शनिवार, 17 सितंबर 2011

सपनोँ मेँ भी महिलाओँ से भेदभाव


रात मेँ सोते समय सपने
देखना एक आम बात है।
हम सब कुछ हसीन सपने
देखते हैँ लेकिन कभी-कभी
सपने हमेँ अच्छा-खासा डरा
भी देते हैँ।

विशेषज्ञोँ के दावे को सही
माने तो सपनोँ की दुनिया
मेँ भी महिलाओँ के साथ
भेदभाव होता है। एक
रिसर्च के मुताबिक पुरूषोँ
के मुकाबले महिलाओँ को
ज्यादा डरावने सपने
दिखाई देते हैँ।

शोधकर्ताओँ का कहना है
कि रात को सोते वक्त
महिलाओँ को आने वाले
सपने मेँ हार्मोन महत्वपूर्ण
भूमिका निभाता है। शोध
से यह तथ्य सामने आया
है कि सपने के विषय तय
करने मेँ महिलाओँ के
हार्मोन चक्र की भूमिका
होती है। माहवारी से पहले
महिलाएं ज्यादा भावनात्मक
और डरावने सपने देखती हैँ
महावारी की वजह से
शरीर के तापमान मेँ आया
अंतर सपनो की जड़ है।

शोधदल की प्रमुख डाँक्टर
जेन्नी पार्कर का कहना है कि
माहवारी से महिलाएं
ज्यादा आक्रमक सपने
देखती हैँ। गर्भ के दौरान भी
सपनोँ के विषय मेँ बदलाव
आता है क्योँकि शरीर मेँ
हार्मोन का स्तर बढ़ जाता
है। साधारण महिलाएं भी
पुरूषोँ के मुकाबले अधिक
डरावने सपने देखती हैँ।


सपनोँ का मतलब :-



किसी का पीछा करना
:-
समस्या का सामना करने
से बचना, यह आपके
व्यक्तित्व को भी दिखाता है।


गिरना
:- खुद को पराजित
महसुस करना, यह व्यक्ति
के हारने की प्रवृति को भी
दिखाता है।

मंगलवार, 13 सितंबर 2011

जीभ से जाने अपने स्वास्थ्य के बारे मेँ


जब भी आप डाँक्टर के
पास जाते हैँ, तो वह टाँर्च
की मदद से आपकी जीभ
जरूर चेक करता है। कुछ
लोगोँ को भले ही यह
अजीब लगता हो, लेकिन
सच्चाई यह है कि इस तरह
से बड़ी-बड़ी बीमारियाँ
पकड़ मेँ आ जाती हैँ।
दरअसल, जीभ मेँ होने वाले
बदलाव कई बीमारियोँ को
समय पर पकड़ने मेँ मदद
करते हैँ। जाहिर है, इस
तरह ये बीमारियाँ गंभीर
रूप लेने से बच जाती हैँ।


छाले होना
:- जीभ पर छोटे व दर्द करने
वाले छाले एक आम
समस्या है । इनकी वजह
स्ट्रेस, टेँशन, और हाँर्मोनल
बदलाव हो सकती है ।
हालांकि ये किसी खास
बीमारी के लक्षण नहीँ होते
और कुछ ही दिनोँ मेँ ठीक
हो जाते हैँ । वहीँ , कुछ
खास तरह के छाले बाँडी मेँ
एलर्जी रिएक्शन, वायरस
इंफेक्शन और इम्यून
डिसऑर्डर की ओर इशारा
करतेँ हैँ और जीभ की एक
साइड पर दर्द करने वाली
ग्रोथ हो रही हो, तो इसे
फौरन डाँक्टर को दिखाएं।
यह कैँसर का लक्षण हो
सकता है।


रंग बदलना
:- स्मूथ, हल्की पीली और
सपाट जीभ बाँडी मेँ
आयरन की कमी बताती है,
जबकि सपाट लाल जीभ
डाइट मेँ गड़बड़ की ओर
इशारा करती है। अगर
जीभ का कलर स्ट्राँबेरी के
कलर का हो गया है, तो
इसका मतलब है कि आपको
स्कारलेट फीवर है। जीभ
पर सफेद पैचेज फीवर,
डिहाइड्रेशन, सायफिलिस
या स्मोक करने वालोँ मेँ
ल्यूकोप्लेकिया के लक्षण हो
सकते हैं।

> जीभ के सूजने और लाल
होने की स्थिति को
ग्लोसाइटिस कहते हैँ,
जिसकी वजह बैक्टीरिया
या वायरल इंफेक्शन हो
सकती है।
यह इंफेक्शन मुँह की पूरी
सफाई न रखने, जीभ मेँ
छेद करवाने या मसालोँ,
अल्कोहल और तंबाकू के
सेवन की वजह से होता है।


बाल महसूस होना
:- बुखार से उठने
के बाद, लंबे समय तक
एंटीबाँयोटिक का प्रयोग
करने या परऑक्साइड
वाला माउथवाँश इस्तेमाल
की वजह से जीभ का
टेक्सचर बालोँ वाला
महसूस हो सकता है ।
हालांकि यह कोई घबराने
वाली बात नहीँ है, लेकिन
इससे फंगल इंफेक्शन के
होने का डर रहता है।

> वैसे जीभ की साइड पर उगने वाली बालोँ जैसी
ग्रोथ को हेयरी
ल्यूकोप्लेकिया कहते हैँ। इसे
अक्सर एड्स के मरीजोँ मेँ
देखा गया है।


साइज बदलना
:- कई बार जीभ का साइज
बढ़ जाता है। इस स्थिति को
मेडिकल टर्म्स मेँ मैक्रो-
ग्लोसिया के नाम से जानते
हैँ। यह थायराँयड व हार्मोन
से जुड़ी गड़बड़ियोँ का एक
लक्षण है। हालांकि इस
बीमारी को दवाइयोँ की
सहायता से कंट्रोल किया
जा सकता है।


जीभ का सूखना
:- आमतौर पर नम रहने
वाली जीभ पर सूखापन
महसूस होना डिहाइड्रेशन
व सलाइवरी ग्लैँड के
डिसऑर्डर की पहचान है।
इसके लिए आपको तुरंत
डाँक्टर की मदद लेनी
चाहिए। अगर आपको
अपनी जीभ पर इनमेँ से
कोई भी लक्षण नजर आते
हैँ, तो डाँक्टर को अप्रोच
करने मेँ देर न करेँ। सही
समय पर पकड़े गए लक्षण
और शुरू किया गया
ट्रीटमेँट कई हेल्थ प्राँब्लम्स को दूर कर सकता है।

मंगलवार, 6 सितंबर 2011

सिर के गंजेपन के लिए अनुभूत प्रयोग

दूब घास(Cynodon
dactylon) के पंचाग (फल,
फूल, जड़, तना, पत्ती) तथा
कनेर के पत्तोँ को पीस कर
कपड़े मेँ रखकर रस निकालेँ
और सिर के गंजे स्थान पर
लगायेँ तो सिर्फ 15 दिनोँ मेँ
ही उस स्थान पर नये बाल
दिखाई देने शुरू हो जाते हैँ।
तथा पूरे सिर मेँ तेल की
तरह इस रस का प्रयोग करेँ
तब सफेद बाल काले होने
लगते हैँ ।

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शनिवार, 3 सितंबर 2011

शादी के बाद बनती है अच्छी सेहत

हर किसी के जीवन में एक
न एक दिन ऐसा पल आता
है जब वह शादी के बंधन में
बंधता है। हालांकि किसी के
जीवन में ये पल जल्दी
आता है, तो किसी के जीवन
में देर में। आप शादी के
बंधन में बंधने के बाद कई
अच्छी बुरी परिस्थितियों से
गुजरते हैं। शोधों से भी यह
बात स्पष्ट हो चुकी है कि
शादी का बंधन पुरूषों को
तंदरूस्त‍ बनाता है और
महिलाओं के मानसिक
स्वास्थ्‍य को बेहतर बनाता
है। हालांकि देर से शादी
करने में भी कोई बुराई
नहीं। आइए जानें शादी से
सेहत कैसे बनती है।



> जाहिर सी बात है कि
यदि कोई आपकी सही
देखभाल और अतिरिक्त
केयर करने वाला मिलेगा
तो आप निश्चिततौर पर
स्वस्थ होंगे।

> शादी का बंधन ऐसा
तोहफा है जिससे आपका
साथी न सिर्फ आपको
भावनात्मक सपोर्ट करता है
बल्कि आपकी इच्छा-
अनिच्छा का भी खास
ख्याल रखता है।

> शोधों में यह बात
सुनिश्चित हो चुकी हैं कि
एक दूसरे की परवाह करने
वाले कपल एकल जीवन
जीने वालों की तुलना में
ज्यादा खुशहाल और स्वस्थ
रहते हैं।

> दरअसल, शादीशुदा
पुरुष इसलिए स्वस्थ रहते
हैं क्योंकि उनकी पत्नियां
उनकी अच्छे से देखरेख
करती है और वहीं दूसरी
और पुरुष महिलाओं को
भावनात्मक रूप से सहारा
देते हैं।

> आमतौर पर कहा जाता है
कि खुशी इंसान को न सिर्फ
हेल्दी जीवन देती है बल्कि
तनावमुक्त रखती है और
प्यार ऐसा भावनात्मक
लगाव है जो अतिरिक्त‍
देखभाल के साथ-साथ
तनावमुक्त भी रखता है।

> हालांकि इसके‍ विपरीत
आपका पार्टनर सही नहीं है
या फिर आपका उससे
संबंध ठीक नहीं है तो इस
बात का प्रभाव आपके
स्वास्थ्‍य पर भी पड़ता है।

> जो लोग विवाह पर
यकीन नहीं रखते यदि वह
इस तथ्य‍ से रूबरू हो जाएं
कि शादी से सेहत बनती है
और इंसान के जीवन की
तत्कालिक परिस्थितियां
बदल जाती हैं तो निश्चित
तौर पर वह शादी में और
रिश्तों में यकीन करने
लगेंगे।

> शादी केवल भौतिक सुख
ही नहीं देती, बल्कि इससे
महिलाओं और पुरूषों को
अपनी जिम्मेदारियों का
अहसास होता है, एक
परिवार को बनाने की खुशी
मिलती है।

> शादी न सिर्फ अच्छी
सेहत बनाती है बल्कि
अकेलेपन को भी दूर करती
है। साथ ही जो लोग
विवाहित होते हैं उनकी
औसत उम्र भी ज्यादा होती
है।

> शादी से व्यक्ति न सिर्फ
सेहतमंद रहता है बल्कि
वैवाहिक जीवन लोगों की
चिंताएं और परेशानियां भी
दूर करता है। दरअसल हर
किसी को हमेशा जीवन में
कोई ऐसा व्यक्ति चाहिए
होता है जिससे वह अपने
मन की बात खुल कर कह
सके। अगर मन में लगातार
कोई चिंता, कोई अवसाद
घिरा रहेगा तो उसका शरीर
पर लगातार बुरा असर
पड़ता है।

शुक्रवार, 19 अगस्त 2011

कैफीन सनस्क्रीन करेगा अब स्किन कैँसर और झुरियोँ से हिफाजत


अब स्किन कैँसर और चेहरे
की झुरियोँ को बाय-बाय
कहने का वक्त आ गया है ।

वैज्ञानिकोँ ने एक ऐसा
सनस्क्रीन बनाने का दावा
किया है जो स्किन कैँसर
और चेहरे की झुरियोँ से
हिफाजत करेगा ।
काँफी मेँ मौजूद कैफीन
स्किन को बिना नुकसान
पहुँचाए अल्ट्रा वायलेट
किरणोँ से क्षतिग्रस्त
कोशिकाओँ को मारने मेँ
मददगार होता है ।

अब कैफीन को सनस्क्रीन
लोशन बनाने मेँ इस्तेमाल
किया जाएगा ।
अध्ययन के मुताबिक स्किन
मेँ एटीआर नामका प्रोटीन
पाया जाता है , जिसमेँ
छेड़छाड़ कर कैफीन त्वचा
की रक्षा करता है ।



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गुरुवार, 18 अगस्त 2011

लहसुन एक चमत्कारी औषधि

लहसुन एक दिव्य औषधि
है । यह हाजमा ठीक करने
के साथ ही गैस को दूर
करता है।

> लहसुन मेँ एंटीसेप्टिक
और एंटीबायोटिक का गुण
भी पाया जाता है। यह टीबी
के कीटाणुओँ को नष्ट कर
देता है।

> दिल के लिए टाँनिक होने
के साथ ही यह खराब
कोलेस्ट्राल को कम करता है।

> इसे पीसकर शहद के
साथ खाने से नर्वस सिस्टम
ठीक रहता है।

> लहसुन का रस शहद
के साथ मिलाकर खायेँ तो
खाँसी दूर भाग जायेगी।

> यदि नीँद न आये तो
इसके दो या तीन जवे खाने
से फायदा मिलेगा।

> लहसुन दमा के इलाज मेँ
काफी कारगर होता है।
50ml. दूध मेँ लहसुन के
पाँच जवोँ को ऊबालकर
सेवन करने से दमे की
शुरूआती अवस्था मेँ अच्छा
फायदा करता है।

> यह आँतोँ से चिपके मल
को भी बाहर निकाल देता
है और कब्ज से मुक्ति दिलाता है।

> यह जोड़ोँ के दर्द या
गठिया मेँ रामबाण है तथा
जोड़ोँ की सूजन को नष्ट
करता है।

> यह शरीर मेँ रक्त की कमी को भी दूर करता है।

> इसके सेवन से रक्त मेँ
थक्का बनने की प्रवृत्ति
काफी कम हो जाती है,
जिससे heart attack का
खतरा टल जाता है।

> यह high blood
pressure मेँ भी काफी
कमी ला देता है।

> लहसुन मेँ कैँसर से लड़ने
की विलक्षण क्षमता पायी
जाती है।

> यह हृदय रोग मेँ सुरक्षा
कवच का काम करता है।



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बुधवार, 17 अगस्त 2011

ग्वारपाठा(घृतकुमारी) पेट तथा स्किन के लिए रामबाण

ग्वारपाठा या
घृतकुमारी(एलोवेरा) को
20gm. मात्रा मेँ लेकर
20ml. पानी के साथ
मिक्सी मेँ जूस बनाकर रख
लेँ। इसी तरह रोजाना ताजा
जूस बनायेँ।


सेवन मात्रा :-
20ml. सुबह खाली पेट
और 20ml. रात को सोते समय।


उपयोग :-
आँतोँ
की सूजन, अपेँडिक्स, खूनी
एवं बादी बवासीर, कब्ज,
फोड़े-फुंसी, कील-मुहासे,
पित्त और कफ की बीमारी ।
एक सप्ताह मेँ ही इन
समस्याओँ मेँ आराम आने
लगता है ।


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सोमवार, 15 अगस्त 2011

चाइनीज कैलेंडर कैसे काम करता है

चाइनीज गर्भावस्था कैलेंडर को बहुत ही ऐतिहासिक माना जाता है
और यह लगभग 700 साल पुराना भी माना जा रहा है ।
हर गर्भवती महिला में इस बात को लेकर भी उत्साह रहता है
कि उसका होने वाला बच्चा लड़का होगा या लड़की। आज चीनी
कैलेंडर का प्रयोग होने वाले बच्चें का लिंग पता करने में किया
जा रहा है। चाइनीज कैलेंडर में यह बात ध्यान में रखी जाती है
कि गर्भधारण के दौरान मां की लूनर एज क्या थी । होने वाले
बच्चे के लिंग का पता करने के लिए यह बहुत ही जानी मानी पद्धति है।



चीनी कैलेंडर के बारे में ऐसा कहा जाता है कि सबसे पहले बेजिंग
में स्थित विज्ञान संस्थान में इसकी खोज हुई। कुछ लोगों का
कहना है कि यह चार्ट पेकिंग के पास टांब में मिला और अब
यह पेकिंग के विज्ञान संग्रहालय में रखा गया है। बहुत सी
वेबसाइट्स ने माना है कि यह लगभग होने वाले बच्चे का
90 प्रतिशत तक सही लिंग बताता है।


चीनी लूनर एज और महीने



इस चार्ट का इस्तेमाल करने के लिए सबसे पहले तो आपको
गर्भवती महिला की सही उम्र का पता होना चाहिए। लेकिन
यह उम्र चाइनीज़ लूनर महीने के अनुसार ही होनी चाहिए।
आनलाइन टूल की मदद से आप चाइनीज़ लूनर महीने का
पता लगा सकते हैं।

अगर आप 1 जनवरी और 20 फरवरी के बीच पैदा हुई हैं,
तो अपने जन्म की सही तारीख के अलावा अपनी
वास्तविक उम्र को भी लिखें ।
अगर आपका जन्म 21 फरवरी या 31 दिसंबर के बीच
हुआ है, इस तारीख के अलावा अपनी वास्तविक उम्र
में एक साल और जोड़ लें ।
इसके बाद आपको गर्भधारण के सही समय का पता
लगाना है और वह भी चीनी कैलेंडर के अनुसार ही होगा।


चीनी कैलेंडर का प्रयोग

एक बार आपने अपनी चाइनीज़ लूनर एज और गर्भधारण
का समय निकाल लिया है, तो अब आप इस कैलेंडर के
प्रयोग से बच्चे का लिंग पता कर सकते हैं।

चाइनीज प्रेग्नेंसी कैलेंडर में बायीं तरफ दिये गये अंक
गर्भधारण के समय मांस की उम्र बताते हैं।
चाइनीज कैलेंडर में सबसे ऊपर दी गई तारीख यह
दर्शाती है कि गर्भधारण कब हुआ।
कैलेंडर में मां की उम्र और गर्भधारण की तारीख देखते
हुए आप जब उस स्थान पर पहुंचते हैं जहां कि दोनों लाइनें
मिलती हैं, वही स्थान बच्चे का लिंग दर्शाता है।

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शुक्रवार, 5 अगस्त 2011

दिल का अब कुछ नहीँ बिगाड़ेगा दौरा


दिल के दौरे या स्ट्रोक से
दिलोदिमाग के टिश्यु को
होने वाले नुकसान को अब
काफी हद तक रोका जा
सकेगा ।

Scientists ने ऐसी दवा
खोजने का दावा किया है ,
जिसे समय रहते देने पर
टिश्यु को होने वाले नुकसान
को 60 प्रतिशत तक रोका
जा सकेगा । इस दवा का
इस्तेमाल ऐसी सर्जरी के
दौरान भी किया जा सकेगा,
जिसमेँ टिश्युज को ज्यादा
नुकसान हो सकता है ।

दिल का दौरा या स्ट्रोक
पड़ने पर दिल या दिमाग
के टिश्युज को आँक्सीजन
और पोषक तत्वोँ की
सप्लाई रूक जाती है ।
इससे टिश्युज क्षतिग्रस्त
होने लगते हैँ । इन पर कहर
तब टूटता है , जब दवाओँ
आदि के जरिए खून की
सप्लाई को बहाल किया
जाता है । इसके बहाल होते
ही शरीर की प्रतिरक्षण
प्रणाली इन क्षतिग्रस्त
टिश्युज को 'दुश्मन' मानते
हुए इन पर टूट पड़ती है।
इसके कारण स्ट्रोक या दिल
के दौरे से दिमाग और दिल
को कई बार स्थायी नुकसान
पहुँच जाता है। दिल और
दिमाग के सेल्स को इन हालात मेँ बचाना डाँक्टरोँ
के लिए एक बड़ी चुनौती
हैँ।

International scientists की टीम ने एक
अर्से की मेहनत के बाद एक
एंजाइम का पता लगाया ,
जो स्ट्रोक या दौरे के बाद
क्षतिग्रस्त टिश्युज पर
प्रतिरक्षण प्रणाली के हमले
मेँ मुख्य भूमिका निभाता है।
फिर इस एंजाइम को
जरूरत के समय निष्क्रिय
या कम सक्रिय करने के
लिए एक ऐसे रोग
प्रतिरोधी एंटीबाँडी का विकास किया गया

उमस और गर्मी से आँखेँ बीमार



आमतौर पर अगस्त के
महिने से कंजंटिवाइटिस
का संक्रमण शुरू हो जाता
है । दरअसल , इस महिने
मेँ बारिश और उमस के
चलते बैक्टीरिया-वायरस
का संक्रमण बढ़ जाता है ।
यही वजह है कि लोगोँ की
आँखेँ भी बीमार होने लगती
हैँ ।

यह बीमारी एक मरीज से
दूसरे व्यक्ति को आसानी से
संक्रमित करती है । इसलिए
संक्रमित मरीज से दूरी बनाए रखेँ ।

ये बैक्टीरिया हैँ जिम्मेदार :-

> नाइसीरिया गोनोरिया

> स्टेफ्लोकोकस

> स्टेपटोकोकस


लक्षण (Symtoms) :-


* आँखोँ मेँ दर्द ।

* आँखोँ मेँ गुलाबी या
लालीपन ।

* आँखोँ से पानी बहना ।

* धुंधला दिखाई देना ।

* आँखेँ चिपकती हैँ ।

* वायरल संक्रमण मेँ
आँखो के कंजंटाइवा मेँ
रक्त के थक्के जम सकते
हैँ ।

* वायरल कंजंटिवाइटिस
मेँ गले मेँ संक्रमण हो
सकता है औय मरीजोँ को
बुखार होने के साथ सिर
मेँ दर्द भी होता हैँ ।


बचाव (Prevention) :-


* ठंडे पानी से आँखे धोएं ।

* संक्रमित व्यक्ति से दूर
रहेँ ।

* एंटीबायोटिक दवा
डाँक्टर की सलाह पर
लेँ।

* संक्रमित व्यक्ति के कपड़े
या रूमाल का इस्तेमाल
न करेँ ।

* तेज रोशनी से बचेँ ।


चश्मे का इस्तेमाल करेँ

> आई फ्लू के दौरान चश्मा
खुद की आँखोँ मेँ धूल ,
गंदगी जाने से बचाने के
अलावा दूसरोँ को भी
संक्रमण से बचाता है ।

> धूप और चमक से बचाव
मेँ भी चश्मा उपयोगी है।

> चश्मे की स्वच्छता का
भी ध्यान रखेँ । चश्मेँ को
उतारने के बाद स्वच्छ
कपड़े से साफ जरूर कर
लेँ ।


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मंगलवार, 2 अगस्त 2011

क्या आप जानते है कि बच्चोँ के दाँत मोती जैसे कैसे निकलेँगे ?



क्या आप जानती हैँ कि गर्भावस्था के दौरान आपकी डाईट भी बच्चे के दाँत को प्रभावित करती है ?
मोती जैसे चमकते दाँत जहाँ आपके मुखड़े की खूबसूरती मेँ चार चाँद लगाते हैँ , वहीँ उसे तंदरूस्त भी रखते हैँ ।
दाँत सिर्फ भोजन को चबाकर आसानी से पचाने लायक ही नहीँ बनाते हैँ बल्कि शब्दोँ से सही उच्चारण और चेहरे की खूबसूरती के लिए भी जिम्मेदार होते हैँ ।

बच्चे का दाँत कैसा होगा ,
इसके लिए सिर्फ उसका
आहार ही जिम्मेदार नहीँ
है , बल्कि आप भी जिम्मेदार हैँ । अगर अपनी गर्भावस्था के दौरान कैल्शियम युक्त खाना खाया है तो आपके बच्चे के दाँत भी खूबसूरत और हेल्दी निकलेँगे । गर्भावस्था मेँ माँ का आहार आने वाले बच्चे के दाँतोँ पर असर डालता है ।


दाँत बनने की प्रक्रिया गर्भावस्था के छठे सप्ताह से ही शुरू हो जाती है । चौथे महिने से दाँतोँ के सख्त भाग बनने लगते हैँ , स्थायी दाँत भी दूध के दाँतोँ के नीचे गर्भावस्था से ही बनने लगते हैँ ।


डाँ. रश्मि स्वरूप जौहरी
कहती है यही वजह है कि
कि गर्भावस्था के दौरान
होने वाली माँ को कैल्शियम
फ्लोराइड , विटामिन सी और डी युक्त पौष्टिक व
संतुलित भोजन लेने की
सलाह दी जाती है । भोजन
मेँ इन पौष्टिक पदार्थोँ की
कमी बच्चे के दाँतोँ की
प्राथमिक बनावट को
बिगाड़ देती है । इस कमी
को बच्चे के जन्म के बाद
उन्हेँ पौष्टिक पदार्थ देकर
भी दूर नहीँ किया जा
सकता है , साथ ही माँ के
खाने मेँ पौष्टिक पदार्थोँ की
कमी शिशू के दाँतोँ मेँ कीड़ा
लगने की आशंका को भी
बढ़ा देती है ।

गर्भावस्था के दौरान माँ को
जर्मन मीजल्स निकलने ,
तेज बुखार होने या टेट्रासाईक्लिन ग्रुप की
दवाएँ लेने से शिशू के दाँतोँ मेँ विकृति और पीलापन आ
जाता है । लिहाजा जहाँ तक
संभव हो इन स्थितियोँ से
बचेँ । इन दवाइयोँ के सेवन
से बच्चे के प्रारम्भिक दूध के दाँत ही नहीँ , बल्कि
स्थायी दाँत भी कमजोर ,
पीले पड़ जाते हैँ ।

दूध के दाँत निकलते समय
बच्चे को तकलीफ न हो
तथा वह रोगोँ का शिकार
न हो , इसके लिए भी उसके
पौषण और स्वच्छता पर
ध्यान देने की जरूरत है ।


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बुधवार, 27 जुलाई 2011

मूंछोँ से हो सकती है एलर्जी


मूंछेँ मर्दोँ की शान होती हैँ , लेकिन ऐसी शान जो जान पर भारी पड़ जाए उसका भला आप क्या करेंगे ।
यदि आप किसी तरह की एलर्जी से परेशान रहते हैँ तो दाढ़ी या फिर मूंछ रखने से पहले आपको सोचना पड़ेगा ।
एक अध्ययन के मुताबिक मूंछ रखने वाले लोग सांस सम्बन्धी एलर्जी के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैँ ।
यदि बार-बार सर्दी-जुकाम , नाक बंद होने , गले मे खराश अथवा सिर दर्द से आप ग्रस्त हो जाते हैँ तो इसका एक कारण आपकी मूंछ भी हो सकती हैँ । मूंछ के बालोँ मेँ मिट्टी फंस जाती है , जिसे एलर्जी होती है ।



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रविवार, 24 जुलाई 2011

इग्नेशिया (IGNATIA)

परिचय :-

इग्नेशिया औषधि बच्चों के रोग तथा स्त्रियों में उत्पन्न होने वाले हिस्टीरिया रोग में अत्यन्त लाभकारी होती है। यह औषधि विशेष रूप से उन स्त्रियों के हिस्टीरिया रोग में अधिक लाभकारी होती है जो सुशील, अधिक कार्य करने वाली तथा नाजुक होती हैं। हिस्टीरिया रोग स्त्री में उत्पन्न होने वाले ऐसे रोग हैं जिसे समझ पाना अत्यन्त कठिन है। हिस्टीरिया रोग ऐसी स्त्रियों में होता है जो अधिक संवेदनशील रहती है, बात-बात पर उत्तेजित हो जाती हैं, जिनका रंग सांवला व स्वभाव कोमल होता है, जिनकी बुद्धि तेज होती है तथा किसी बात को आसानी से समझ लेती है।

मानसिक या शारीरिक विकास में रुकावट पैदा होने के साथ स्वभाव परिवर्तन। हर बातों का विरोध करना। चलाक, स्नायविक, ‘शंकालु, कठोर, कंपायमान जो मानसिक अथवा शारीरिक रूप से बुरी तरह पीड़ित रहती है तथा कॉफी पीने से रोग में आराम मिलता है।

उपरस्थि (सुपरफिसीयल) एवं चलायमान रूप इस औषधि की मुख्य विशेषता है। यह औषधि शोक व चिन्ता आदि को दूर करने में लाभकारी है। त्वचा पर छोटे-छोटे गोलाकार धब्बे बनने पर इग्नेशिया औषधि का प्रयोग किया जाता है। यह औषधि प्लेग, हिचकी और वातोन्माद वमन आदि को भी दूर करती है।

इग्नेशिया औषधि का प्रयोग किसी प्रकार के रोगों में करने के बाद रोगी का रोग तम्बाकू पीने से, शराब पीने से, आंखों की हरकतों से, झुकने से तथा शोर करने से बढ़ता है।

करवट बदलने से तथा रोगग्रस्त अंगों की तरफ लेटने से रोग में आराम मिलता है।

शरीर के विभिन्न अंगों में उत्पन्न लक्षणों के आधार पर इग्नेशिया औषधि का उपयोग :-

मन से संबन्धित लक्षण :- रोगी का स्वभाव बदलने के साथ रोगी में चिन्ता, शोक, अपने ही विचारों में खोया रहना, गम्भीर स्वभाव, दु:खी रहना तथा गुस्सा करना आदि लक्षण उत्पन्न होना। कितनी भी परेशानी हो रोगी अपनी परेशानी दूसरे को नहीं बताता है। इस तरह के लक्षण वाले रोगी को इग्नेशिया औषधि का सेवन कराने से रोग ठीक होता है। इसके अतिरिक्त रोगी में अन्य लक्षण जैसे- लोगों से बात करने की इच्छा न करना। आहें और सिसकियां भरना तथा आघात (Shocks) शोक, निराशा के लक्षणों में इग्नेशिया औषधि का प्रयोग किया जाता है।

सिर से संबन्धित लक्षण :- सिर में खोखलापन व भारीपन महसूस होना, सिर दर्द तथा सिर दर्द झुकने से बढ़ जाना। सिर दर्द होने के साथ ऐसा महसूस होता है कि अन्दर से बाहर की ओर कील निकल रही है। नाक की जड़ में ऐंठन सा दर्द होना। अधिक बोलने या गुस्सा करने के बाद होने वाला सिर दर्द जो धूम्रपान करने या तम्बाकू की गंध सूंघने से बढ़ता है। सिर आगे की ओर झुका हुआ महसूस होता है। इस तरह के लक्षणों के साथ होने वाले सिर दर्द को दूर करने के लिए इग्नेशिया औषधि का प्रयोग करने से रोग में आराम मिलता है।

आंखों से संबन्धित लक्षण :- यदि किसी रोगी को कम दिखाई देता है और साथ ही उसकी पलकें लटक रही हैं और आंखों के आस-पास वाली तन्त्रिकाओं में दर्द हो रहा है तो आंखों के ऐसे लक्षणों में इग्नेशिया औषधि का प्रयोग करना चाहिए। इस औषधि के प्रयोग से रोग ठीक होता है। आंखों के चारों ओर आड़ी-तिरछी लकीरें व धब्बे आने पर भी इग्नेशिया औषधि का प्रयोग लाभकारी होता है।

चेहरे से संबन्धित लक्षण:- चेहरे तथा होठों की पेशियों का कंपकंपाना। आराम करते समय चेहरे का रंग बदल जाना आदि लक्षणों में इग्नेशिया औषधि का प्रयोग करने से लाभ होता है।

मुंह से संबन्धित लक्षण :- मुंह का स्वाद खट्टा होना। गालों का अन्दरूनी भाग दांतों से कट जाना। मुंह से लार का अधिक निकलना। दांतों का दर्द जो कॉफी पीने तथा धूम्रपान करने से शान्त रहता है। इस तरह के लक्षणों में रोगी को इग्नेशिया औषधि देनी चाहिए।

गले से संबन्धित लक्षण :- गले के अन्दर कुछ अटका हुआ महसूस होता है जो न तो अन्दर जा रहा है और न ही बाहर निकल रहा है। ऐसे लक्षण में इग्नेशिया औषधि का सेवन करना चाहिए।
गले में घुटन महसूस होना और पेट में वायुगोला महसूस होना। गले में जलन होना तथा लार को निगलने पर गले में सुई चुभने जैसा दर्द होना आदि इस तरह के लक्षण उत्पन्न होने पर रोगी को इग्नेशिया औषधि का सेवन कराना लाभकारी होता है।
भोजन निगलने पर गले में सुई चुभन जैसा दर्द होता है जो दर्द धीरे-धीरे कानों तक फैल जाता है। गलतुण्डिका में जलन व सूजन आने के साथ उस पर छोटे-छोटे घाव उत्पन्न हो जाते हैं तथा पुटकीय गलतुण्डिका की सूजन आदि। इस तरह के लक्षण उत्पन्न होने पर इग्नेशिया औषधि का प्रयोग करना रोगी के लिए अत्यन्त लाभकारी होता है।

सांस से संबन्धित लक्षण :- गले की खुश्की के साथ उत्तेजित कर देने वाली खांसी का आना तथा खांसी के दौरे पड़ना आदि लक्षणों में इग्नेशिया औषधि का प्रयोग लाभकारी होता है।
गले में उत्तेजना पैदा होने पर रोगी को इग्नेशिया औषधि का सेवन करना चाहिए परन्तु आवश्यकता पड़ने पर इग्नेशिया औषधि के स्थान पर कल्के औषधि का भी प्रयोग किया जा सकता है।
किसी रोग के कारण उत्पन्न होने वाली खांसी या प्रतिवर्ष होने वाली खांसी आदि में रोगी को इग्नेशिया औषधि देना लाभकारी है।
रोगी में उत्पन्न होने वाली ऐसी खांसी जिसमें रोगी को खांसी आने पर और अधिक खांसने की इच्छा होती है तथा रोगी में आहें भरने वाला स्वभाव उत्पन्न होता है। ऐसे लक्षणों में रोगी को यह औषधि देने से रोग ठीक होता है।
रोगी को सांस नली में खोखलापन महसूस होना। मन को उत्तेजित कर देने वाली खांसी उत्पन्न होना। खांसते समय थोड़ी मात्रा में बलगम आना जिसके कारण सांस नली में दर्द पैदा होना तथा शाम के समय खांसी का बढ़ जाना। ऐसे लक्षण वाले रोगी को इग्नेशिया औषधि देनी चाहिए।

स्त्री रोग से संबन्धित लक्षण :- मासिकधर्म काले रंग का तथा समय से पहले अधिक मात्रा या कम मात्रा में आना आदि स्त्री रोगों के लक्षणों में इग्नेशिया औषधि का प्रयोग लाभकारी होता है।
मासिकधर्म के समय अधिक आलस्य आने के साथ आमाशय और पेट में उत्तेजना वाले दर्द होना आदि लक्षणों में रोगी को इग्नेशिया औषधि का सेवन कराना चाहिए।
जिन स्त्रियों में सम्भोग की इच्छा कम हो गई हो तथा अधिक शोक-सन्ताप के कारण उदास व दबी हुई रहती हो तो उस स्त्री को इग्नेशिया औषधि का सेवन कराने से रोग ठीक होता है।

आमाशय से संबन्धित लक्षण :- आमाशय रोगग्रस्त होने के कारण रोगी को खट्टी डकारें आना आदि लक्षण उत्पन्न होने पर रोगी को इग्नेशिया औषधि देने से लाभ होता है।

आमाशय के अन्दर खोखलापन, पेट अधिक फूला हुआ महसूस होना तथा हिचकी का आना आदि लक्षणों में रोगी को इग्नेशिया औषधि देना लाभकारी होता है।

यदि किसी रोगी को आमाशय के अन्दर ऐंठन सा दर्द महसूस होता है तथा साथ ही दर्द छूने से अधिक हो जाता है तो ऐसे में रोग को इग्नेशिया औषधि देने से रोग समाप्त होता है।

घर का पौष्टिक भोजन करने की इच्छा न करना तथा बाजार की अधिक मिर्च-मसाले व तली हुई वस्तु अधिक खाने की इच्छा करना आदि लक्षणों वाले रोगी को इग्नेशिया औषधि देनी चाहिए। इससे रोगी की पाचन क्रिया ठीक होती है और रोगी को भोजन अच्छा लगता है।

यदि रोगी को खट्टी चीजें खाना अधिक पसन्द हो तो भी रोगी को यह औषधि देने से लाभकारी प्रभाव पड़ता है।

रोगी को दम घुटने जैसा महसूस होने के साथ ऐसी स्थिति उत्पन्न होना कि रोगी स्वयं को आमाशय में डूबता हुआ महसूस कर रहा है तथा आराम के लिए रोगी को गहरी सांस लेनी पड़ती है। ऐसी स्थिति वाले लक्षणों में रोगी को इग्नेशिया औषधि देने से रोग ठीक होता है।

नींद से संबन्धित लक्षण :- यदि रोगी को बहुत कम नींद आती है तथा नींद आते ही रोगी को आंखों में झटके महसूस होने लगते हैं। ऐसे लक्षणों में रोगी को यह औषधि देने से अनिद्रा (नींद का न आना) रोग दूर होता है।

यदि रोगी को चिन्ता, डर, भय, रोग, शोक आदि के कारण नींद नहीं आ रही हो तथा साथ ही बाहों में खुजली होती है और अधिक जम्भाइयां आती है तो रोगी में उत्पन्न ऐसे लक्षणों को ठीक करने के लिए इग्नेशिया औषधि का प्रयोग करना अत्यन्त लाभकारी है।

यदि रोगी को नींद आने पर डरावने सपने आते हो साथ ही रोगी नींद में ही डरता रहता है और लम्बे समय बाद अचानक डरकर उठता है। ऐसे लक्षणों को दूर करने के लिए इग्नेशिया औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

पेट से संबन्धित लक्षण :- यदि रोगी के आतों में गड़गड़ाहट हो। ऊपरी पेट के भाग में कमजोरी महसूस होने जैसे लक्षण। पेट के अन्दर जलन होने वाले लक्षण। पेट के एक ओर अथवा दोनों ओर ऐंठनयुक्त दर्द होने वाले लक्षण। इस तरह के लक्षण यदि रोगी में हो तो इग्नेशिया औषधि का प्रयोग करना चाहिए। इससे रोग में जल्दी आराम मिलता है।

बुखार (फीवर) से संबन्धित लक्षण :- यदि बुखार होने पर रोगी के आन्तरिक अंगों में ठण्ड लग रही हो और बाहर से गर्म करने से रोगी को गर्माहट नहीं मिल रही हो तो ऐसी स्थिति में रोगी को इग्नेशिया औषधि देने से तुरन्त लाभ मिलता है।

यदि रोगी को बुखार के साथ खुजली तथा पूरे शरीर में शीत-पित्त का अनुभव हो तो रोगी को इग्नेशिया औषधि देनी चाहिए।

मलाशय से संबन्धित लक्षण :- मलाशय के अन्दर ऊपर तक खुजली होने के साथ सुई के चुभने जैसा दर्द होना तथा मलाशय का चिर जाना आदि लक्षणों में रोगी को इग्नेशिया औषधि का प्रयोग कराने से रोग ठीक होता है।

यदि रोगी को दस्त त्याग करने में परेशानी होती तथा दस्त कठोर होने के कारण मलत्याग के बाद गुदा सिकुड़ने के साथ मलद्वार में तेज दर्द होता है तो रोगी को इग्नेशिया औषधि देने से आराम मिलता है।

यदि किसी रोगी को बवासीर की शिकायत हो और खांसने से बवासीर के मस्से से खून आता हो तथा मलद्वार में सुई के चुभने जैसा दर्द हो तो रोगी को इग्नेशिया औषधि का सेवन कराना चाहिए। इस औषधि के प्रयोग से दर्द व बवासीर के रोग नष्ट होते हैं।

यदि किसी रोगी को मलत्याग करते समय मल के साथ खून आता हो और मलद्वार में तेज दर्द होता है तो ऐसे लक्षणों में रोगी को इग्नेशिया औषधि का सेवन कराने से रोग में आराम मिलता है और मल के साथ खून का बहना बन्द होता है।

यदि रोगी को ऐसा दर्द महसूस होता है कि कोई तेज हथियार दबाव के साथ अन्दर से बाहर निकला जा रहा हो तो ऐसे लक्षण वाले दर्दों में रोगी को इग्नेशिया औषधि देने से रोग ठीक होता है।

कांच निकलना :- मलत्याग करते समय हल्का सा जोर लगाने पर कांच (गुदा) का बाहर आ जाना आदि में इग्नेशिया औषधि का प्रयोग करने से रोग ठीक होता है। कांच निकलने के लक्षण पाडोफाइलम और रूटा औषधि में भी होते हैं।

मूत्र से संबन्धित लक्षण :- पेशाब का अधिक मात्रा में आना तथा पेशाब पानी की तरह बिल्कुल साफ आना। ऐसे लक्षणों में इग्नेशिया औषधि लाभकारी होती है।

त्वचा से संबन्धित लक्षण (स्कीन) :- यदि त्वचा पर खुजली हो गई है तथा शीत-पित्त का प्रकोप रहता है तो रोगी को यह औषधि लेनी चाहिए।

त्वचा रोगग्रस्त होने पर हवा के प्रति अतिसंवेदनशीलता, निस्त्वचन (एक्सकोरीएशन) विशेष रूप से योनि और मुख के चारों ओर त्वचा का उड़ जाना। ऐसे लक्षणों में रोगी को इग्नेशिया औषधि का सेवन करना चाहिए। यह औषधि त्वचा पर तेजी से क्रिया करती है और रोग को समाप्त करती है।

हिचकी के लक्षण :- भोजन करने के बाद या तम्बाकू के गन्ध से यदि किसी को हिचकी आ जाती है तो उसे इग्नेशिया औषधि का सेवन कराना चाहिए।

वृद्धि :- सुबह के समय, खुली हवा में, भोजन करने के बाद, कॉफी पीने से, धूम्रपान करने से, तरल पदार्थो का सेवन करने से तथा बाहरी गरमाई से रोग बढ़ता है।

शमन :- भोजन करते समय तथा शारीरिक स्थिति परिवर्तन करने से रोग में आराम मिलता है।

तुलना :- इग्नेशिया औषधि की तुलना जिंक, काली-फा, सीपिया, सिमिसीफ्यू, पैनासिया तथा आर्वेन्सिस से की जाती है।

इन औषधियों का प्रयोग अन्य परिस्थितियों जैसे जठर प्रदेश के ऊपर संवेदनशीलता के साथ खांसी आना तथा भोजन करने की इच्छा न करना आदि लक्षणों में भी किया जाता है।

पूरक :-:- इग्नेशिया औषधि का पूरक नेट्रम्यूरि औषधि है।

प्रतिकूल :- इग्नेशिया औषधि काफिया, नक्स वमिका तथा ढैबाक औषधि के प्रतिकूल है।

प्रतिविष :-

इग्नेशिया औषधि के प्रयोग में असावधानी करने से यदि रोगी को किसी तरह की हानि होती है तो उस हानि को रोकने के लिए पल्साटिला, कमो तथा काक्कू आदि औषधियों का प्रयोग किया जाता है।

मात्रा :- इग्नेशिया औषधि की 6 से 10 शक्ति का प्रयोग किया जाता है। परन्तु रोग अधिक कष्टकारी होने पर इग्नेशिया औषधि के 200 शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है।


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रविवार, 17 जुलाई 2011

रोगों के अनुसार अलसी का सेवन करें

सुपर फुड अलसी में ओमेगा थ्री व सबसे अधिक फाइबर होता है। यह डब्लयू एच ओ ने इसे सुपर फुड माना है। यह रोगों के उपचार में लाभप्रद है। लेकिन इसका सेवन अलग-अलग बीमारी में अलग-अलग तरह से किया जाता है।

स्वस्थ व्यक्ति को रोज सुबह-शाम एक-एक चम्मच अलसी का पाउडर पानी के साथ ,सब्जी, दाल या सलाद मंे मिलाकर लेना चाहिए । अलसी के पाउडर को ज्यूस, दूध या दही में मिलाकर भी लिया जा सकता है। इसकी मात्रा 30 से 60 ग्राम प्रतिदिन तक ली जा सकती है। 100-500 ग्राम अलसी को मिक्सर में दरदरा पीस कर किसी एयर टाइट डिब्बे में भर कर रख लें। अलसी को अधिक मात्रा मंे पीस कर न रखें, यह पाउडर के रूप में खराब होने लगती है। सात दिन से ज्यादा पुराना पीसा हुआ पाउडर प्रयोग न करें। इसको एक साथ पीसने से तिलहन होने के कारण खराब हो जाता है।

खाँसी होने पर अलसी की चाय पीएं। पानी को उबालकर उसमें अलसी पाउडर मिलाकर चाय तैयार करें। एक चम्मच अलसी पावडर को दो कप (360 मिलीलीटर) पानी में तब तक धीमी आँच पर पकाएँ जब तक यह पानी एक कप न रह जाए। थोड़ा ठंडा होने पर शहद, गुड़ या शकर मिलाकर पीएँ। सर्दी, खाँसी, जुकाम, दमा आदि में यह चाय दिन में दो-तीन बार सेवन की जा सकती है। दमा रोगी एक चम्मच अलसी के पाउडर को आधा गिलास पानी में 12 घंटे तक भिगो दे और उसको सुबह-शाम छानकर सेवन करे तो काफी लाभ होता है। गिलास काँच या चाँदी का होना चाहिए।
समान मात्रा में अलसी पाउडर, शहद, खोपराचूरा, मिल्क पाउडर व सूखे मेवे मिलाकर नील मधु तैयार करें। कमजोरी में व बच्चों के स्वास्थ्य के लिए नील मधु उपयोगी है।

डायबीटिज के मरीज को आटा गुन्धते वक्त प्रति व्यक्ति 25 ग्राम अलसी काँफी ग्राईन्डर में ताजा पीसकर आटे में मिलाकर इसका सेवन करना चाहिए। अलसी मिलाकर रोटियाँ बनाकर खाई जा सकती हैं। अलसी एक जीरो-कार फूड है अर्थात् इसमें कार्बोहाइट्रेट अधिक होता है।शक्कर की मात्रा न्यूनतम है।
कैंसर रोगियों को ठंडी विधि से निकला तीन चम्मच तेल, छः चम्मच पनीर में मिलाकर उसमें सूखे मेवे मिलाकर देने चाहिए।

कैंसर की स्थिति में डाँक्टर बुजविड के आहार-विहार की पालना श्रद्धा भाव से व पूर्णता से करनी चाहिए। कैंसर रोगियों को ठंडी विधि से निकले तेल की मालिश भी करनी चाहिए।
साफ बीनी हुई और पोंछी हुई अलसी को धीमी आंच पर तिल की तरह भून लें। मुखवासी इसका सेवन करें। इसमें सेँधा नमक भी मिलाया जा सकता है। ज्यादा पुरानी भुनी हुई अलसी प्रयोग में न लें।
बेसन में 25 प्रतिशत मिलाकर अलसी मिलाकर व्यंजन बनाएं। बाटी बनाते वक्त भी उसमें भी अलसी पाउडर मिलाया जा सकता है। सब्जी की ग्रेवी में भी अलसी पाउडर का प्रयोग करें।
अलसी सेवन के दौरान खूब पानी पीना चाहिए। इसमें अधिक फाइबर होता है, जो खूब पानी माँगता है।

अंकुरित अलसी

अंकुरित अलसी बनाने की विधिः–

रात को सोते समय अलसी को भिगो कर रख दीजिये। सुबह अलसी को साफ पानी में धोकर पांच मिनट के लिए किसी चलनी में रख दें ताकि उसका पानी नितर जाये। अब साफ धुले हुए मोटे सूती कपड़े जैसे पुराने बनियान में लपेट कर एक प्लेट में रख कर दूसरी प्लेट से ढक कर रख दें। दूसरे दिन सुबह आपके स्वादिष्ट अंकुरित तैयार हैं।

अलसी के कुछ सौंदर्य प्रसाधन आप द्वारा घर पर भी बनाये जा सकते हैं।

अलसी का उबटनः-

चौथाई कप ताजा पिसी अलसी, चौथाई कप बेसन और चौथाई कप गैंहूं के आटे को आधा कप (100 एम.एल.) दही, एक बड़ी चम्मच शहद, एक बड़ी चम्मच अलसी या खोपरे के तेल व किसी भी सुगंधित तेल की 5 बूंद (जैसे लेवेंडर तेल आदि) में अच्छी तरह मिला कर उबटन बनाएं, होले होले चेहरे व बदन पर मलें और घर बैठे ही हर्बल स्पा जैसा लाभ पायें। इससे त्वचा नम व रेशमी बनी रहेगी।

बालों का सेटिंग जेलः-

पहले तीन कप पानी को तेज आंच पर रखें। उबाल आने पर तीन चौथाई कप अलसी डाल कर 8 – 10 मिनट तक सिमर करें। ठंडा होने पर एक चम्मच नारियल या बादाम का तेल व 5 बूंद लेवेन्डर का तेल मिलाएं और फ्रीज में रखें। इसे एक सप्ताह तक बालों को सेट करने हेतु काम में ले सकते हैं।

केश तेलः-

मीठी नीम और मेंहदी के पत्तों को धो कर और पोंछ कर मिक्सर में बारीक पीस लें। एक कप नारियल के तेल को गर्म करें और उसमें एक चम्मच मीठी नीम और मेंहदी के पत्तों के इस पेस्ट को भूरा होने तक धीरे-धीरे भूने। फिर उसमें एक कप अलसी का तेल डाल कर थोड़ा सा लेवेन्डर तेल मिलाएं। आपका केश तेल तैयार है।

स्मरण शक्ति बढ़ाने मेँ प्रयोग

अलसी का तेल आपकी
एकाग्रता, स्मरण शक्ति तथा
सोचने-समझने की शक्ति
को बढ़ाता है। नियमित रूप
से अलसी के तेल के सेवन
से आपको मस्तिष्क सम्बंधी
कोई विकार नहीँ रहेगा ।

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अलसी में सेक्स समस्या का समाधान

फ्लैक्सीड या अलसी की मदद से सेक्स से जुड़ी समस्याओं का समाधान निकाला जा सकता है। महिलाओं व पुरूषों में सेक्सुअली सक्षम न हो पाने का एक प्रमुख कारण है पेल्विस की रक्त वाहिनियों में रक्त का सही तरीके से प्रवाह न होना। फ्लैक्सीड के लगातार प्रयोग से रक्त वाहिनियां खुल जाती हैं। नब्बे के दशक में फ्लैक्सीड को एक अच्छा एफरोडाइसियेक्स माना जाता था एफरोडाइसियेक्स उत्तेजित करने वाले प्राकृतिक पदार्थ होते हैं।
पिछले कुछ दशकों से किसी भी बीमारी के प्राकृतिक तरीके से उपचार पर ज़्यादा जोर दिया जा रहा है, जिसके लिए जड़ी बूटियों व पौधों की मदद से उपचार के तरीकों को अपनाया जा रहा है। फ्लैक्सीड के प्रयोग से भी बहुत सी बीमारियों का उपचार खोजा जा रहा है। सेक्स से जुड़ी समस्याओं मे फ्लैक्सीड का उपयोग बहुत समय से किया जा रहा है।


अलसी लाभदायी क्यों है

अलसी बहुत से कारणों से लाभदायी है, इन सभी कारणों में से एक कारण है अलसी में अल्फा लिनोलेनिक एसिड का पाया जाना जो कि ओमेगा 3 फैटी एसिड ग्रुप का एक भाग है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए ओमेगा 3 फैटी एसिड बहुत ही महत्वपूर्ण है। अलसी में लिग्नाज़ भी होते हैं जिनमें कि एण्टीआक्सिडेंट होने की वजह से ये कुछ प्रकार के कैंसर से भी सुरक्षा करते हैं जैसे प्रोसट्रेट कैंसर।

65 वर्ष से अधिक उम्र में पुरूषों में यह सबसे ज़्यादा पाया जाने वाला कैंसर है, हालांकि अगर समय रहते इस बीमारी का इलाज शुरू हो गया तो इससे बच पाना सम्भव होता है। इस बीमारी से सेक्स में समस्याएं आ सकती हैं। प्रोसट्रेट कैंसर का पता लगाने के बहुत से तरीके है लेकिन सबसे अच्छा और सबसे मुश्किल तरीका है डिजिटल रेक्टल परीक्षण। दूसरा तरीका है प्रोसट्रेट स्पेसिफिक एन्टीजन टेस्ट। इस टेस्ट में व्यक्ति के खून में एक खास एन्टीजन के पाये जाने से प्रोसट्रेट कैंसर के होने की पुष्टि होती है। लेकिन यह टेस्ट थोड़ा प्रतिद्वंदी होने के कारण बहुत ज़्यादा नहीं सराहा गया है क्योंकि कई बार यह कैंसर की पुष्टि ठीक तरीके से नहीं कर पाता।

प्रोसट्रेट कैंसर की चिकित्सा से सेक्स पर प्रभाव पड़ने के साथ साथ ब्लैडर का नियंत्रण भी खो जाता है ा फ्लैक्सीड की मदद से सेक्स से जुड़ी समस्याओं के साथ साथ कैंसर की रोकथाम भी हो सकती है। अभी भी इस बात की पूरी तरह से पुष्टि नहीं हो पायी है कि फ्लैक्सीड की मदद से कैंसर कैसे ठीक हो सकता है लेकिन सालों से लोग इसका इस्तेमाल करते आ रहे है और इससे लाभ पाकर लोग इसे अपने खाने में शामिल करते हैं।


अलसी का सेवन करने वालों को एक बार डाक्टर से ज़्रूरूर सम्पर्क करना चाहिए। यह प्राकृतिक है लेकिन इसके साइड एफेक्ट हो सकते है और फ्लैक्सीड को पावडर या गोली के रूप में लेने वालो के लिए तो डाक्टर से सम्पर्क करना अनिवार्य है।


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रविवार, 19 जून 2011

स्‍त्री से हार जाता है पुरुष

स्‍त्री का मन पुरुषों के तन को निष्क्रिय कर देता है। कहने का तात्‍पर्य यह है कि स्त्रियों की भावुकता, उनके आंसू पुरुषों के संभोगेच्‍छा को मार डालती है। महिलाएँ भले ही पुरुषों से अपनी बात मनवाने के लिए आसुओं को अपना हथियार मानती हों लेकर उनका यह हथियार उलटवार भी कर सकता है। अनुसंधानकर्ताओं का कहना है महिलाओं के आंसू पुरुषों में सेक्स की इच्छा को कम करते हैं।


इसराइल के विज़मान संस्थान के अनुसंधानकर्ताओं ने पाया है कि महिलाओं के आँसुओं में ऐसे रसायन होते हैं जो पुरुषों में कामोत्तेजना को कम करते हैं। संस्थान से जुड़े प्रोफेसर नोआम सोबेल ने बीबीसी को बताया कि महिलाओं के आँसुओं का यह रसायन कामोत्तेजना से जुड़े हारमोन ‘टेस्टोसटेरॉन’ को कम करता है और उनके मस्तिष्‍क में सेक्स के प्रति रुचि को कम करता है।


टेस्टोसटेरॉन

इस शोध के दौरान अनुसंधानकर्ताओं ने रोने के दौरान महिलाओं के आँसुओं को इकट्ठा किया। इसके बाद पुरुषों को अलग-अलग महिलाओँ की तस्वीरें दिखाई गईं जिस दौरान उन्हें साधारण नमक और महिलाओं के आंसुओं से निकला नमक सुंघाया गया।

जिन पुरुषों की नाक के नीचे महिलाओं के आँसुओं से निकला नमक रखा गया था उन्होंने अलग-अलग महिलाओं की तस्वीरें देखकर भी कोई कामोत्तेजक प्रतिक्रिया नहीं दिखाई।

सिगनल

अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि इस प्रक्रिया के दौरान पुरुषों में ‘टेस्टोसटेरॉन’ का स्तर 13 फीसदी तक कम हो गया। इस शोध को लेकर सोबेल ने कहा, 'यह अध्ययन इस बात को साबित करता है प्रत्येक मनुष्य दूसरे व्यक्ति को कुछ सिगनल देता है जिसके आधार पर दूसरे व्यक्ति का व्यवहार तय होता है। यह प्रक्रिया जाने-अनजाने होती है।'

हालाँकि शोधकर्ताओं को अब भी यह जानना बाकि है कि यह सिगनल किस तरह के होते हैं और किस आधार पर पैदा होते हैं। सोबेल की टीम अब महिलाओं पर पुरुषों के आसुओं का प्रभाव जानने में जुटे हैं।


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