकदार और रेशमी हो जायेंगे।

अलसी आपकी देह को ऊर्जावान, बलवान और मांसल बना देगी। शरीर में चुस्ती-फुर्ती बनी गहेगी, न क्रोध आयेगा और न कभी थकावट होगी। मन शांत, सकारात्मक और दिव्य हो जायेगा।

अलसी में विद्यमान ओमेगा-3 फैट, आर्जिनीन एवं लिगनेन जननेन्द्रियों में रक्त के प्रवाह को बढ़ाती हैं, जिससे शक्तिशाली स्तंभन तो होता ही है साथ ही उत्कृष्ट और गतिशील शुक्राणुओं का निर्माण होता है। इसके अलावा ये शिथिल पड़ी क्षतिग्रस्त नाड़ियों का कायाकल्प करते हैं जिससे सूचनाओं एवं संवेदनाओं का प्रवाह दुरुस्त हो जाता है।

सोमवार, 17 अप्रैल 2017

फ्री adscash coin प्राप्त करें और अपना मुनाफा बढ़ाये।

दोस्तों,

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अभी ये कॉइन 1 सप्ताह पहले 25 डॉलर में 1000 मिल रहे थे, लेकिन अब 29 डॉलर में 1000 मिल रहे हैं। अब आप ही अनुमान लगा सकते हैं कि 1 सप्ताह में इनकी कीमत 4 डॉलर बढ़ गई है तो आने वाले कुछ महीनों और सालों में कितनी कीमत बढ़ सकती है।जबकि अभी ये इसकी सिर्फ शुरुवात है। आने वाले महीनों में अगर 1 कॉइन की कीमत 1 डॉलर भी हो गई तो लाखों रुपये का फायदा हो सकता है।

शनिवार, 25 फ़रवरी 2017

संपर्क सूत्र (CONTACT)

Dr. ASHOK KUMAR
Mob:- 9716126839, 8178513616(Whatsapp number)

बुधवार, 26 अक्तूबर 2016

ग्लोइंग स्किन पाने के लिए सुबह खाली पेट पिएं एलोवेरा जूस।

एलोवेरा एक औषधीय पौधा है। सुबह-सुबह खाली पेट एलोवेरा का जूस पीने से कई फायदे होते हैं। आपको बता दें कि आपकी स्किन के लिए बहुत अच्छा होता है और ये जोड़ों के दर्द में भी राहत देता है। एलोवेरा का ग्वारपाठा, घृत कुमारी, गिलोय भी कहा जाता है। स्किन प्रोब्लम से छुटकारा दिलाने के अलावा एलोवेरा आपकी सेहत के लिए भी गुणकारी है। एलोवेरा से मुहांसे, रूखी त्वचा, झुर्रियां, चेहरे के दाग धब्बों और आखों के काले घेरों को दूर किया जा सकता है।

शनिवार, 16 अप्रैल 2016

सेक्स किए बिना पैदा होंगे स्वस्थ बच्चे

 अब भविष्य में बच्चे पैदा करने के लिए सेक्स की जरुरत नहीं होगी। 'डिजाइनर बेबी' की अवधारणा आने के बाद बच्चे पैदा करने के लिए सेक्स की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। साथ ही आप कई पहलुओं पर परखने के बाद अपनी मर्जी के बच्चे का चुनाव कर सकेंगे।

रविवार, 7 जून 2015

ब्लडप्रेशर की शिकायत हो तो .........

यह मौसम हाई और लो ब्लडप्रेशर वाले लोगों के लिए काफी खतरनाक साबित हो सकता है। लो ब्लडप्रेशर वाले लोगों की सांसों की गति धीमी पड़ जाती है।

मंगलवार, 14 अक्तूबर 2014

अनेक दुःखों में कारगर है हल्दी।

हल्दी अपने औषधीय और सौंदर्यवर्धक
गुणों के कारण रसोई की शान रही है। चटक
पीले रंग के कारण भारतीय केसर के नाम से
भी प्रसिद्ध हल्दी पौष्टिक गुणों से
भरी हुई है।

हड्डियों को मजबूत बनाए:- रात को सोते समय हल्दी की एक इंच लंबी कच्ची गांठ को एक गिलास दूध में उबालें। थोड़ा ठंडा होने पर इसे पी लें।

ऑस्टियोपोरोसिस जैसे रोगों का खतरा कम होता है।

गठिया का इलाज:- हल्दी इस रोग के इलाज के लिए अनूठा घरेलू प्राकृतिक उपाय है। सुबह
खाली पेट एक गिलास गर्म दूध में एम चम्मच
हल्दी मिलाकर पीने से गठिया के दर्द में
राहत मिलती है।

एनीमिया के उपचार में प्रभावी:- लोहे से समृद्ध हल्दी एनीमिया के इलाज के प्राकृतिक उपायों में एक है। कच्ची हल्दी से निकाला गया आधा चम्मच रस एक चम्मच शहद के साथ मिलाकर पीना फायदेमंद है।

दंत रोगों में गुणकारी:- थोड़ी-सी हल्दी, नमक और सरसों का तेल मिलाएं। दांतों को मजबूत बनाने के लिए रोजाना इस मिश्रण से दांतों और
मसूड़ों की ब्रशिंग करें।
कच्ची हल्दी की गांठ को अच्छी तरह भूनकर पीस लें। पिसे मिश्रण से दर्द वाले दांत की मालिश करें। आराम मिलेगा। कच्ची हल्दी के कसैले रस से मालिश करने पर दांत और मसूड़े मजबूत होते हैं, उनकी सूजन दूर होती है और दांत के कीड़े खत्म हो जाते हैं।

मुंह के छालों से छुटकारा:- एक गिलास पानी में कुछ हल्दी मिला कर कुल्ला करने से मुंह के छालों में आराम मिलता है।

खांसी में राहत:- खांसी में कफ की समस्या होने पर एक गिलास गर्म दूध में एक-चौथाई चम्मच
हल्दी मिलाकर पीना फायदेमंद है। पुरानी खांसी या अस्थमा के लिए आधा चम्मच शहद में एक-चौथाई चम्मच हल्दी अच्छी तरह मिलाकर चाटने से आराम मिलता है।

गुमचोट के इलाज में सहायक:-एक गिलास गर्म दूध में एक टी-स्पून हल्दी मिलाकर पीने से चोट के दर्द और सूजन में राहत मिलती है। चोट पर हल्दी और पानी का लेप लगाने से आराम मिलता है। आधा लीटर गर्म पानी, आधा चम्मच सेंधा नमक और एक चम्मच हल्दी डाल कर अच्छी तरह मिलाएं। इस पानी में एक कपड़ा डाल कर निचोड़ लें और चोट वाली जगह पर इससे सिंकाई करें।

घावों पर मरहम:- घी या तेल में हल्दी मिलाएं। इसे थोड़ा गर्म करके घाव के ऊपर लगाकर
ड्रेसिंग करें। हल्दी को पानी के साथ मिक्स करके भी घाव पर मोटा लेप लगाने से आराम मिलता है। इससे घाव का बहता हुआ खून भी रुक सकता है।

टाइप 2 के मधुमेह रोगियों के लिए फायदेमंद:-
हल्दी में मौजूद कुरकूमिन ब्लड शुगर को कम
करता है और ग्लूकोज के चयाचपय को बढ़ाकर मधुमेह को नियंत्रित रखता है। दिन में भोजन के साथ आधा-आधा चम्मच हल्दी पाउडर के सेवन से आराम मिलता है।

मंगलवार, 22 जुलाई 2014

तांबे के बर्तन में रखा पानी पीने की धारणा के पीछे की वास्तविकता का वैज्ञानिक समर्थन !

हममें से ज्यादातर लोगों ने अपने दादा-दादी से तांबे के बर्तन में संग्रहीत पानी पीने के स्वास्थ्य लाभों के बारे में सुना होगा। कुछ लोग तो पानी पीने के लिए विशेष रूप से तांबे से बने गिलास और जग का उपयोग करते हैं। लेकिन क्या इस धारणा के पीछे वास्तव में कोई वैज्ञानिक समर्थन है? या यह एक मिथक है बस? तो आइए तांबे के बर्तन में पानी पीने के बेहतरीन कारणों के बारे में जानें..

तांबे के बर्तन में पानी पीना अच्छा क्यों है?

आयुर्वेद के अनुसार, तांबे के बर्तन में संग्रहीत पानी में आपके
शरीर में तीन दोषों (वात, कफ और पित्त) को संतुलित
करने की क्षमता होती है और यह ऐसा सकारात्मक
पानी चार्ज करके करता है। तांबे के बर्तन में
जमा पानी 'तमारा जल' के रूप में भी जाना जाता है और
तांबे के बर्तन में कम से कम 8 घंटे तक रखा हुआ
पानी ही लाभकारी होता है।
जब पानी तांबे के बर्तन में संग्रहित किया जाता है तब
तांबा धीरे से पानी में मिलकर उसे सकारात्मक गुण प्रदान
करता है। इस पानी के बारे में सबसे अच्छी बात यह है कि यह
कभी भी बासी (बेस्वाद) नहीं होता और इसे लंबी अवधि तक
संग्रहित किया जा सकता है।

बैक्टीरिया समाप्त करने में मददगार

तांबे को प्रकृति में ओलीगोडिनेमिक के रूप में
(बैक्टीरिया पर धातुओं की स्टरलाइज प्रभाव)
जाना जाता है और इसमें रखे पानी के सेवन से
बैक्टीरिया को आसानी से नष्ट
किया जा सकता है। तांबा आम जल जनित रोग जैसे
डायरिया, दस्त और पीलिया को रोकने में मददगार
माना जाता है। जिन देशों में
अच्छी स्वच्छता प्रणाली नहीं है उन देशों में
तांबा पानी की सफाई के लिए सबसे सस्ते समाधान
के रूप में पेश आता है।










शुक्रवार, 20 जून 2014

ज्यादा उम्र तक जीने राज !

मनोवैज्ञानिक भी कहते हैं कि लंबी उम्र का राज आपकी लाइफस्टाइल में नहीं, आपके विचारों में छिपा है. अगर आपके विचार सकारात्मक होंगे, आप जिन्दगी के प्रति बेहतर दृष्टिकोण रखेंगे तो निश्चित तौर पर यह आपकी आयु सीमा को बढ़ाएगा. आप अपने विचारों से स्वस्थ रहेंगे तो इसका प्रभाव आपके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ेगा. फिर इस बात से क्या फर्क पड़ता है कि आज सुबह आप मॉर्निंग वॉक पर गए थे या नहीं, हेल्दी खाना खाया था नहीं, व्यायाम किया था नहीं, कहीं शराब ज्यादा तो नहीं पी ली, सिगरेट का सेवन ज्यादा तो नहीं हो गया….!!!

मंगलवार, 17 जून 2014

केवल चार घंटे का जीवन है दिल का।

दिल को सिर्फ 4 घंटे तक ही सुरक्षित रख सकते हैं। इसे जितनी जल्दी मरीज के शरीर में ट्रांसप्लांट कर दिया जाए,उतने ही ऑपरेशन के सफल होने की संभावना बढ़ जाती है।

रविवार, 2 मार्च 2014

अब खून की जाँच से ही पता चल सकेगा कैंसर (ट्यूमर) का।

न्यूयॉर्क/ भारतीय मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक रघु कल्लुरी द्वारा किए गए शोध में पता चला है कि खून की सामान्य जांच से ही अग्न्याशय कैंसर के बारे में पता लगाया जा सकता है।

यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास के एमडी एंडरसन डिपार्टमेंट ऑफ कैंसर बायोलॉजी में प्राफेसर कल्लुरी ने बताया। इस शोध से डॉक्टरों को खून की जांच से ही कैंसर का पता लगाने और उसके इलाज में मदद मिलेगी।

हमारा मानना है कि खून के नमूने से लिए गए एक्सोसोम (छोटे कण) डीएनए के विश्लेषण से शरीर में किसी भी स्थान पर कैंसर ट्यूमर के बारे में पता लगाया जा सकता है। इससे शरीर में होने वाले बदलाव के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए ट्यूमर के सैंपल की जरूरत नहीं पड़ेगी।

इससे प्रारंभिक चरण में कैंसर का पता लगाने की हमारी क्षमता में वृद्धि होगी और इस बीमारी के प्रभावी इलाज की संभावना बढ़ जाएगी।' उनके मुताबिक वर्तमान समय में खून की वैसी कोई जांच उपलब्ध नहीं है जिसके आधार पर कैंसर संबंधी डीएनए विकृति का पता लगाया जा सके। यह अध्ययन जर्नल ऑफ बायोलॉजिकल केमिस्ट्री में प्रकाशित हुआ है।

वहीं अमेरिका में केंटुकी स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ लूसविले के शोधकर्ताओं ने भी खून की जांच से सर्वाइकल कैंसर का पता लगाने संबंधी खोज की बात कही है। उनका कहना है कि खून की जांच से यह भी पता लगाया जा सकता है कि सर्वाइकल कैंसर किस चरण में है। खबर कैसी लगी

शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2014

अंडे की जर्दी खाइये और बच्चे पैदा करने की क्षमता बढाइये।

अंडे के फायदों को लेकर तो आपने बहुत कुछ सुना होगा लेकिन इसकी पीली जर्दी का यह फायदा बच्चे की चाहत रखने वाले प्रत्येक दम्पति को जानना चाहिए। है

न्यूयॉर्क पोस्ट में प्रकाशित खबर के अनुसार अंडे का पीला भाग और सोया तेल के सेवन से तीन बार आईवीएफ ट्रीटमेंट में नाकाम हो चुकी दंपत्ति को बच्चा हुआ है। ब्रिटिश दंपत्ति मार्क और सुजैन हार्पर ने कई बार गर्भपात और तीन बार आईवीएफ ट्रीटमेंट में असफलता के बाद डॉक्टरी परामर्श पर अंडे की जर्दी और सोया तेल के मिश्रण का सेवन शुरू किया और इससे उन्हें गर्भ धारण में सफलता भी मिली।

ब्रिटेन के केयर फर्टिलिटी नोटिंघम के फर्टिलिटी विशेषज्ञों की मानें तो इन दोनों में मौजूद फैटी एसिड की वजह से सुजैन को गर्भ धारण करने में आसानी मिली और वह इस तकनीक से प्रजनन करने वाली पहली महिला हैं। विशेषज्ञ अब इस विधि से गर्भधारण की प्रक्रिया और इससे संबंधित प्रभावों पर शोध कर रहे हैं पर इतना निश्चित है कि अंडे का सेवन फर्टिलिटी के लिहाज से बेहतर विकल्प हो सकता है।

सोमवार, 27 जनवरी 2014

अब बदल पाएंगे अपनी आँखों के रंग को।

रंगीन कॉन्टेक्ट लेंस युवा पीढ़ी के बीच काफी लोकप्रिय हो गए हैं। 25 वर्षीय फैशन मॉडल पुनीत शर्मा, जब स्कूल में पढ़ रहे थे, तभी उन्हें नीली आंखों के प्रति आकर्षण हो गया था। शर्मा कहते हैं, जब मैं 15 साल का था, तभी से कॉन्टेक्ट लेंस का इस्तेमाल करता आ रहा हूं, लेकिन बाद में मेरी आंखों में संक्रमण होना शुरू हो गया।

मेरे माता- पिता भी मुझे कॉन्टेक्ट लेंस से छुटकारा दिलाना चाहते थे, क्योंकि मेरी आंखों की समस्याओं के कारण वे बार- बार नेत्ररोग विशेषज्ञ के पास जाकर थक चुके थे। पुनीत ने मुझसे मुलाकात की। मैंने कृत्रिम आईरिस इंप्लांटेशन किया। सर्जरी के लिए उपयुक्त पाये जाने से पहले उन्हें कई प्रकार के परीक्षण कराने को कहा गया। प्रत्येक आंख की सर्जरी में 10 मिनट का समय लगा और और 6 से 7 घंटे तक स्वास्थ्य लाभ करने के बाद उन्हें अपनी पसंदीदा नीली आंखों के साथ घर जाने के लिए कह दिया गया।

प्राकृतिक रंग का निर्धारण:- किसी भी व्यक्ति की आंखों का प्राकृतिक रंग मेलानिन की मात्रा, रक्त वाहिकाओं के नेटवर्क और आंख में टिश्यूज की बनावट से निर्धारित होता है। सालों से नेत्र विशेषज्ञ ऐसे लोगों को जो अपनी आंखों का रंग बदलना चाहते हैं, उन्हें रंगीन कॉन्टेक्ट लेंस लगाने की सलाह देते रहे हैं, लेकिन अब कृत्रिम आईरिस इंप्लांटेशन सर्जरी के जरिये आंखों का रंग स्थायी रूप से बदला जा सकता है।

सजगता बरतना जरूरी:- कलर्ड या रंगीन कॉन्टेक्ट लेंस सिर्फ अलग-अलग रंग के साथ आंखों का रंग बदल देते हैं, लेकिन लंबे समय तक इन लेंसों के पहनने पर कॉर्निया (नेत्रगोलक की ऊपरी पर्त) में खुजली, कॉर्निया में संक्रमण या अल्सर, कन्जंक्टिवाइटिस और दृष्टि में कमी जैसी समस्याएं पैदा हो सकती हैं, लेकिन नेत्र विशेषज्ञ से परामर्श लेकर कॉन्टेक्ट लेंस के बारे में कुछ सजगताएं बरतकर काफी हद तक इन समस्याओं को दूर किया जा सकता है।

सर्जिकल प्रक्रिया:- डॉक्टर, प्राकृतिक आईरिस (आंख का वह भाग जिसमें रंग होता है और जो आपकी आंखों के प्राकृतिक रंग को निर्धारित करता है) पर कृत्रिम आईरिस का इंप्लांटेशन कर देते हैं। इस सर्जरी को सिर्फ प्रशिक्षित आई सर्जन ही अंजाम देते हैं।

(डॉ.शिबू वार्की आई सर्जन, नई दिल्ली)

शनिवार, 25 जनवरी 2014

सर्दियों में कंधे के दर्द में बरतें सावधानी

आजकल कंधे के दर्द की समस्या आम होती जा रही है। आखिर क्या कारण हैं कंधे में दर्द के, इससे जुड़े कौन से रोग हैं और क्या हैं इनके उपचार, बता रहे हैं मैक्स अस्पताल, पीतमपुरा, के आथरेपेडिक्स और ज्वॉइंट रिकंस्ट्रक्शन के प्रमुख डॉ. निश्चल चुघ

कंधे का दर्द एक बहुत ही आम शिकायत है। सर्दियों के दौरान तो यह अक्सर बुजुर्ग महिलाओं में देखने को मिलता है। भारत में कंधे के दर्द की घटनाएं लगभग 68 प्रतिशत लोगों में देखी जाती है।

दरअसल, हमारा कंधा तीन हड्डियों से बना है। ऊपरी बांह की हड्डी, कंधे की हड्डी और हंसली। ऊपरी बांह की हड्डी का शीर्ष कंधे के ब्लेड के एक गोल सॉकेट में फिट रहता है। यह सॉकेट ग्लेनोइड कहलाता है। मांसपेशियों और टेंडन्स का संयोजन बांह की हड्डी को कंधे के सॉकेट में केंद्रित रखता है। ये ऊतक रोटेटर कफ कहलाते हैं। वैसे तो कंधा खेल गतिविधियों और शारीरिक श्रम के दौरान आसानी से घायल हो जाता है, लेकिन ज्यादातर कंधे की समस्याओं का प्राथमिक स्त्रोत रोटेटर कफ में पाये जाने वाले आसपास के कोमल ऊतक का उम्र के कारण प्राकृतिक रूप से बिगड़ना है। रोटेटर कफ में तकलीफ की स्थिति 60 वर्ष से अधिक उम्र वालों में ज्यादा देखी जाती है। कंधे के अत्यधिक प्रयोग से उम्र की वजह से होने वाली गिरावट में तेजी आ सकती है।

कंधे के दर्द के मुख्य कारण:- फ्रोजन शोल्डर में ज्वॉइंट यानी जोड़ बहुत तंग और कड़ा हो जाता है, जिससे सरल क्रियाओं जैसे हाथ को ऊपर उठाने आदि में भी दिक्कत होने लगती है। अकड़न और तकलीफ रात में अधिक बढ़ जाती है। यह आमतौर पर अधिक उम्र की महिलाओं में व थायराइड और मधुमेह के रोगियों में पाया जाता है। इसके उपचार में दर्द निवारक दवाएं, हल्के-फुल्के स्ट्रेचिंग वाले व्यायाम आदि करने की सलाह दी जाती है। बाद में दवाओं की भी जरूरत पड़ती है। असल में पचास साल की उम्र के करीब 50 प्रतिशत लोगों के कंधे के एमआरआई स्कैन पर रोटेटर कफ के डिजनरेशन के प्रमाण देखे गए हैं। उम्र बढ़ने के साथ तकलीफ बढ़ती जाती है। आमतौर पर रोटेटर कफ के शिकार व्यक्ति को कंधे के ऊपर और बाहर की ओर की तिकोना पेशी पर दर्द महसूस होता है। कपड़े पहनने और तैयार होने में हाथ में दर्द होने लगता है। कंधा भी कमजोर लगने लगता है और कंधा हिलाने पर चटक की सी आवाज सुनाई देती है।

रोटेटर कफ रोग के उपचार :- इसका उपचार रोग की स्थिति पर निर्भर करता है। यदि इस रोग की शुरुआत है तो कंधे को आराम देने, हीट और कोल्ड थेरेपी, फिजियोथेरेपी, स्टेरॉयड के इंजेक्शन आदि से इलाज किया जाता है। यदि रोग बढ़ जाता है तो रोटेटर कफ को ठीक करने के लिए ऑर्थोस्कोपिक आदि की आवश्यकता पड़ती है। यह समस्या लम्बे समय तक रहती है तो गठिया का रूप भी ले सकती है।

गुरुवार, 23 जनवरी 2014

ऐसे पाएं सर्दियों में डैंड्रफ फ्री बाल

बालों में डैंड्रफ की समस्या सर्दियों में अधिक बढ़ जाती है क्योंकि सर्दियों में त्वचा और बालों में खुश्की ठंडी हवाओं के कारण ज्यादा आ जाती है। पानी कम पिया जाता है। गर्म पानी से स्नान और गर्म पेयों का सेवन भी बढ़ जाता है। इससे शरीर की त्वचा और बालों में खुश्की बढ़ जाती है और बाल भी अधिक गिरने लगते हैं।

गर्म पानी से सिर धोने के कारण सिर की त्वचा की तैल ग्रंथियां ज्यादा तेल निकालती हैं जिससे रूसी बनती है। अगर आप भी परेशान हैं इस समस्या से तो ध्यान दें कुछ बातों पर जिससे आपके बाल भी रह सकें डैंड्रफ फ्री।

● बालों में बार-बार कंघी करने से तैल ग्रंथियां सक्रिय हो जाती हैं और तेल अधिक निकलता है जिससे रूसी बनती है। बालों में कंघी दिन भर में तीन-चार बार ही करें।

● आपके बाल अधिक खुश्क हैं तो बालों में कुनकुने तेल की मालिश सप्ताह में एक बार अवश्य करें और गर्म पानी से भीगा तौलिया बालों पर लपेट लें। ठंडा होने पर माइल्ड शैम्पू से बाल धो लें।

● बालों को गंदा न रहने दें। सप्ताह में दो बार बाल अवश्य धोएं।

● रूसी होने पर नारियल तेल में एक नींबू का रस मिलाएं और सिर पर लगाएं। 30-40 मिनट पश्चात शैम्पू कर लें।

● जैतून के तेल में अदरक के रस की कुछ बूंदें मिलाएं और बालों की जड़ों में लगाएं। 30-40 मिनट पश्चात बाल शैम्पू से धो लें।

● धोने के बाद बालों की कंडीशनिंग अवश्य करें ताकि बालों की नमी खत्म न होने पाए।

● अगर आप बालों में मेहंदी लगाते हैं तो उसमें एक चम्मच तेल अवश्य मिलाएं।

● बालों को धोने से पहले बालों में ब्रश या कंघी अवश्य कर लें ताकि तैल ग्रंथियां सक्रिय हो सकें। इससे डैड सैल्स भी खत्म होते हैं। तैल ग्रंथियों से तेल बालों को धोते समय निकल जाता है।

● दो कप पानी में दो चम्मच थाइम डालकर उसे बालों की जड़ों में लगा लें। बाद में बाल शैम्पू कर लें। थाइम एंटीसैप्टिक होता है जो डैंड्रफ रोकने में मदद करता है। बालों की शाइनिंग बरकरार रखने के लिए

● बालों पर अच्छे हेयर प्रोडक्ट्स का प्रयोग करें।

● बालों में आयरनिंग और पमिंग करने से बचें।

● बालों की सप्ताह में एक बार तेल से मसाज अवश्य करें।

●कोई भी हेयर कलर लगाने से पूर्व उसकी पूरी जानकारी ले लें। आंख मूंदकर प्रयोग में न लाएं।

रविवार, 19 जनवरी 2014

पेट(stomach) के कैंसर को समय रहते ठीक कर सकते हैं।

पेट में किसी भी कोशिका (सेल) के असामान्य या अनियंत्रित तरीके से बढ़ने को सहज भाषा में पेट का कैंसर कहा जाता है। ये पेट की भीतरी परतों में फैलता हुआ धीरे-धीरे बाहरी परतों पर आता है। इसलिए शुरुआत में इस बीमारी का पता भी नहीं चल पाता है।

लक्षण:-

इस रोग की शुरुआती अवस्था में लक्षण स्पष्ट रूप से प्रकट नहीं होते। रोग के लक्षण काफी हद तक अल्सर या पेट के अन्य विकारों जैसे होते हैं, जिन्हें अक्सर लोग नजरअंदाज कर देते हैं। फिर भी इन लक्षणों के प्रकट होने पर सजग हो जाना चाहिए..

● अक्सर बदहजमी की शिकायत।

● पेट में अक्सर दर्द महसूस करना।

● भूख में कमी महसूस होना और खाए बगैर पेट भरा हुआ महसूस करना।

● काले रंग का मल निकलना।

● खाना खाने के बाद उल्टी होना।

● जी मिचलाना।

● वजन का कम होते जाना।

●पीड़ित व्यक्ति का रक्त की कमी (एनीमिया) से ग्रस्त होना।

इलाज:- अगर समय रहते इन समस्याओं में सुधार न हो रहा हो, तो पीड़ित लोगों को गैस्ट्रोएन्टेरोलॉजी विशेषज्ञ से परामर्श लेने में देर नहीं करना चाहिए। विशेषज्ञ डॉक्टर को अगर रोगी में पेट के कैंसर का अंदेशा होता है, तो डॉक्टर एंडोस्कोपी करते हैं जिससे रोगी में कैंसर होने की जानकारी मिल जाती है। कैंसर के पता चलने के बाद गैस्ट्रोएन्टेरोलॉजी विशेषज्ञ द्वारा एंडोस्कोपिक अल्ट्रासाउंड ( ई यू एस) के जरिये बीमारी की गहन जानकारी हासिल की जाती है। इसके बाद एंडोस्कोपिक सर्जन एंडोस्कोपिक विधि द्वारा पेट के कैंसरग्रस्त भाग को ऑपरेशन के बगैर निकाल देते हैं। इस प्रक्रिया में एंडोस्कोप और दूसरे उपकरणों की मदद से कैंसर टिश्यू या दूसरे असामान्य टिश्यू को पाचन तंत्र (डाइजेस्टिव सिस्टम) से हटा दिया जाता है।

एंडोस्कोपिक अल्ट्रासाउंड(ई यू एस)प्रक्रिया के फायदे

● इस प्रक्रिया के द्वारा ऑपरेशन के बगैर पेट के कैंसर के बारे में गहन जानकारी हासिल कर ईयूएस द्वारा ही इलाज किया जाता है।

● सीटी स्कैन और एक्स रे की तरह इसमें रेडिएशन नही होता।

● इससे रोगी सर्जरी करवाने से बच सकता है।

● रोगी को बहुत कम समय के लिए अस्पताल में रखा जाता है।

● यह तकनीक काफी सटीक और सुरक्षित है।

ई यू एस और पारंपरिक एंडोस्कोपी में फर्क:- पारंपरिक एंडोस्कोपी में डॉक्टर और सर्जन रोगी के पेट की सिर्फ सबसे अंदरूनी पर्त (लाइनिंग) को ही देख सकते हैं, लेकिन विशेषज्ञ डॉक्टरों को 'ई यू एस' पेट की सभी पर्र्ते देखने में मदद करता है। इसके अलावा पेट के बाहर के अंगों को भी अच्छी तरह से देखा जा सकता है। ईएसयू प्रक्रिया अल्ट्रासांउड और एंडोस्कोपी विधि का मेल है। रोग की डाइग्नोसिस कर इसी प्रक्रिया के जरिये रोग का सटीक व कारगर इलाज संभव है। इस प्रक्रिया की मदद से गैस्ट्रिक कैंसर का शुरुआती अवस्था में पता लगाकर कारगर इलाज संभव है।

(डॉ.रणधीर सूद सीनियर गैस्ट्रोइंटेरोलॉजिस्ट, मेदांता दि मेडिसिटी, गुड़गांव)

शनिवार, 18 जनवरी 2014

प्रेम हॉर्मोन क्या होता है?

क्या आपने कभी सोचा है कि जब आप किसी शोरगुल वाले स्थान पर होते हैं। तब आप सिर्फ उसी व्यक्ति की बात क्यों सुन पाते हैं, जो आपके सामने है या जिसे आप सुनना चाहते हैं। बाकी लोगों की आवाज पर आपका ध्यान क्यों नहीं जाता।

ऐसा हमारे मस्तिष्क में मौजूद सामाजिक और पैतृक संबधों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले 'प्रेम हॉर्मोन' के कारण ऐसा होता है, जिसे ऑक्सीटोसिन कहते हैं।

अनुसंधानकर्ताओं ने बताया है कि ऑक्सीटोसिन किस तरह एक न्यूरो हॉर्मोन की तरह काम करते हुए न केवल हमारे दिमाग से पीछे के शोर को कम कर देता है, बल्कि वांछित संकेतकों को प्रबल बना देता है।

एनवाईयू लैंगोन मेडिकल सेंटर के न्यूरोसाइंस इंस्टीट्यूट के निदेश रिचर्ड डब्ल्यू सीन ने कहा, "दिमाग के माध्यम से सूचना भेजने में ऑक्सीटोसिन की भूमिका महत्वपूर्ण है।" अध्ययनों में पाया गया है कि ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसॉर्डर (एएसडी) से पीड़ित बच्चों में ऑक्सीटोसिन का स्तर कम होता है।

वर्तमान अध्ययन जेनेवा के शोधकर्ताओं द्वारा 30 साल पहले हुए शोध के परिणामों पर किया गया है, जिसमें बताया गया था कि ऑक्सीटोसिन दिमाग के स्मृति और ज्ञान वाले हिस्से, जिसे हिप्पोकैंपस कहते हैं, में सक्रिय होता है। यह हॉर्मोन तंत्रिका कोशिकाओं को प्रेरित करता है और गाबा नामक एक रसायन बनाता है, जो तंत्रिका कोशिकाओं को शिथिल कर देता है।

डॉ. सीन ने कहा, "पिछले अनेक परिणामों के आधार पर हमें लगा कि ऑक्सीटोसिन, पीछे के शोर और जरूरी संकेतों को स्थिर करके दिमाग को हर तरह से शिथिल कर सकता है। लेकिन इसकी जगह हमने पाया कि ऑक्सीटोसिन प्रेरित आवेगों की विश्वस्नीयता बढ़ाता है, जो दिमाग के लिए अच्छा है। लेकिन यह बहुत अप्रत्याशित है।" एनवाईयू लैंगोन मेडिकल सेंटर में न्यूरोसाइंस एवं साइकॉलजी के प्रोफेसर, डॉ. गॉर्ड फिशेल ने बताया, "ऑक्सीटोसिन की एक ही क्रिया से मजबूत संकेत और शोर का दबा वातावरण एकसाथ पैदा होते हैं।"

मंगलवार, 14 जनवरी 2014

गर्भावस्था के स्ट्रैच मार्क्स

एक हालिया सर्वेक्षण में सामने आया है कि भारतीय महानगरों और उप नगरों में नई तथा बनने वाली 87 प्रतिशत माँऐं डिलीवरी से पहले या बाद में अपने शरीर की दिखावट को लेकर चिंतित रहती हैं। 90 प्रतिशत नई तथा बनने वाली मां इस बात से सहमत हैं कि स्ट्रैच मार्क्स उनके लिए सर्वाधिक चिंता का विषय होते हैं।

क्या हैं गर्भावस्था के स्ट्रैच मार्क्स :जच्चा-बच्चा विशेषज्ञों के अनुसार जैसे-जैसे पेट के अंदर बच्चा विकसित होता है तो इसके आसपास की त्वचा में खिंचाव आता है। हालांकि हमारी त्वचा में एक निश्चित मात्रा तक लचक होती है, फिर भी त्वचा में इसके सामर्थ्य से अधिक खिंचाव आता है। कुछ निश्चित प्रकार की गर्भावस्था में यदि बच्चा आकार में बड़ा हो तो दबाव बहुत अधिक होता है।

गर्भावस्था के बाद जब पेट का अतिरिक्त वजन कम हो जाता है तो खिंची हुई त्वचा ढीली हो जाती है जिससे अक्सर मार्क्स रह जाते हैं। इनसे छुटकारा पाना मुश्किल होता है। यह एक सामान्य परिघटना है और हर गर्भस्थ महिला के लिए यह एक डरावने सपने की तरह है।

कब सामने आते हैं स्ट्रैच मार्क्स: विशेषज्ञों के अनुसार अधिकतर महिलाओं में ये मार्क्स गर्भावस्था के छठे या सातवें महीने के बाद सामने आना शुरू हो जाते हैं। गर्भावस्था के बाद ये मार्क्स अधिक दिखने लगते हैं क्योंकि महिला का वजन कम होना शुरू हो जाता है।

डाक्टरों के अनुसार स्ट्रैच मार्क्स आनुवांशिक भी हो सकते हैं। यदि आपकी माता या बहन में भी स्ट्रैच मार्क्स थे तो आप में भी इनके होने की संभावना है। अधिक वजन वाली महिलाओं में ये मार्क्स ज्यादा पाए जाते हैं। गोरी रंगत वाली महिलाओं में गुलाबी रंग के जबकि सांवली रंगत वाली महिलाओं में हमारी स्किन टोन से थोड़े हल्के स्ट्रैच मार्क्स पाए जाते हैं।

सिर्फ पेट पर स्ट्रैच मार्क्स एक भ्रांति: भारतीय महिलाओं का मानना है कि स्ट्रैच मार्क्स सिर्फ पेट पर ही उभरते हैं। यह एक भ्रांति है। गर्भावस्था के दौरान पडऩे वाले स्ट्रैच मार्क्स हो सकता है पेट के आसपास के क्षेत्र पर ही दिखते हों परन्तु ये जांघों पर और यहां तक कि घुटनों से लेकर बांहों पर भी हो सकते हैं।

स्ट्रैच मार्क्स का इलाज: माँओं के लिए यह समझना महत्वपूर्ण है कि स्ट्रैच मार्क्स से बचना पूरी तरह संभव नहीं है। ये मार्क्स गर्भावस्था की देन हैं। कई मामलों में ये गायब होने में 5 से 6 साल का समय लेते हैं। स्ट्रैच मार्क्स को कम करने के लिए एक दिन में दो या तीन बार कोको या शिया बटर से अपनी स्किन को मॉइश्चराइज करने से बहुत सहायता मिलती है। बॉडी ऑयल्स तथा क्रीम्स का नियमित प्रयोग गर्भावस्था के दौरान बहुत जरूरी है क्योंकि इस दौरान महिलाओं की त्वचा अधिक सूखी हो जाती है।

जिन क्रीम्स में ट्रैटीनोइन और टाजारोटीन मौजूद होते हैं वे स्ट्रैच स्ट्रैच मार्क्स के अंदर कोलाजैन का पुन: निर्माण कर सकते हैं और उनकी दिखावट को सुधार सकते हैं लेकिन इनका इस्तेमाल गर्भावस्था के दौरान नहीं किया जाना चाहिए। ग्लाइकोलिक एसिड भी इसी तरह का काम करता है और इसे क्रीम के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है।

कॉस्मैटिक प्रक्रियाओं का इस्तेमाल: जो महिलाएं स्ट्रैच स्ट्रैच मार्क्स से छुटकारा पाना चाहती हैं उनमें कॉस्मैटिक ट्रीटमैंट्स भी एक बढिय़ा विकल्प साबित हो रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार चीर-फाड़ की प्रक्रिया के बिना स्ट्रैच स्ट्रैच मार्क्स को पूरी तरह दूर करना असंभव है क्योंकि यह त्वचा के डर्मिस (मध्यम परत) पर पडऩे वाले दाग हैं। साथ ही विशेषज्ञ यह चेतावनी भी देते हैं कि ट्रीटमैंट्स सिर्फ गर्भावस्था के बाद ही करवाई जानी चाहिए। आइए जानते हैं

कुछ आम कॉस्मैटिक प्रक्रियाओं के बारे में-

एब्डोमिनोप्लास्टी: इसे ‘टमी टक’ के नाम से भी जाना जाता है। यह एक आम सर्जीकल प्रक्रिया है जिसे गर्भावस्था के बाद नजर आने वाले स्ट्रैच स्ट्रैच मार्क्स को हटाने के लिए किया जाता है। यह प्रक्रिया न सिर्फ पेट के निचले हिस्से की अतिरिक्त त्वचा को हटाती है बल्कि साथ ही इसे टोन अप भी करती है। यह एक डे केयर प्रक्रिया है और यह एक सप्ताह तक चलती है। मरीज को कुछ हफ्तों तक खिंचाव पैदा करने वाली गतिविधियों से बचना चाहिए।

लेजर ट्रीटमैंट: पल्स्ड डाई लेजर का इस्तेमाल करने से गर्भावस्था के बाद के स्ट्रैच स्ट्रैच मार्क्स कम हो जाते हैं। ऐसी लेजर ट्रीटमैंट्स सांवली त्वचा वाली महिलाओं के लिए अधिक प्रभावी नहीं हैं। यह प्रक्रिया तब बहुत बढिय़ा काम करती है जब लाल स्ट्रैच स्ट्रैच मार्क्स और त्वचा की पिगमैंट में बहुत बड़ा कंट्रास्ट हो। पुराने स्ट्रैच स्ट्रैच मार्क्स के लिए लेजर बेरंगेपन, आकार तथा गहराई को कम करती है और त्वचा की लचक को 50 से 65 प्रतिशत तक सुधारती है।

स्ट्रैच मार्क्स की देखभाल के टिप्स

1 हमेशा हाईड्रेटिड रहें।

2 स्नान के एकदम बाद ऑलिव, आल्मंड, कैस्टर तथा एवोकाडो ऑयल से शरीर की मालिश करें। एलोवेरा स्ट्रैच स्ट्रैच मार्क्स को समाप्त करने के लिए प्रसिद्ध है।

3 अपनी त्वचा पर अंडे का सफेद हिस्सा लगाएं जो प्रोटीन का भरपूर स्रोत है।

4 गर्भावस्था के दौरान यदि सूर्य की रोशनी में समय बिता रही हों या स्विमिंग करने जा रही हों तो सनस्क्रीन का इस्तेमाल करें।

5 पालक, गाजर, शकरकंद, ब्लूबेरीका, स्ट्राबेरीका, विटामिन ई युक्त खाद्यों, मेवों, एवोकाडो, हरी फूल गोभी तथा साग इत्यादि जैसे एंटी ऑक्सीडैंट्स से भरपूर खाद्यों का सेवन करें क्योंकि इनसे त्वचा को पोषण मिलता है। जो महिलाएं मांसाहारी हैं उनके लिए फिश, अंडे तथा ऑयस्टर्स बढिय़ा विकल्प हैं।

6 स्ट्रैच मार्क्स से बचने के लिए तैलीय खाने की अधिक खपत से बचें। यह एक भ्रांति है कि गर्भस्थ महिला को दो लोगों के बराबर खाना खाना चाहिए। अधिक वजन बढऩे से बचने के लिए प्रोटीन से भरपूर नियमित तौर पर खाना खाएं। वजन बढ़ता है तो स्ट्रैच मार्क्स उभरते हैं।

7 गर्भावस्था के दौरान कसरत करने से त्वचा की लचक बरकरार रहती है। इस प्रकार स्ट्रैच स्ट्रैच मार्क्स कम होते हैं। अपने रक्त प्रवाह को बढिय़ा बनाने के लिए कीजैल एक्साइज करें। आप प्रैगनैंसी योगा का विकल्प भी चुन सकती हैं।

8 स्ट्रैच मार्क्स से खुजली भी हो सकती है परन्तु ऐसा करना नहीं चाहिए। इन पर कैलामाइन ऑयल क्रीम लगाई जानी चाहिए।

सोमवार, 13 जनवरी 2014

ब्लड ग्रुप ए वालों को अधिक होता है गंजापन

एलोपेसिया यानी गंजापन केवल जीन के प्रभाव के कारण ही नहीं होता है बल्कि ब्लड ग्रुप ए के प्रभाव से भी होता है। प्लास्टिक सर्जन डॉ. तेजिंदर भट्टी ने अलग अलग ब्लड ग्रुप्स के ऊपर शोध किया जिसमें पता चला कि ए पॉजीटिव ब्लड ग्रुप के पुरुषों में बाकी ब्लड ग्रुप्स की तुलना में अधिक गंजापन होता है।

डॉ. भट्टी ने बताया कि मरीज पानी, शैंपू की क्वालिटी इत्यादि को गंजेपन का कारण मानते हैं इसके अलावा ब्लड ग्रुप भी उतना ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ए पॉजीटिव ब्लड ग्रुप के लोगों में बी विटामिंस खासतौर पर बायोटिन को ग्रहण(सोखने) की क्षमता कम होती है। जिसके कारण बालों की (मोटाई)थिकनेस कम होती जाती है। एक व्यक्ति के लिए 5 एमजी(mg) बायोटिन रोजाना लेना जरूरी होता है। बायोटिन की ठीक मात्रा शरीर में जाने से बालों की ग्रोथ और बढ़त नार्मल रहती है।

ज्यादातर पुरूष मेल पैट्रन बाल्डनेस के अधिक शिकार होते हैं तो उनमें ए पॉजीटिव ब्लड ग्रुप के पुरुषों में गंजेपन की संभावना अधिक हो जाती है। डॉ. भट्टी ने बताया कि 80 फीसदी केसों में गंजापन करने वाले जीनस मां की ओर से शरीर में आते हैं। अगर आपके नाना या मामा गंजे हैं तो आपके 80 फीसदी गंजे होने के आसार हैं। अद्भुत बात यह है कि मां खुद इस गंजेपन का शिकार नहीं होती है। सिर के आगे के हिस्से में एमपीबी जीनस जड़ों को प्रभावित करते हैं।

रविवार, 12 जनवरी 2014

घरेलू नुस्खों से करें दांतों की रक्षा।

सुंदर, सुडौल और चमकीले दांत एक ओर हमारी सुंदरता को बढ़ाते हैं, वहीं ये हमारे व्यक्तित्व को भी प्रभावशाली बनाते हैं। मानव शरीर का यह अंग हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। सुंदर दांत वालों की हंसमुख प्रकृति और हंसता चेहरा एक प्रसन्नचित व्यक्ति का प्रमाण है।

मानव काया के सुचारू संचालन के लिए जिस ऊर्जा और शक्ति की हमें आवश्यकता है, वह हम भोजन से प्राप्त करते हैं। भोजन का प्रत्येक कण हमारे शरीर को शक्ति, ऊष्मा और स्फूर्ति प्रदान करता है। पाचन क्रिया का पहला कार्य दांतों से ही प्रारम्भ होता है और भोजन को सुपाच्य बनाने में इसका सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान होता है।

अत: भोजन को खूब चबाकर खाना चाहिए ताकि जब चबाया हुआ अन्न पेट में जाए तो दांतों का काम आंतों को न करना पड़े। पूर्ण रूप से चबाकर खाने से हमारे मुंह के लार से घुलकर अन्न का दाना बिल्कुल पिस जाता है जो पाचन क्रिया की पहली सुचारू चेष्टा है। इससे हमारी पाचन शक्ति ठीक रहती है और हम भोजन का शत-प्रतिशत लाभ उठाकर स्वस्थ रहते हैं।

कुछ प्रचलित आजमाए हुए सस्ते और सुविधानुसार उपलब्ध होने वाले सामान तथा उपायों को यहां दिया जा रहा है जिनके पालन से दंत रोगों से बचा जा सकता है।

1 मुंह से दुर्गंध आने पर आम का दातुन नियमित करना चाहिए। कुछ दिन के प्रयोग से मुंह से दुर्गंध आनी समाप्त हो जाएगी।

2 नौसादर, सोंठ, हल्दी और नमक को महीन पीस कर कपड़े में छान लें। फिर सरसों के तेल में मिला कर मंजन करें। इससे पायरिया रोग का भी नाश हो जाएगा और मुंह की सारी दुर्गंध मिट जाएगी।

3 सरसों के तेल में नमक और नींबू का रस मिला कर मंजन करने से भी दांतों को लाभ होता है।

4 मौलसरी के फल या बीज अथवा उसकी छाल का काढ़ा दंत रोगों का नाश करता है।

5 नौसादर और सोंठ को बराबर भाग में लेकर बारीक पीस लें और इसे मंजन की तरह प्रयोग करें। दांत साफ भी रहेंगे और दांतों के दर्द से छुटकारा भी मिलेगा।

6 बादाम के छिलके को आग में जला कर खरल में कूट लें और साफ कपड़े से छान लें। महीन छना हुआ नमक इसमें मिला कर मंजन की तरह रोज प्रयोग करें।

7 पालक का साग पूरे मौसम में खूब खाएं। यह दांतों के लिए बड़ा लाभकारी है।

8.तिल के तेल से दांतों को रगडऩे पर लाभ होता है।

9.मकई के पत्तों को पानी में उबालें और पानी को छान लें। पानी थोड़ा गर्म रहे तो कुल्ला करने पर दांतों को बहुत लाभ होता है।

10 ‘आमचूर’ को खूब महीन पीस कर हल्का गर्म कर मुंह में लगा कर कुल्ला करें। मसूढ़ों का दर्द, सूजन आदि तुरंत दूर होगी।

11 आम की लकड़ी जलाकर मंजन बना लें। इससे मुंह धोने से भी दांतों को लाभ होता है।

12 फिटकरी के पानी से कुल्ला करना भी दांतों के लिए लाभदायक है।

13 लौंग का तेल रूई के फाहे में भिगो कर दांतों पर लगाने से दांतों का दर्द तुरंत दूर हो जाता है।

14 सोया का रस पानी में मिला कर कुल्ला करने से दांत मजबूत और साफ होते हैं।

15 चमेली फूल की पत्ती चबाने से भी दांतों के दर्द में राहत मिलती है।

16 अनार की पत्तियों को सुखा कर चूर्ण बना लें और फिर इसे मंजन की तरह प्रयोग करने से दांत से खून बहना बंद हो जाता है।

17 अमरूद और नीम की कोमल पत्तियों को चबाने से भी दांतों को लाभ होता है।

18 नींबू का रस दांतों के लिए सदा लाभकारी है।

19 टमाटर का रस भी दांतों को स्वस्थ बनाए रखने में सहायक होता है।

20 तुलसी के पांच अंगों (जड़, पत्ते, डंठल, फल और बीज) को लेकर पानी में उबालें। जब आधा पानी रह जाए तो उस काढ़े के गुनगुना रहने पर कुल्ला करें। इससे दांत के कीड़े मर जाएंगे और मसूढ़े का दर्द समाप्त हो जाएगा।

21 तुलसी के पत्ते, लौंग और कपूर मिला कर पीस लें। फिर इसकी छोटी-छोटी गोलियां बना लें। इन गोलियों को दांत के नीचे दबा कर रखने से दांतों का दर्द दूर होता है और मुंह से दुर्गंध का नाश होता है।

22 तुलसी की पत्ती और काली मिर्च पीस कर छोटी गोलियां बना लें। यदि दांतों में दर्द हो तो उस दांत के नीचे गोलियों को दबाने से दांत का दर्द दूर हो जाता है।

23 दांतों की बीमारियों में बबूल बड़ा लाभदायक है। बबूल की लकड़ी को जलाकर कोयला बना लें। इसे महीन पीस कर कपड़े से छान लें। इसे दांतों पर खूब अच्छी तरह मलें और आधे घंटे तक कुल्ला न करें। दांतों का दर्द, दांत का हिलना, दांतों में से खून आना, मसूढ़ों का फूलना सब दूर हो जाता है।

24 सेंधा नमक आग में जला कर बारीक पीस लें और छान कर मंजन की तरह दांतों पर सुबह-शाम मलें। दांतों का दर्द और कीड़े आदि नष्ट होकर दांत मजबूत हो जाते हैं।

25 प्रतिदिन दांतों पर शहद मल कर ताजे पानी से कुल्ला करें। दांत साफ और चमकीले हो जाएंगे तथा दांतों का दर्द, मसूढ़ों की सूजन और दांतों से खून का बहना आदि बंद हो जाएगा।

26 रीठे के बीजों को जला कर चूर्ण बना लें और फिटकरी भून कर बारीक पीस लें, दोनों को मिला कर मंजन की तरह दांतों पर लगाएं। इससे हिलते दांत मजबूत हो जाएंगे तथा दांत का दर्द दूर हो जाएगा।

27 तुलसी की पत्ती सुबह-शाम चबाने से मुंह की दुर्गंध दूर होती है।

28 सौंफ और लौंग को मुंह में लेकर देर तक चबाते और चूसते रहें। इससे भी मुंह की दुर्गंध मिट जाती है।

29 फिटकरी को महीन पीस कर शहद के साथ मिला कर यदि दांतों पर मलें तो दांतों का गिरना रुक जाता है और वे मजबूत हो जाते हैं।

30 जूही फूल को पानी में उबाल कर काढ़ा बना कर कुल्ला करने से दांत की परेशानियां दूर होती हैं।

31 खाने का सोडा और हल्दी मिला कर दिन में तीन बार मंजन करने से हिलते दांत मजबूत हो जाते हैं।

32 पिपली, सेंधा नमक और जीरा प्रत्येक 20-20 ग्राम लेकर बारीक पीस कर मंजन बना लें। मंजन से सुबह-शाम दांत साफ करने से दांतों का हिलना बंद होता है।

33 जामुन की पत्तियों को चबाने से भी हिलते दांतों में फायदा होता है।

34 मुलेठी का दातुन करने से भी दांत रोग में लाभ होता है।

35 भुनी हुई लौंग चबाने से भी हिलते दांत की जड़ मजबूत होती है।

36 गन्ना चूसने से दांत मजबूत होते हैं तथा हिलते दांतों को नवजीवन मिलता है।

37 मौसम के अनुसार फलों का रस पीने से दांत निरोग रहते हैं।

हरी सब्जियों के सेवन से दांत व मसूढ़े मजबूत रहते हैं।

38 सुपारी व गुटखे का प्रयोग भूल कर भी न करें।

शुक्रवार, 10 जनवरी 2014

अनार में सेहत का राज

एक अनार सौ बीमार वाली कहावत आपने सुनी ही होगी। मीठा अनार तीनों दोषों का शमन करने वाला, तृप्तिकारक, वीर्यवर्धक, हल्का, कसैले रसवाला, बुद्धि तथा बलदायक एवं प्यास, जलन, ज्वर, हृदयरोग, कण्ठरोग, मुख की दुर्गन्ध तथा कमजोरी को दूर करने वाला है।

खटमिट्ठा अनार अग्निवर्धक, रूचिकारक, थोड़ासा पित्तकारक व हल्का होता है। पेट के कीड़ों का नाश करने व हृदय को बल देने के लिए अनार बहुत उपयोगी है। इसका रस पित्तशामक है। इससे उल्टी बंद होती है। अनार पित्तप्रकोप, अरूचि, अतिसार, पेचिश, खांसी, नेत्रदाह, छाती का दाह व व्याकुलता दूर करता है।

सिर दर्द: गर्मियों में सिरदर्द हो, लू लग जाये, आँखें लाल-लाल हो जायें तब अनार का शरबत गुणकारी सिद्ध होता है। इसका रस स्वरयंत्र, फेफड़ों, हृदय, यकृत, आमाशय तथा आँतों के रोगों में लाभप्रद है। अनार खाने से शरीर में एक विशेष प्रकार की चेतना सी आती है।

पित्तरोग: ताजे अनार के दानों का रस निकालकर उसमें मिश्री डालकर पीने से हर प्रकार का पित्तरोग शांत होता है।

अरुचि रोग: अनार के रस में सेंधा नमक व शहद मिलाकर लेने से अरूचि मिटती है।

खाँसी: अनार की सूखी छाल आधा तोला बारीक कूटकर, छानकर उसमें थोड़ा सा कपूर मिलायें। यह चूर्ण दिन में दो बार पानी के साथ मिलाकर पीने से भयंकर कष्टदायक खांसी मिटती है।

अर्श या बवासीर: अनार के छिलके का चूर्ण नागकेशर के साथ मिलाकर देने से अर्श (बवासीर) का रक्तस्राव बंद होता है।

पेट के कीड़ें: अनार का रस शरीर में शक्ति, स्फूर्ति तथा स्निग्धता लाता है। बच्चों के पेट में कीड़े हों तो उन्हें नियमित रूप से सुबह-शाम 2-3 चम्मच अनार का रस पिलाने से कीड़े नष्ट हो जाते हैं। अनार का छिलका मुँह में डालकर चूसने से खाँसी में लाभ होता है।

बुधवार, 8 जनवरी 2014

सर्दियों में थकान का ज्यादा होना

थकान के लक्षण आप ऊर्जा की कमी महसूस करते हैं। अक्सर आलस और उत्साह की कमी पाते हैं। हमेशा उनींदा महसूस करते हैं। आपकी ध्यान केंद्रित करने की क्षमता कम हो जाती है। निर्णय लेने में कठिनाई होती है। कई बार अवसादग्रस्त महसूस करते हैं।

आयरन की कमी बढ़ाती है थकान : थकान का सबसे सामान्य चिकित्सकीय कारण है आयरन की कमी यानी एनीमिया। यह 20 में से एक पुरुष और मेनोपॉज के स्तर को पहुंच चुकी महिलाओं में होता है, लेकिन यह समस्या उन महिलाओं में 25-30 प्रतिशत होती है, जिन्हें पीरियड्स होते हैं। गर्भवती महिलाएं भी आमतौर पर एनीमिया से पीडित होती हैं। अगर महिलाएं प्रतिदिन 18 मिलीग्राम और पुरुष 8 मिलीग्राम से कम आयरन ले रहे हैं तो उनके शरीर को ठीक तरह से काम करने के लिए संघर्ष करना पड़ेगा। मांस और हरी पत्तेदार सब्जियां आयरन के अच्छे स्त्रोत हैं। आयरन हीमोग्लोबीन के निर्माण के लिए जरूरी है। हीमोग्लोबिन का स्तर सीधे तौर पर हमारी ऊर्जा के स्तर को प्रभावित करता है, क्योंकि इसकी कमी से अंगों को आॅक्सीजन कम मिलती है। पुरुषों के लिए हीमोग्लोबिन का स्तर 14-18 ग्राम/डीएल और महिलाओं में इसकी मात्रा 12-16ग्राम/डीएल होनी चाहिए। कितने कारगर हैं

सप्लीमेंट्स : कई लोग थकान महसूस होने पर एनर्जी ड्रिंक का सहारा लेते हैं, लेकिन एनर्जी ड्रिंक शुगर और कैफीन से भरपूर होते हैं। ये कुछ समय के लिए तो ऊर्जा दे देते हैं, लेकिन यह आपके लिए कई समस्याएं भी पैदा कर सकते हैं। ज्यादा कैफीन के सेवन से ब्लड प्रेशर हाई हो सकता है, जबकि शुगर वजन बढ़ाने का काम करती है। मल्टीविटामिन की गोलियां बिना डॉक्टर की सलाह के न लें।

क्यों होती है थकान : सर्दियों में दिन छोटे और रातें बड़ी हो जाती हैं और आपके जागने और सोने का चक्र गड़बड़ा जाता है, जिससे थकान होती है। सर्दियों में सूरज की रोशनी कम होने का अर्थ है कि आपका मस्तिष्क ज्यादा मात्रा में मेलैटोनिन हार्मोन बना रहा है, जो आपको उनींदा बनाता है, क्योंकि इस स्लीप हार्मोन का सीधा संबंध रोशनी और अंधेरे से होता है। सर्दियों में जब सूरज जल्दी छिप जाता है तो हमारा मस्तिष्क मेलैटोनिन बनाने लगता है, जिससे सांझ ढलते ही हमारा सोने का मन करता है और हम जल्दी बिस्तर में जाना चाहते हैं। सर्दियों में हमारी शारीरिक सक्रियता भी थोड़ी कम हो जाती है। हम थका-थका सा महसूस करते हैं। कभी-कभी यह थकावट और आलस गंभीर विंटर डिप्रेशन का संकेत भी हो सकती है। इसे डॉक्टरी भाषा में सीजनल अफेक्टिव डिसआर्डर कहते हैं। हर पंद्रह में से 1 व्यक्ति विंटर डिप्रेशन का शिकार होता है। यही वजह है कि सर्दियों में आत्महत्या के मामले बाकी मौसमों के मुकाबले बढ़ जाते हैं। इसी कारण इसे आत्महत्याओं का मौसम भी कहा जाता है। इससे बचने के लिए जितना ज्यादा से ज्यादा हो सके, प्राकृतिक प्रकाश में रहे। विटामिन डी की कमी से भी थकावट होती है। सर्दियों में अपने भोजन में सोया उत्पादों, दुग्ध उत्पादों, अंडे, मांस और चिकन की मात्रा बढ़ा दें।

मंगलवार, 7 जनवरी 2014

कुछ सामान्य लक्षणों से जाने कैंसर का संकेत

कुछ ऐसे सामान्य लक्षण हो सकते हैं जिन्हें आप रोजमर्रा की थकान समझ कर छोड़ सकती हैं। यदि आप भी इनमें से कोई लक्षण निरंतर तौर पर खुद में देखती हैं तो जांच अवश्य करवाएं...

बहुत अधिक वजन घटना

यदि डाइटिंग करने या कसरत के कारण आपका वजन कम हो रहा है तो यह ठीक बात नहीं है परंतु यदि आप जीवन शैली संबंधी आदतों में कोई परिवर्तन देखे बिना अपना वजन घटता हुआ देख रही हैं तो यह कई प्रकार के कैंसर से जुड़ा हो सकता है जिनमें पैंक्रियास या पेट का कैंसर शामिल हैं।

बुखार

लगातार बना रहने वाला बुखार लिम्फोमा या ल्यूकीमिया जैसे ब्लड कैंसर का प्रारंभिक संकेत हो सकता है। यदि आपको लगातार बुखार रहता है तो आपको डाक्टर से अवश्य मिलना चाहिए। यहां तक कि यदि यह कैंसर नहीं है तो भी गंभीरता से इसका उपचार होना चाहिए।

दर्द

हालांकि दर्द के कई कारण हो सकते हैं परंतु लगातार रहने वाले सिरदर्द दिमाग के कैंसर के प्रारंभिक संकेत हो सकते हैं। साथ ही कमर दर्द, रैक्टल या ओवेरियन कैंसर का संकेत हो सकता है। यदि आपको लगातार दर्द रहता हो तो अपने डाक्टर से सलाह अवश्य लें।

खांसी

यदि आप को खांसी रहती है जो जाती नहीं है तो यह फेफड़ों के या श्वास नली के कैंसर का संकेत हो सकती है। हो सकता है कि यह मौसम से संबंधित एलर्जी हो फिर भी सुनिश्चित करने के लिए जांच जरूरी है।

शरीर में मांस की गांठें

यदि आपकी त्वचा में मांस की गांठें हैं तो डर्मैटोलॉजिस्टस से संपर्क करें। यदि ये गांठें आपके वक्ष, अंडकोष या लिम्फ नोड्स के नजदीक हैं तो विशेष ध्यान दें। बांहों, टांगों या शरीर के अन्य हिस्सों में यदि गांठें दिखें तो डरें नहीं। ये नुक्सानरहित सिबेशियस सिस्ट्स हो सकती हैं।

असामान्य रक्तस्राव

असामान्य रक्तस्राव कई प्रकार के कैंसर का संकेत हो सकता है। खांसते वक्त खून आने का मतलब है फेफड़ों का कैंसर, मल में खून आने का अर्थ है कोलन या रैक्टर कैंसर, पेशाब में खून आने का अर्थ है ब्लैडर कैंसर तथा योनि में से लगातार रक्तस्राव का संबंध सर्वाइकल कैंसर से हो सकता है। यदि आपके निप्पल से खून निकलता हो तो यह छाती का कैंसर है।

थकान

लगातार रहने वाली थकान जो आराम करने से भी दूर न होती हो वह भी कैंसर का एक संकेत हो सकती है।

सोमवार, 6 जनवरी 2014

हाथों की त्वचा का रंग भी सेहत के बारे में कुछ बताता है


हैल्थ और पर्सनैलिटी का आईना होते हैं हाथ, इनमें हुनर
ही नहीं, स्वास्थ्य के भी राज हैं। पहले वैद्य एवं हकीम
रोगी की आंखों, हाथ, नाखून और त्वचा की रंगत और शरीर के
तापमान से ही रोग का पता लगा लेते थे, आज भले ही नई
तकनीकें इस क्षेत्र में आ गई हैं परंतु पुरानी तकनीक से हम
रोग की दस्तक को पहले ही पहचान कर उसका उपचार
करा सकते हैं।
आप भी अपने ही नहीं बल्कि दूसरों के हाथों पर भी नजर रख
उनके स्वास्थ्य के बारे में काफी हद तक जान सकती हैं
ताकि समय रहते आप उसका उपचार भी ढूंढ सकें।
हालांकि किसी भी रोग की सही जानकारी के लिए आज कई
प्रकार के टैस्ट कराए जाते हैं पर वे निशानियां आज
भी नहीं बदलीं और स्वास्थ्य में होने वाले बदलावों को सहज
ही बता जाती हैं।

नाखून

शनिवार, 14 दिसंबर 2013

जोड़ों के दर्द से राहत पाने के लिए धूप जरूरी

गठिया के रोगियों के लिए सावधान होने का समय आ गया है। सर्दियों की शुरुआत से ही खान-पान से लेकर शारीरिक सक्रियता का ध्यान रखना दर्द में राहत देगा।
खान-पान नियंत्रित करें
सबसे पहले तो सर्दियों में खान-पान पर विशेष ध्यान देना होगा। ज्यादा खाने-पिने की आदतों को नियंत्रित करना होगा। यदि किसी व्यक्ति को गठिया है और वह ज्यादा खाए तो उसका वजन और बढ़ सकता है।वजन से पैरों पर और जोर बढ़ेगा तो दर्द और बढ़ेगा,इसलिए वजन कम करने पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। खाने में वे चीजें कम लें,जो वजन बढ़ाने वाली होती हैं। मद्यपान एवं धूम्रपान से परहेज करना चाहिए।
शारीरिक गतिविधियां जरी रखें
औषधियों के साथ-साथ जोड़ों के व्यायाम,शारीरिक क्रियाशीलता,मांसपेशियों के व्यायाम या फिजियोथेरेपी गठिया के उपचार में भूमिका निभाते हैं। यह दर्द और जकड़न को कम करने में सहायक सिद्ध होते हैं।व्यायाम से जोड़ों में लचीलापन,गतिशीलता एवं मांसपेशियों को शक्ति मिलती है। तीन प्रकार के व्यायाम करने चाहिए। ● गतिशीलता को बढ़ाने वाले व्यायाम,जिनमें जोड़ों की सामान्य स्थिति बनी रहे एवं उनमें जड़ता उत्पन्न न हो पाए। ● मांसपेशियों को शक्ति प्रदान करने वाले व्यायाम। ● एरोबिक व्यायाम,जिनसे दिल में रक्त संचालन तेज हो और वजन भी नियंत्रित रहे।वजन जितना कम होगा,रोग उतनी जल्दी ठीक होगा।
धूप सेकें
सर्दियों में एक तो धूप कम आती है,दूसरे लोग बाहर भी कम निकलते हैं। गठिया से ग्रसित और इससे बचने के लिए लोगों को ज्यादा से ज्यादा धूप सेंकनी चाहिए।धूप से विटामिन-डी मिलता है,जिसकी कमी से प्रतिरोधक तंत्र कमजोर होने लगता है।विटामिन-डी हड्डियों के लिए खुराक का कार्य करता है।
सकारात्मक सोच रखें
कई बार सर्दियों में लोग उदास रहने लगते हैं। रोगियों की तकलीफ बढ़ने लगती है तो वे निराश व नकारात्मक हो जाते हैं। मौसम से उत्पन्न उदासी से बचने के लिए परिजनों के साथ समय बिताएं और विश्राम एवं श्रम में संतुलन बनाएं।

शनिवार, 10 अगस्त 2013

दिल के लिए गाएं

आप बेशक बेसुरा गाते हों,फिर भी गाएं। खासकर दोस्तों के साथ मिलकर गाना जरुरी है क्योंकि गाने और गुनगुनाने का सीधा संबंध आपके दिल की धडकनों से है।

स्वीडेन के डॉक्टर्स की एक रिसर्च बताती है कि गाने का सेहत के साथ गहरा रिश्ता है। इस रिसर्च टीम में वैज्ञानिक और संगीतकार दोनों ही शामिल थे। इससे यह पता चला कि सिंगर्स के सांस लेने की क्रिया और दिल की धडकन में किस तरह का संयोजन होता है। सांस लेने की क्रिया से दिल धडकनों और ब्लड प्रेशर पर खासा असर पड़ता है,इस तथ्य से हम अनजान नहीं हैं। इसीलिए प्राणायाम जैसे ब्रीदिंग एक्सरसाइज़ चलन में आए।

लेकिन दूसरे अध्ययन से यह बात सामने आई कि ब्रीदिंग रेट और हार्ट रेट के बदलाव एक-दुसरे से जुड़े हुए हैं। इतना ही नहीं,वहां 'रेस्परेट' नाम की एक मशीन भी बनाई गई है,जो स्लो ब्रीदिंग के तरीके बताती है। स्लो ब्रीदिंग के मायने प्रति मिनट दस बार से भी कम सांस लेना है। हाई ब्लडप्रेशर का उपचार करने के लिए भी यह प्रकिया फायदेमंद बताई गई है।

अब बात सिंगिंग की है तो इसका परिणाम देखने के लिए स्वीडेन में एक सिंगिंग सेसन के बाद हार्ट रेट में होने वाले बदलाव को नोटिस किया गया। यह भी देखा गया कि गाने के बाद ओक्सीटोसिन का लेवल बढ़ जाता है, जिससे अच्छी सेहत को बढ़ावा मिलता है।

इसकी वजह यह है कि 'रेगुलेटेड ब्रीदिंग' गाने की जरूरत है। ब्रीदिंग और हार्ट रेट ऑटोनोमस नर्वस सिस्टम से जुड़े होते हैं। हालांकि, अकेले गाने की तुलना में ग्रुप में गाने के फायदे ज्यादा हैं।

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

दमा रोग को बेकाबू न होने दें

दमा यानि ब्रोंकिअल अस्थमा एक तकलीफ़ देह श्वांस रोग है,जो किसी भी उम्र,लिंग और आर्थिक वर्ग के व्यक्ति को हो सकता है।यह एक व्यापक रोग है और इसके कई रूप हैं। पर मूलत: या इसमें सांस की नलियाँ बार-बार कुछ समय के लिए सिकुड़ जाती हैं।तब बीमार को सांस लेते और छोड़ते समय तकलीफ़ होती है, छाती में सांय-सांय होती है, भीतर बलगम जमा हुआ मालूम होता और दम फूलने लगता है।दवाओं और आराम करने से प्राय: राहत तो मिल जाती है, लेकिन रोग कभी भी फिर से हो जाता है।

अभी हाल में न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में इसी रोग के बावत एक जापानी अध्ययन की रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। इसके मुताबिक बीमारी के लक्षण रोग की गम्भीरता का पूरा पता नहीं देते और इसलिये मरीज इस भुलावे में रह जाता है कि उसका रोग नियन्त्रण में है, जबकि भीतर श्वांस प्रक्रिया में आये व्यवधान के फलस्वरूप शरीर की पूरी जैव-रसायनिकी अस्त-व्यस्त हो जाती है। शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाने पर भी उसके स्पष्ट लक्षण नहीं दिखाई देते।

इसलिए अध्ययनकर्ताओं का यह मानना है कि स्थिति का आंकलन रोगी की रक्त जांच से ही किया जा सकता है। जांच करके यह पता लगाया जा सकता है कि रक्त में ऑक्सीजन और कार्बन-डाई-ऑक्साइड किस मात्रा में है और रक्त की पी.एच.ठीक तो है। गंभीर वर्ग के रोगियों के लिये यह जानकारी काफी महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकती है।

यों तो रोग पर नजर रखने के लिए रोगी अपने डॉक्टर की सलाह से 'पीक एक्सपीरेटरी फ्लो रेट'मापने वाला साधारण सा उपकरण भी प्रयोग कर सकते हैं। सांस छोड़ते समय कोई कितनी ज्यादा हवा बिना अड़चन के बाहर छोड़ सकता है इसका आंकलन इस छोटे से उपकरण द्वारा घर पर ही संभव है। इससे यह पता रहता है कि रोग कितना काबू में है। गौरतलब बात यह है कि दमा रोग में ज्यादा तकलीफ सांस बाहर छोड़ते समय ही होती है।

गुरुवार, 28 जून 2012

कंप्यूटर से आंखोँ का बचाव

आज के हाईटेक जमाने मेँ कंप्यूटर के बिना काम करने की कल्पना भी नहीँ की जा सकती है। जब हर रोज सात-आठ घंटे कंप्यूटर पर काम करना हो तो आंखोँ पर इसका प्रभाव तो पड़ता ही है। कंप्यूटर से होने वाली इन तकलीफोँ को कंप्यूटर विजन सिँड्रोम का नाम दिया गया है। समय रहते इसके लक्षणोँ को समझकर बचाव के लिए उपाय भी किये जा सकते हैँ।

कंप्यूटर विजन सिंड्रोम के लक्षण

1. आंख और सिर मेँ भारीपन।
2. धुंधला दिखना।
3. आंख मेँ जलन या खुजली।
4. आंखोँ का सूखा रहना।
5. पास का देखने मेँ दिक्कत।
6. रंगोँ को पहचानने मेँ मुश्किल।
7. आंखोँ के अलावा गर्दन, कमर और कंधोँ मेँ दर्द होना।
ये सभी कंप्यूटर विजन के लक्षण हैँ।

आंखोँ मेँ तकलीफ के डर से कंप्यूटर को तो नहीँ छोड़ा जा सकता है, क्योँ ना कुछ बुरी आदतोँ को छोड़ दिया जाए और फायदे वाले टिप्स आजमा लेँ।

इन उपायोँ से बचायेँ आंखेँ

1. कंप्यूटर पर काम करते समय आंख की पलकोँ को थोड़ी-थोड़ी देर बाद झपकाते रहना चाहिए। सामान्य अवस्था मेँ व्यक्ति एक मिनट मेँ 20 से 22 बार पलकोँ को झपकाता है। कंप्यूटर पर काम करते समय लोग एक मिनट मेँ सिर्फ 7 से 8 बार ही पलकोँ को झपका पातेँ हैँ। पलकोँ को जल्दी-जल्दी झपकाने से पलकेँ आंख की पुतली (कोर्निया और कन्जंक्टाइवा) के ऊपर आंसू फैलाने का काम करती हैँ और आंख को सूखा होने से बचाती हैँ।

2. कंप्यूटर पर काम करते समय कंप्यूटर वाले चश्मेँ का इस्तेमाल करेँ तो ज्यादा बेहतर होगा। इस तरह के चश्मेँ मेँ ट्राइपोकल लेंस और प्रोगेसिव लेँस के मुकाबले बीच के देखनेँ का क्षेत्र बड़ा होता है।

3. कंप्यूटर खिड़की के सामने नहीँ होना चाहिए। स्क्रीन की रोशनी और कमरे की रोशनी की मात्रा बराबर होनी चाहिए।

4. कंप्यूटर स्क्रीन आंख के स्तर से 15 डिग्री नीचे की तरफ होनी चाहिए। स्क्रीन और आंख के बीच लगभग 25 इंच की दूरी होनी चाहिए।
5. कंप्यूटर पर काम करते समय हर आधा घंटे बाद 15-20 सेकैँड के लिए किसी दूर की वस्तु को देखना चाहिए। अच्छा होगा कि हर घंटे एक छोटा ब्रेक लिया जाए।

6. दूध, हरी सब्जी, मौसमी फलोँ का प्रचूर मात्रा मेँ सेवन भी बचाव का एक उपाय है।

बुधवार, 11 जनवरी 2012

फैटी लिवर(जिगर)


बीमारी का स्वरूप

जैसा कि मर्ज के नाम से ही स्पष्ट है कि इस मर्ज मेँ वसा का एक खास प्रकार ट्राईग्लिसराइड्स का स्तर लिवर(जिगर) मेँ बढ़ जाता है। वसा का यह बढ़ा हुआ स्तर आंशिक तौर पर लिवर के स्वस्थ ऊतकोँ(टिश्यूज) को बदल देता है। इस स्थिति मेँ लिवर का आकार थोड़ा बढ़ जाता है और यह कुछ भारी भी हो जाता है और यह पीलापन लिए दिखता है। इस मर्ज की शिकायत गर्भावस्था के कारण, अत्यधिक मात्रा मेँ शराब का सेवन या फिर एल्कोहलिक सिरोसिस नामक मर्ज के कारण संभव है।

एक शोध के द्वारा यह निष्कर्ष निकला है कि हाईग्लाईसीमिक फूड्स के अंतर्गत व्हाइट ब्रेड, चावल, शुगर और ब्रेकफास्ट मेँ प्रयोग किए जाने वाले 'रेडी टू ईट सीरियल्स' जैसे फास्ट फूड्स मैगी, बर्गर आदि को शामिल किया जा सकता है। ये खाए जाने वाले पदार्थ शरीर मेँ ब्लड शुगर के स्तर को तेजी से बढ़ाते हैँ। इस कारण कालांतर मेँ फैटी लिवर की शिकायत संभव है।
वहीँ लो ग्लाईसीमिक भोज्य पदार्थ जैसे फल, सब्जियां, बीन्स, फलियां और साबुत अनाज आदि ब्लड शुगर के स्तर को धीरे-धीरे कम करते हैँ। फैटी लिवर मेँ लो ग्लाईसीमिक आहार ग्रहण करेँ।

कारगर सुझाव

* फाइबर युक्त भोज्य पदार्थोँ को आहार मेँ स्थान देँ। फलोँ, सब्जियोँ, बीन्स और साबुत अनाजोँ मेँ फाइबर पर्याप्त मात्रा मेँ पाया जाता है।
* सब्जियोँ के ताजा रस मेँ एंटीऑक्सीडेँट्स पर्याप्त मात्रा मेँ पाये जाते हैँ। स्वच्छता से तैयार किय गए जूस लिवर के लिए किसी टॉनिक से कम नहीँ हैँ।
* आपके आहार मेँ हरे रंग के भोज्य पदार्थ कि प्रचुरता होना लिवर की सेहत के लिए अच्छा है।
* घी के स्थान पर स्वास्थ्यकर तेलोँ जैसे जैतून , कैनोला, राइस ब्रान(चावल की भूसी से निकला) तेल का प्रयोग करेँ।
* यह बात सुनिश्चित करेँ कि आप विभिन्न भोज्य पदार्थोँ से जितनी कैलोरी ग्रहण करते हैँ, उसमेँ 30 फीसदी भाग से अधिक वसा न हो। इस क्रम मेँ डाइटीशियन की मदद लेँ।
*प्रोसेस्ड फूड्स की तुलना मेँ जहाँ तक संभव हो, आर्गेनिक(कार्बनिक) भोज्य पदार्थोँ को ही ग्रहण करेँ। ऐसा इसलिए क्योँकि आर्गेनिक भोज्य पदार्थोँ मेँ ही कहीँ अधिक पोषक तत्व पाये जाते हैँ, क्योँकि इनकी खेती मेँ रासायनिक खादोँ का प्रयोग नहीँ होता। आर्गेनिक भोज्य पदार्थ लिवर की सेहत के लिए अच्छे माने जाते हैँ। वहीँ प्रोसेस्ड फूड्स को सुरक्षित बनाए रखने के लिए विभिन्न केमिकल्स और परिरक्षकोँ(प्रीजर्वेँटिव्स) का प्रयोग किया जाता है। इसलिए प्रोसेस्ड फूड्स को पचाने मेँ जिगर पर काफी जोर पड़ता है।

 
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