बीमारी का स्वरूप
जैसा कि मर्ज के नाम से ही स्पष्ट है कि इस मर्ज मेँ वसा का एक खास प्रकार ट्राईग्लिसराइड्स का स्तर लिवर(जिगर) मेँ बढ़ जाता है। वसा का यह बढ़ा हुआ स्तर आंशिक तौर पर लिवर के स्वस्थ ऊतकोँ(टिश्यूज) को बदल देता है। इस स्थिति मेँ लिवर का आकार थोड़ा बढ़ जाता है और यह कुछ भारी भी हो जाता है और यह पीलापन लिए दिखता है। इस मर्ज की शिकायत गर्भावस्था के कारण, अत्यधिक मात्रा मेँ शराब का सेवन या फिर एल्कोहलिक सिरोसिस नामक मर्ज के कारण संभव है।
एक शोध के द्वारा यह निष्कर्ष निकला है कि हाईग्लाईसीमिक फूड्स के अंतर्गत व्हाइट ब्रेड, चावल, शुगर और ब्रेकफास्ट मेँ प्रयोग किए जाने वाले 'रेडी टू ईट सीरियल्स' जैसे फास्ट फूड्स मैगी, बर्गर आदि को शामिल किया जा सकता है। ये खाए जाने वाले पदार्थ शरीर मेँ ब्लड शुगर के स्तर को तेजी से बढ़ाते हैँ। इस कारण कालांतर मेँ फैटी लिवर की शिकायत संभव है।
वहीँ लो ग्लाईसीमिक भोज्य पदार्थ जैसे फल, सब्जियां, बीन्स, फलियां और साबुत अनाज आदि ब्लड शुगर के स्तर को धीरे-धीरे कम करते हैँ। फैटी लिवर मेँ लो ग्लाईसीमिक आहार ग्रहण करेँ।
कारगर सुझाव
* फाइबर युक्त भोज्य पदार्थोँ को आहार मेँ स्थान देँ। फलोँ, सब्जियोँ, बीन्स और साबुत अनाजोँ मेँ फाइबर पर्याप्त मात्रा मेँ पाया जाता है।
* सब्जियोँ के ताजा रस मेँ एंटीऑक्सीडेँट्स पर्याप्त मात्रा मेँ पाये जाते हैँ। स्वच्छता से तैयार किय गए जूस लिवर के लिए किसी टॉनिक से कम नहीँ हैँ।
* आपके आहार मेँ हरे रंग के भोज्य पदार्थ कि प्रचुरता होना लिवर की सेहत के लिए अच्छा है।
* घी के स्थान पर स्वास्थ्यकर तेलोँ जैसे जैतून , कैनोला, राइस ब्रान(चावल की भूसी से निकला) तेल का प्रयोग करेँ।
* यह बात सुनिश्चित करेँ कि आप विभिन्न भोज्य पदार्थोँ से जितनी कैलोरी ग्रहण करते हैँ, उसमेँ 30 फीसदी भाग से अधिक वसा न हो। इस क्रम मेँ डाइटीशियन की मदद लेँ।
*प्रोसेस्ड फूड्स की तुलना मेँ जहाँ तक संभव हो, आर्गेनिक(कार्बनिक) भोज्य पदार्थोँ को ही ग्रहण करेँ। ऐसा इसलिए क्योँकि आर्गेनिक भोज्य पदार्थोँ मेँ ही कहीँ अधिक पोषक तत्व पाये जाते हैँ, क्योँकि इनकी खेती मेँ रासायनिक खादोँ का प्रयोग नहीँ होता। आर्गेनिक भोज्य पदार्थ लिवर की सेहत के लिए अच्छे माने जाते हैँ। वहीँ प्रोसेस्ड फूड्स को सुरक्षित बनाए रखने के लिए विभिन्न केमिकल्स और परिरक्षकोँ(प्रीजर्वेँटिव्स) का प्रयोग किया जाता है। इसलिए प्रोसेस्ड फूड्स को पचाने मेँ जिगर पर काफी जोर पड़ता है।