लक्षण:-
इस रोग की शुरुआती अवस्था में लक्षण स्पष्ट रूप से प्रकट नहीं होते। रोग के लक्षण काफी हद तक अल्सर या पेट के अन्य विकारों जैसे होते हैं, जिन्हें अक्सर लोग नजरअंदाज कर देते हैं। फिर भी इन लक्षणों के प्रकट होने पर सजग हो जाना चाहिए..
● अक्सर बदहजमी की शिकायत।
● पेट में अक्सर दर्द महसूस करना।
● भूख में कमी महसूस होना और खाए बगैर पेट भरा हुआ महसूस करना।
● काले रंग का मल निकलना।
● खाना खाने के बाद उल्टी होना।
● जी मिचलाना।
● वजन का कम होते जाना।
●पीड़ित व्यक्ति का रक्त की कमी (एनीमिया) से ग्रस्त होना।
इलाज:- अगर समय रहते इन समस्याओं में सुधार न हो रहा हो, तो पीड़ित लोगों को गैस्ट्रोएन्टेरोलॉजी विशेषज्ञ से परामर्श लेने में देर नहीं करना चाहिए। विशेषज्ञ डॉक्टर को अगर रोगी में पेट के कैंसर का अंदेशा होता है, तो डॉक्टर एंडोस्कोपी करते हैं जिससे रोगी में कैंसर होने की जानकारी मिल जाती है। कैंसर के पता चलने के बाद गैस्ट्रोएन्टेरोलॉजी विशेषज्ञ द्वारा एंडोस्कोपिक अल्ट्रासाउंड ( ई यू एस) के जरिये बीमारी की गहन जानकारी हासिल की जाती है। इसके बाद एंडोस्कोपिक सर्जन एंडोस्कोपिक विधि द्वारा पेट के कैंसरग्रस्त भाग को ऑपरेशन के बगैर निकाल देते हैं। इस प्रक्रिया में एंडोस्कोप और दूसरे उपकरणों की मदद से कैंसर टिश्यू या दूसरे असामान्य टिश्यू को पाचन तंत्र (डाइजेस्टिव सिस्टम) से हटा दिया जाता है।
एंडोस्कोपिक अल्ट्रासाउंड(ई यू एस)प्रक्रिया के फायदे
● इस प्रक्रिया के द्वारा ऑपरेशन के बगैर पेट के कैंसर के बारे में गहन जानकारी हासिल कर ईयूएस द्वारा ही इलाज किया जाता है।
● सीटी स्कैन और एक्स रे की तरह इसमें रेडिएशन नही होता।
● इससे रोगी सर्जरी करवाने से बच सकता है।
● रोगी को बहुत कम समय के लिए अस्पताल में रखा जाता है।
● यह तकनीक काफी सटीक और सुरक्षित है।
ई यू एस और पारंपरिक एंडोस्कोपी में फर्क:- पारंपरिक एंडोस्कोपी में डॉक्टर और सर्जन रोगी के पेट की सिर्फ सबसे अंदरूनी पर्त (लाइनिंग) को ही देख सकते हैं, लेकिन विशेषज्ञ डॉक्टरों को 'ई यू एस' पेट की सभी पर्र्ते देखने में मदद करता है। इसके अलावा पेट के बाहर के अंगों को भी अच्छी तरह से देखा जा सकता है। ईएसयू प्रक्रिया अल्ट्रासांउड और एंडोस्कोपी विधि का मेल है। रोग की डाइग्नोसिस कर इसी प्रक्रिया के जरिये रोग का सटीक व कारगर इलाज संभव है। इस प्रक्रिया की मदद से गैस्ट्रिक कैंसर का शुरुआती अवस्था में पता लगाकर कारगर इलाज संभव है।
(डॉ.रणधीर सूद सीनियर गैस्ट्रोइंटेरोलॉजिस्ट, मेदांता दि मेडिसिटी, गुड़गांव)