शुक्रवार, 11 मार्च 2011

डायटिंग को कहें बाय, मोटापे पर मत मचाएं हाय

अगर आपको डायटिंग पसंद नहीं तो अब आप यह बहाना भी मार सकते हैं कि वजन घटाना हमेशा अच्छा नहीं होता। थोड़ा सा मोटा होना और बैलेंस्ड डाइट खाना ज्यादा सेहतमंद है। यह कोई हवाई बात नहीं है, बल्कि रिसर्च में साबित हुई बात है। रिसर्चरों के मुताबिक, यह बात कहकर कुछ ज्यादा ही डराया जाता है कि मोटापा खतरनाक है, पर असल में वजनदार लोग लंबी उम्र जीते हैं। ऐसे लोग अगर जबरदस्ती स्लिम बनने की कोशिश करते हैं तो उनकी सेहत को बड़ा खतरा पैदा हो सकता है।

ब्रिटिश अखबार डेली मेल ने न्यूट्रिशन मैगजीन में छपी इस स्टडी के हवाले से बताया है कि लोगों को तरह-तरह की और बैलेंस्ड डाइट लेनी चाहिए। साथ ही बिना फिक्र किए मजे के साथ एक्सरसाइज करनी चाहिए। फिर चाहे आपका वजन कुछ पाउंड ज्यादा ही क्यों न हो।

स्टडी करने वालों में शामिल एक डायटीशियन ने दावा किया है कि डायटिंग को लेकर लोगों का जुनून खास काम नहीं आता। खाना सामने आते ही वे उस पर टूट पड़ते हैं जिससे वे ज्यादा मोटे हो जाते हैं। यह स्टडी रिपोर्ट कैलिफॉर्निया यूनिवर्सिटी ने साढ़े तीन लाख अमेरिकी लोगों पर विश्लेषण के बाद तैयार की है। रिसर्चर लिंडा बेकन के मुताबिक, काफी सबूत यह साबित करते हैं कि ज्यादा वजन वाले सामान्य वजन वालों से ज्यादा जीते हैं।

जो बुढ़ापे में मोटे होते हैं वे बुढ़ापे में पतले दिखने वालों से ज्यादा जीते हैं। यही नहीं टाइप-2 डायबीटीज, हार्ट की बीमारी और किडनी फेल होने जैसी स्थितियों में मोटे लोगों के बचने के चांस ज्यादा होते हैं। हालांकि सभी जानते हैं कि मोटापा दिल की बीमारियों और दूसरी बीमारियों का खतरा बढ़ाता है पर रिसर्चरों का कहना है कि इन बीमारियों की वजह मोटा होना नहीं है। बल्कि वे इसके लिए सही से खानपान न होना और एक्सरसाइज न करना मानते हैं, जो कि अक्सर मोटापे के साथ आती हैं।

स्टडी में सलाह दी गई है कि डायटिंग की दीवानगी के बजाय, अगर लोग अपने शरीर को जैसा है, वैसा स्वीकार करने लगें और उसी का सही से ख्याल रखें, तो ज्यादा अच्छी सेहत बनेगी। खाने में तरह-तरह की पोषण वाली चीजें खाएं, न कि खुद को कुछ कैलरी तक सीमित रखें।
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हाई ब्लड प्रेशर क्यों होता है, पता चल गया

शरीर में आखिर किस वजह से हाई ब्लड प्रेशर होता है, ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने यह जानने का दावा किया है। अब हाई बीपी के इलाज के नए तरीके ढूंढे जा सकते हैं।


शरीर किस तरह से ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करता है, इसके एक जरूरी स्टेप के बारे में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी और नॉटिंघम यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने पता लगाया है। यह भी पता चला है कि इस प्रक्रिया में कब गड़बड़ी हो जाती है। स्टडी से जुड़े प्रो. रॉबिन कैरल कहते हैं, मुख्य प्रक्रिया का पहला कदम जान लिया है। रिसर्चरों का मानना है कि इस प्रक्रिया को फोकस में रखकर गड़बड़ियां रोकी जा सकती हैं और हाइपरटेंशन पर काबू पाया जा सकेगा।

मौजूदा दवाइयों का फोकस ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने वाली प्रक्रिया के आखिरी स्टेज पर होता है। नई स्टडी से उम्मीद है कि शुरुआती स्थिति में ही हाई ब्लड प्रेशर रोका जा सकेगा। दुनिया भर में लाखों लोग हाइपरटेंशन से परेशान हैं। इससे उन्हें हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा होता है।

रिसर्चरों ने यह जानकारी तब हासिल की, जब वे प्री-इक्लेम्पसिया की स्टडी कर रहे थे। प्रेग्नेंसी के दौरान हाई ब्लड प्रेशर की यह स्थिति जच्चा-बच्चा दोनों के लिए जानलेवा हो सकती है। ब्लड प्रेशर पर कंट्रोल एंजियोटेंसिन नाम के हार्मोन्स के जरिए होता है। इसकी बड़ी डोज रक्त नलिकाओं को सिकोड़ देती है, जिससे ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है।

20 बरस से स्टडी कर रहे वैज्ञानिकों का कहना है कि हमने इन हार्मोन्स के विकास का पहला स्टेप ढूंढ लिया है। अब हम ऐसा इंतजाम करेंगे, जिससे यह हार्मोन अधिक मात्रा में विकसित हो। इससे हाई ब्लड प्रेशर की शुरुआत को ही रोका जा सकेगा। महज 10 साल में गोली भी आ सकती है। प्री-इक्लेम्पसिया का भी नया इलाज ढूंढा जा सकता है।


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गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

खुदकुशी रोकने की बनेगी दवा

हर साल दुनिया भर में लाखों लोग तनाव और अवसाद का शिकार होकर अपनी जिंदगी खत्म कर लेते हैं। उनके इस भयानक इरादे का करीबी लोगों को भनक तक नहीं लगती
लेकिन अब इस दिशा में बड़ी उम्मीद जगी है। अब यह जानना संभव हो सकेगा कि व्यक्ति कहीं आत्महत्या जैसा कदम उठाने की ओर तो नहीं बढ़ रहा। ऐसा शरीर में मौजूद एक खास प्रोटीन का स्तर जान कर किया जा सकता है। वैज्ञानिकों ने इस प्रोटीन की पहचान कर ली है।

कनाडा के शोधकर्ताओं ने उस रहस्य को सुलझा लेने का दावा किया है जिसके कारण लोग आत्महत्या करते हैं या बहुत गहरे अवसाद का शिकार हो जाते हैं। एक अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने पाया कि जो लोग आत्महत्या करते हैं, उनके दिमाग में एक खास तरह की प्रोटीन का स्तर बढ़ जाता है।

यूनिवर्सिटी आफ वेस्टर्न ओंटारियो के माइकल पोल्टर और चा‌र्ल्टन यूनिवर्सिटी के हाइमी एनिसमैन के नेतृत्व
वाले एक अंतरराष्ट्रीय शोध दल ने अपने अध्ययन के
दौरान पाया कि उस खास प्रोटीन का स्तर बढ़ने का
उस विशेष जीन पर प्रभाव पड़ता है जो तनाव और
चिंता को नियंत्रित करता है।

शवों के पोस्टमार्टम के दौरान इन लोगों ने पाया कि अन्य कारणों से मरने वालों की तुलना में आत्महत्या करने वालों में उस खास प्रोटीन का स्तर अधिक था जो तनाव और चिंता को नियंत्रित करने वाले जीन को प्रभावित करता है। शोधकर्ताओं ने बताया कि इस प्रोटीन से उस विशेष जीन में रासायनिक परिवर्तन होता है जिसे हम 'इपिजेनोमिक रेगुलेशन' प्रणाली के रूप में जानते हैं। इस परिवर्तन का परिणाम यह होता है कि तनाव को नियंत्रित करने वाले जीन या तो काम करना बंद कर देते हैँ या फिर गलत ढंग से काम कराना शुरू कर देते हैँ इस तरह तनाव से लड़ने की व्यक्ति की क्षमता को यह बर्बाद कर देता है और व्यक्ति आत्महत्या कर लेता है।शोधकर्ताओं का कहना है कि यह खास जीन दिमाग के क्रियाकलाप को नियंत्रित करने में विशेष भूमिका निभाता है।

पोल्टर के अनुसार, इसके रासायनिक बदलाव की प्रकृति दीर्घकालिक होती है। इसकी परिणति अवसाद के रूप में होती है। उन्होंने कहा कि इस अध्ययन के परिणाम ने पूरी तरह से शोध का एक नया रास्ता खोल दिया है। इस खोज से आत्महत्या की प्रवृत्ति से निजात दिलाने वाली दवा विकसित करने में भी मदद मिलेगी।

अध्ययन का यह परिणाम चल रहे उस शोध का हिस्सा है जिसमें इस बात की जांच की जा रही है कि किस तरह जीन में परिवर्तन की अभिव्यक्ति होती है। वैज्ञानिकों के अनुसार एक खास प्रोटीन का स्तर बढ़ने से व्यक्ति आत्महत्या के लिए प्रेरित होता है।


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सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

हृदय रोगोँ का प्रभावी इलाज

ह्दय रोग मे प्याज का रस काफी लाभकारी पाया गया है. सुबह के समय कच्चे सफेद प्याज का रस दो छोटे चम्मच पीने से हदय रोग के किसी भी अवस्था में लाभ मिलता है. डा० सत्यव्रत सिद्धान्तालंकार ने अपनी पुस्तक "रोग और उनकी होम्योपैथिक चिकित्सा" मे इसके बारे जिक्र करते हुए
लिखा है कि अरब के एक उच्च कोटि के धनी मानी व्यक्ति का कथन है कि उसे ह्दय के रोग के दौरे पडते थे. उसने अपने घर में कार्डियोग्राम की मशीन लगा रखी थी. और प्रतिदिन वह अपने ह्दय की गति की जाँच करवाया करता था. डाक्टरों ने उसे बीसियों गोलियां खाने को दिया था. अरब के एक हकीम ने उसे प्याज का रस पीने का नुख्सा बताया था. उसने आजमाया और उसका ह्दय का रोग जाता रहा. उसने डाक्टरों की गोलियां और मशीन सभी अलग कर दी और प्याज का दो चम्मच रस प्रतिदिन पीने से वह स्वस्थ हो गया ।

लखनऊ के किंग जार्ज मेडिकल कालेज के डा० एन० एन० गुप्त ने अपने परीक्षणों के आधार पर यह कहा है कि कच्चा प्याज का सेवन करने से ह्दय रोगों से बचा जा सकता है । ह्दय रोग मे चने की दाल भी काफी फायदेमंद है. इंडियन कौसिंल आफ मेडिकल रिसर्च द्वारा आयोजित आगरा के एस० एन० मेडिकल कालेज मे किये गये परीक्षणों से यह सिद्ध हुआ है की चने की दाल खाने से ह्दय का रोग नहीं होता है. ह्दय रोग में ह्दय की धमनियों (ARTERIES) मे कोलेस्ट्ररोल की परत जम जाती है जिससे धमनियां मोटी हो जाती है और उसमे खुन के प्रवाह के रुकावट होने लगती है जो दिल के दौरे का मुख्य कारण है. चने की दाल खाने से कौलेस्ट्रोल घुलने लगता है. ह्दय रोगियों को चने की दाल और कच्चे प्याज का अधिक सेवन करना चाहिए.

होम्योपैथिक दॄष्टिकोण से ह्दय रोग मे काफी औषधियां है जो ह्दय रोगी के शारीरिक और मानसिक लक्षण के साथ साथ मियाज्म के आधार पर दिया जाता है पर एक दवा क्रैटेगस (CRATAEGUS), मुल अर्क की १५--१५ बुन्द आधे कप पानी मे डालकर दिन मे दो बार लेने से आश्चर्यजनक लाभ मिलता है. जिस ह्दय रोग मे आपरेशन की अनुशंशा की गई है उनके लिए भी यह समान रुप से उपयोगी है. किसी भी एलोपैथिक दवाओं के साथ साथ इसे भी लें तो धीरे धीरे एलोपैथिक दवाओं से छुट्टी मिल सकती है. लम्बे मुझे अपने परिवार के कुछ सदस्यों और मित्रों पर इसके उपयोग से चमत्कारिक लाभ मिला है. ह्दय (सीने) मे दर्द होने पर इसी दवा की १०-१० बुन्द प्रत्येक पंद्रह पंद्रह मिनट पर दो तीन खुराक मे आराम आ जाता है. उसके बाद कुछ दिनों तक १५ - १५ बुन्द दवा दिन मे तीन बार लें. फिर सिर्फ दो बार शुबह और शाम मे लें.कोई भी ह्दय रोग से पीडित व्यक्ति इस दवा का बिना किसी हिचकिचाहट के उपयोग कर सकते है. ह्दय रोग मे दवा के साथ साथ प्राणायाम भी काफी लाभ देता है. प्राणायाम से फेफडों मे ज्यादा आक्सीजन मिलता है जिससे ह्दय के धमनियों मे जमा कोलेस्ट्रोल की परत को साफ होने मे मदद मिलती है ।


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गुरुवार, 13 जनवरी 2011

अब डाइटिँग बिना भी घट सकेगा वजन

डाइट मेँ बिना बदलाव किए अब एक हफ्ते मेँ 2 पाउंड वजन कम किया जा सकता है ।
एक अमेरिकी दवा कम्पनी ने दावा किया है कि विकसित की गई नई गोली जेडजीएन(ZGN)-433 मोटापा कम करने मेँ सफल है । कंपनी ने इस गोली का करीब 24 ऐसी मोटी महिलाओँ पर परीक्षण किया , जिन्होँने एक माह के भीतर हर हफ्ते अपना वजन कम किया ।
इस गोली को खाने के दौरान डाइटिँग व कसरत करने की भी जरूरत नहीँ है । यह गोली नौ माह मेँ 20 से 40 फीसदी तक वजन को कम कर देती है ।


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शनिवार, 8 जनवरी 2011

सर्दी मेँ त्वचा की खुश्की , खुजली तथा सिर की रूसी का प्रभावी इलाज

जैसा कि आप सभी जानते है की सर्दी के मौसम मेँ जब शीत लहर चलती है तो हमारी त्वचा अपनी नमी
( मायश्चर) खो देती है जिससे हमारी त्वचा खुश्क हो जाती है तथा त्वचा मेँ खुजली व जलन होने लगती है । इससे बचने के लिए हमेँ हल्के गुनगुने पानी से स्नान करना चाहिए क्योँकि ठंडे पानी से स्नान करने पर शरीर के रोम छिद्र पूरी तरह नहीँ खुल पाते हैँ जिससे त्वचा को आक्सीजन नहीँ मिल पाती है ।
अतः हल्के गुनगुने पानी से नहाने के बाद यदि ग्लिसरीन और गुलाब जल के मिश्रण की पूरे शरीर पर मालिश की जाए तो हम इस समस्या से बच सकते हैँ ।


-: मिश्रण बनाना :-


* 25 ml. ग्लिसरीन तथा 75 ml. गुलाब जल को लेकर एक साफ शीशी मेँ Mix करलेँ । इस प्रकार अब ये आपके लिए लोशन तैयार हो गया ।


-: लोशन की प्रयोग विधि :-


* हल्के गुनगुन पानी से स्नान के बाद रोएदार तौलिए से शरीर को सुखाकर इस लोशन से मालिश करिए और 48 घण्टे मेँ फायदा देखिए । लेकिन रोजाना लगाइए ।

* यदि आपके सिर मेँ रूसी है तो यह लोशन सिर की त्वचा पर भी लगाइए । सिर की रूसी के लिए ये बहुत ही effective हैँ ।


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बुधवार, 5 जनवरी 2011

भविष्य की बीमारियोँ की पहचान हुई आसान

अगर सब कुछ ठीक रहा तो वह दिन दूर नहीँ जब आपको होने वाली आनुवांशिक बीमारी का पता पहले ही चल जाएगा ।
ब्रिटेन के Scientists ने एक ऐसी नई तकनीक विकसित करने का दावा किया है,
जो किसी भी व्यक्ति के जीनोम को कुछ मिनटोँ मेँ ही तैयार कर सकता है । वह भी मौजूदा खर्चोँ की तुलना मेँ बेहद कम दामोँ पर ।


दरअसल शरीर का सारा राज जीन मेँ छुपा होता है । इसके भंडार को जीनोम कहते है । हमारा जीनोम 31 लाख अलग अलग फाँर्मूलोँ से बना है । इन्हीँ फाँर्मूलोँ मेँ छुपा है सारा राज ।

इंपीरियल काँलेज लंदन की एक टीम ने इस तकनीक का पेटेँट कराया है । इसके तहत आगामी दस साल मेँ बहुत ही तेजी से व्यावसायिक तौर पर DNA की सीक्वेँसिग की जा सकेगी ।
इससे साफ है कि इंसान के DNA को डिकोड करके यह बताया जा सकता है कि आगे वह कौन सी बीमारी का शिकार होगा ।
यह शोध नैनो जर्नल मेँ प्रकाशित हुआ है ।
शोधकर्ताओँ ने पाया कि प्रयोगशाला मेँ एक प्रक्रिया के माध्यम से ही पूरे जीनोम को सीक्वेँस किया जा सकेगा । वर्तमान मेँ इसे जटिल तरीके से छोटे छोटे टुकड़ोँ मेँ तोड़कर लंबे समय मेँ क्रमबद्ध किया जाता है ।
Scientists का कहना है कि तेजी से और कम खर्च पर होने वाले इस जीनोम सीक्वेँसिँग से लोगोँ के DNA के राज तुरंत खुल जाऐँगे और उनमेँ अल्जाइमर्स , डायबिटीज और कैंसर होने की आशंका का पता चल सकेगा ।
प्रमुख शोधकर्ता डाँ. जोशुआ ईडेल ने कहा , "वर्तमान तकनीक की तुलना मेँ यह युक्ति ज्यादा किफायती है ।"


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बुधवार, 29 दिसंबर 2010

बांझपन ( इनफर्टिलिटी ) की बंदिश अब नही रहेगी

फैलोपियन टयूब के विकारग्रस्त होने से निःसंतान होना एक व्यक्तिगत समस्या है , किन्तु जिसके जीवन मेँ यह होती वह मानसिक और सामाजिक रूप से टूट जाता है । एक अनुमान के अनुसार दस मेँ से एक दंपति इस समस्या से ग्रस्त हैं ।
इस प्रकार के बांझपन (इनफर्टिलिटी) के लिए मोटे तौर पर एक तिहाई मामलोँ मेँ महिलाएँ , एक तिहाई मेँ पुरूष और शेष मेँ दोनोँ जिम्मेदार हो सकते हैँ । जहाँ तक महिलाओँ की बात है तो उनमेँ बांझपन का एक प्रमुख कारण फैलोपियन टयूब की गड़बड़ी है । 25 से 30 प्रतिशत महिलाओँ मेँ बांझपन का कारण फैलोपियन टयूब का अवरूद्ध (ब्लाँक्ड) होना या उसमे किसी प्रकार का विकार का पाया जाना है ।
जहाँ तक गर्भ ठहरने की बात है तो महिलाओँ मेँ ओवरी ( Overy) से अंडाणु का उत्पादन होता है । ये अंडाणु फैलोपियन टयूब के रास्ते गर्भाशय मेँ जाते हैँ , जहाँ उनका मिलन शुक्राणुओँ से होता है और इसके बाद ही गर्भ ठहरता है ।


-: बिमारी का स्वरूप :-


जहाँ तक फैलोपियन टयूब मेँ खराबी की बात है तो इसका एक सिरा ओवरी के पास होता है तो दूसरा सिरा गर्भाशय मेँ खुलता है । ओवरी वाले सिरे पर उंगलियोँ के आकार की संरचनाएँ पायी जाती हैँ जो ओवरी से निकलने वाले अंडाणु को टयूब के अन्दर पहुँचाती हैँ । यहाँ पर टयूब की लाइनिँग महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है । इसी टयूब के अन्दर अंडाणु को पोषण मिलता है और ऐसा वातावरण भी मिलता है कि वह शुक्राणु से मिल सके । टयूब की लाइनिँग इसके अन्तिम सिरे पर होती है । यहीँ पर अंडा निषेचित (फर्टिलाइज्ड) होता है और पाँच दिनोँ मेँ यह निषेचित अण्डाणु गर्भाशय मेँ पहुचँकर उसकी लाइनिँग से जुड़कर बड़ा होने लगता है


-: विकार का कारण :-


फैलोपियन टयूब मेँ आने वाले विकार के कारणोँ मेँ संक्रमण जैसे - टी.बी , एंडोमेट्रियोसिस , क्लेमाइडिया हाइड्रोसाल्पिँक्स , एक्टोपिक प्रेग्नेन्सी आदि कारण हैँ ।


-: उपचार :-


* अगर फैलोपियन टयूब बच्चेदानी के पास से अवरूद्ध है , तो खराब टयूब के भाग को हटाकर अच्छी टयूब टयूब के भाग को बच्चेदानी से जोड़ा जाता है । इसके अलावा बच्चेदानी के रास्ते से ' कैनुला ' डालकर खोला जा सकता है ।

* टयूब के ओवरी के सिरे से बंद होने की स्थिति मेँ लैप्रोस्कोपी के द्धारा टयूब के ' फिब्रिया ' को खोला जा सकता है और आसपास मौजूद जाला और झिल्ली को साफ किया जा सकता है ।

* यदि टयूब मेँ पानी या रक्त भरा हो तो भी उसे साफ कर टयृब खोली जा सकती है ।

* अधिकतर मामलोँ मेँ ऐसा देखा गया है कि टयूब मेँ संक्रमण या जाले बनने के शुरूआती दौर मेँ ही लैप्रोस्कोपी के माध्यम से जाँच व उपचार कर 'IUI' तकनीक के द्धारा गर्भ ठहरने से संबंधित इलाज किया जाता है , किन्तु यदि संक्रमण पुराना है और उसके कारण टयूब का ज्यादातर भाग खराब हो तब 'IUI' तकनीक सफल नहीँ होती । ऐसे मे ' आई वी एफ ' या इक्सी (टेस्ट टयूब बेबी) तकनीक का प्रयोग कर गर्भ ठहराया जाता है ।


डाँ. मधु लूम्बा
वरिष्ठ स्त्री रोग
व इनफर्टिलिटी स्पेशलिस्ट

mrsanchar@yahoo.com



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