मंगलवार, 2 अगस्त 2011

क्या आप जानते है कि बच्चोँ के दाँत मोती जैसे कैसे निकलेँगे ?



क्या आप जानती हैँ कि गर्भावस्था के दौरान आपकी डाईट भी बच्चे के दाँत को प्रभावित करती है ?
मोती जैसे चमकते दाँत जहाँ आपके मुखड़े की खूबसूरती मेँ चार चाँद लगाते हैँ , वहीँ उसे तंदरूस्त भी रखते हैँ ।
दाँत सिर्फ भोजन को चबाकर आसानी से पचाने लायक ही नहीँ बनाते हैँ बल्कि शब्दोँ से सही उच्चारण और चेहरे की खूबसूरती के लिए भी जिम्मेदार होते हैँ ।

बच्चे का दाँत कैसा होगा ,
इसके लिए सिर्फ उसका
आहार ही जिम्मेदार नहीँ
है , बल्कि आप भी जिम्मेदार हैँ । अगर अपनी गर्भावस्था के दौरान कैल्शियम युक्त खाना खाया है तो आपके बच्चे के दाँत भी खूबसूरत और हेल्दी निकलेँगे । गर्भावस्था मेँ माँ का आहार आने वाले बच्चे के दाँतोँ पर असर डालता है ।


दाँत बनने की प्रक्रिया गर्भावस्था के छठे सप्ताह से ही शुरू हो जाती है । चौथे महिने से दाँतोँ के सख्त भाग बनने लगते हैँ , स्थायी दाँत भी दूध के दाँतोँ के नीचे गर्भावस्था से ही बनने लगते हैँ ।


डाँ. रश्मि स्वरूप जौहरी
कहती है यही वजह है कि
कि गर्भावस्था के दौरान
होने वाली माँ को कैल्शियम
फ्लोराइड , विटामिन सी और डी युक्त पौष्टिक व
संतुलित भोजन लेने की
सलाह दी जाती है । भोजन
मेँ इन पौष्टिक पदार्थोँ की
कमी बच्चे के दाँतोँ की
प्राथमिक बनावट को
बिगाड़ देती है । इस कमी
को बच्चे के जन्म के बाद
उन्हेँ पौष्टिक पदार्थ देकर
भी दूर नहीँ किया जा
सकता है , साथ ही माँ के
खाने मेँ पौष्टिक पदार्थोँ की
कमी शिशू के दाँतोँ मेँ कीड़ा
लगने की आशंका को भी
बढ़ा देती है ।

गर्भावस्था के दौरान माँ को
जर्मन मीजल्स निकलने ,
तेज बुखार होने या टेट्रासाईक्लिन ग्रुप की
दवाएँ लेने से शिशू के दाँतोँ मेँ विकृति और पीलापन आ
जाता है । लिहाजा जहाँ तक
संभव हो इन स्थितियोँ से
बचेँ । इन दवाइयोँ के सेवन
से बच्चे के प्रारम्भिक दूध के दाँत ही नहीँ , बल्कि
स्थायी दाँत भी कमजोर ,
पीले पड़ जाते हैँ ।

दूध के दाँत निकलते समय
बच्चे को तकलीफ न हो
तथा वह रोगोँ का शिकार
न हो , इसके लिए भी उसके
पौषण और स्वच्छता पर
ध्यान देने की जरूरत है ।


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बुधवार, 27 जुलाई 2011

मूंछोँ से हो सकती है एलर्जी


मूंछेँ मर्दोँ की शान होती हैँ , लेकिन ऐसी शान जो जान पर भारी पड़ जाए उसका भला आप क्या करेंगे ।
यदि आप किसी तरह की एलर्जी से परेशान रहते हैँ तो दाढ़ी या फिर मूंछ रखने से पहले आपको सोचना पड़ेगा ।
एक अध्ययन के मुताबिक मूंछ रखने वाले लोग सांस सम्बन्धी एलर्जी के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैँ ।
यदि बार-बार सर्दी-जुकाम , नाक बंद होने , गले मे खराश अथवा सिर दर्द से आप ग्रस्त हो जाते हैँ तो इसका एक कारण आपकी मूंछ भी हो सकती हैँ । मूंछ के बालोँ मेँ मिट्टी फंस जाती है , जिसे एलर्जी होती है ।



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रविवार, 24 जुलाई 2011

इग्नेशिया (IGNATIA)

परिचय :-

इग्नेशिया औषधि बच्चों के रोग तथा स्त्रियों में उत्पन्न होने वाले हिस्टीरिया रोग में अत्यन्त लाभकारी होती है। यह औषधि विशेष रूप से उन स्त्रियों के हिस्टीरिया रोग में अधिक लाभकारी होती है जो सुशील, अधिक कार्य करने वाली तथा नाजुक होती हैं। हिस्टीरिया रोग स्त्री में उत्पन्न होने वाले ऐसे रोग हैं जिसे समझ पाना अत्यन्त कठिन है। हिस्टीरिया रोग ऐसी स्त्रियों में होता है जो अधिक संवेदनशील रहती है, बात-बात पर उत्तेजित हो जाती हैं, जिनका रंग सांवला व स्वभाव कोमल होता है, जिनकी बुद्धि तेज होती है तथा किसी बात को आसानी से समझ लेती है।

मानसिक या शारीरिक विकास में रुकावट पैदा होने के साथ स्वभाव परिवर्तन। हर बातों का विरोध करना। चलाक, स्नायविक, ‘शंकालु, कठोर, कंपायमान जो मानसिक अथवा शारीरिक रूप से बुरी तरह पीड़ित रहती है तथा कॉफी पीने से रोग में आराम मिलता है।

उपरस्थि (सुपरफिसीयल) एवं चलायमान रूप इस औषधि की मुख्य विशेषता है। यह औषधि शोक व चिन्ता आदि को दूर करने में लाभकारी है। त्वचा पर छोटे-छोटे गोलाकार धब्बे बनने पर इग्नेशिया औषधि का प्रयोग किया जाता है। यह औषधि प्लेग, हिचकी और वातोन्माद वमन आदि को भी दूर करती है।

इग्नेशिया औषधि का प्रयोग किसी प्रकार के रोगों में करने के बाद रोगी का रोग तम्बाकू पीने से, शराब पीने से, आंखों की हरकतों से, झुकने से तथा शोर करने से बढ़ता है।

करवट बदलने से तथा रोगग्रस्त अंगों की तरफ लेटने से रोग में आराम मिलता है।

शरीर के विभिन्न अंगों में उत्पन्न लक्षणों के आधार पर इग्नेशिया औषधि का उपयोग :-

मन से संबन्धित लक्षण :- रोगी का स्वभाव बदलने के साथ रोगी में चिन्ता, शोक, अपने ही विचारों में खोया रहना, गम्भीर स्वभाव, दु:खी रहना तथा गुस्सा करना आदि लक्षण उत्पन्न होना। कितनी भी परेशानी हो रोगी अपनी परेशानी दूसरे को नहीं बताता है। इस तरह के लक्षण वाले रोगी को इग्नेशिया औषधि का सेवन कराने से रोग ठीक होता है। इसके अतिरिक्त रोगी में अन्य लक्षण जैसे- लोगों से बात करने की इच्छा न करना। आहें और सिसकियां भरना तथा आघात (Shocks) शोक, निराशा के लक्षणों में इग्नेशिया औषधि का प्रयोग किया जाता है।

सिर से संबन्धित लक्षण :- सिर में खोखलापन व भारीपन महसूस होना, सिर दर्द तथा सिर दर्द झुकने से बढ़ जाना। सिर दर्द होने के साथ ऐसा महसूस होता है कि अन्दर से बाहर की ओर कील निकल रही है। नाक की जड़ में ऐंठन सा दर्द होना। अधिक बोलने या गुस्सा करने के बाद होने वाला सिर दर्द जो धूम्रपान करने या तम्बाकू की गंध सूंघने से बढ़ता है। सिर आगे की ओर झुका हुआ महसूस होता है। इस तरह के लक्षणों के साथ होने वाले सिर दर्द को दूर करने के लिए इग्नेशिया औषधि का प्रयोग करने से रोग में आराम मिलता है।

आंखों से संबन्धित लक्षण :- यदि किसी रोगी को कम दिखाई देता है और साथ ही उसकी पलकें लटक रही हैं और आंखों के आस-पास वाली तन्त्रिकाओं में दर्द हो रहा है तो आंखों के ऐसे लक्षणों में इग्नेशिया औषधि का प्रयोग करना चाहिए। इस औषधि के प्रयोग से रोग ठीक होता है। आंखों के चारों ओर आड़ी-तिरछी लकीरें व धब्बे आने पर भी इग्नेशिया औषधि का प्रयोग लाभकारी होता है।

चेहरे से संबन्धित लक्षण:- चेहरे तथा होठों की पेशियों का कंपकंपाना। आराम करते समय चेहरे का रंग बदल जाना आदि लक्षणों में इग्नेशिया औषधि का प्रयोग करने से लाभ होता है।

मुंह से संबन्धित लक्षण :- मुंह का स्वाद खट्टा होना। गालों का अन्दरूनी भाग दांतों से कट जाना। मुंह से लार का अधिक निकलना। दांतों का दर्द जो कॉफी पीने तथा धूम्रपान करने से शान्त रहता है। इस तरह के लक्षणों में रोगी को इग्नेशिया औषधि देनी चाहिए।

गले से संबन्धित लक्षण :- गले के अन्दर कुछ अटका हुआ महसूस होता है जो न तो अन्दर जा रहा है और न ही बाहर निकल रहा है। ऐसे लक्षण में इग्नेशिया औषधि का सेवन करना चाहिए।
गले में घुटन महसूस होना और पेट में वायुगोला महसूस होना। गले में जलन होना तथा लार को निगलने पर गले में सुई चुभने जैसा दर्द होना आदि इस तरह के लक्षण उत्पन्न होने पर रोगी को इग्नेशिया औषधि का सेवन कराना लाभकारी होता है।
भोजन निगलने पर गले में सुई चुभन जैसा दर्द होता है जो दर्द धीरे-धीरे कानों तक फैल जाता है। गलतुण्डिका में जलन व सूजन आने के साथ उस पर छोटे-छोटे घाव उत्पन्न हो जाते हैं तथा पुटकीय गलतुण्डिका की सूजन आदि। इस तरह के लक्षण उत्पन्न होने पर इग्नेशिया औषधि का प्रयोग करना रोगी के लिए अत्यन्त लाभकारी होता है।

सांस से संबन्धित लक्षण :- गले की खुश्की के साथ उत्तेजित कर देने वाली खांसी का आना तथा खांसी के दौरे पड़ना आदि लक्षणों में इग्नेशिया औषधि का प्रयोग लाभकारी होता है।
गले में उत्तेजना पैदा होने पर रोगी को इग्नेशिया औषधि का सेवन करना चाहिए परन्तु आवश्यकता पड़ने पर इग्नेशिया औषधि के स्थान पर कल्के औषधि का भी प्रयोग किया जा सकता है।
किसी रोग के कारण उत्पन्न होने वाली खांसी या प्रतिवर्ष होने वाली खांसी आदि में रोगी को इग्नेशिया औषधि देना लाभकारी है।
रोगी में उत्पन्न होने वाली ऐसी खांसी जिसमें रोगी को खांसी आने पर और अधिक खांसने की इच्छा होती है तथा रोगी में आहें भरने वाला स्वभाव उत्पन्न होता है। ऐसे लक्षणों में रोगी को यह औषधि देने से रोग ठीक होता है।
रोगी को सांस नली में खोखलापन महसूस होना। मन को उत्तेजित कर देने वाली खांसी उत्पन्न होना। खांसते समय थोड़ी मात्रा में बलगम आना जिसके कारण सांस नली में दर्द पैदा होना तथा शाम के समय खांसी का बढ़ जाना। ऐसे लक्षण वाले रोगी को इग्नेशिया औषधि देनी चाहिए।

स्त्री रोग से संबन्धित लक्षण :- मासिकधर्म काले रंग का तथा समय से पहले अधिक मात्रा या कम मात्रा में आना आदि स्त्री रोगों के लक्षणों में इग्नेशिया औषधि का प्रयोग लाभकारी होता है।
मासिकधर्म के समय अधिक आलस्य आने के साथ आमाशय और पेट में उत्तेजना वाले दर्द होना आदि लक्षणों में रोगी को इग्नेशिया औषधि का सेवन कराना चाहिए।
जिन स्त्रियों में सम्भोग की इच्छा कम हो गई हो तथा अधिक शोक-सन्ताप के कारण उदास व दबी हुई रहती हो तो उस स्त्री को इग्नेशिया औषधि का सेवन कराने से रोग ठीक होता है।

आमाशय से संबन्धित लक्षण :- आमाशय रोगग्रस्त होने के कारण रोगी को खट्टी डकारें आना आदि लक्षण उत्पन्न होने पर रोगी को इग्नेशिया औषधि देने से लाभ होता है।

आमाशय के अन्दर खोखलापन, पेट अधिक फूला हुआ महसूस होना तथा हिचकी का आना आदि लक्षणों में रोगी को इग्नेशिया औषधि देना लाभकारी होता है।

यदि किसी रोगी को आमाशय के अन्दर ऐंठन सा दर्द महसूस होता है तथा साथ ही दर्द छूने से अधिक हो जाता है तो ऐसे में रोग को इग्नेशिया औषधि देने से रोग समाप्त होता है।

घर का पौष्टिक भोजन करने की इच्छा न करना तथा बाजार की अधिक मिर्च-मसाले व तली हुई वस्तु अधिक खाने की इच्छा करना आदि लक्षणों वाले रोगी को इग्नेशिया औषधि देनी चाहिए। इससे रोगी की पाचन क्रिया ठीक होती है और रोगी को भोजन अच्छा लगता है।

यदि रोगी को खट्टी चीजें खाना अधिक पसन्द हो तो भी रोगी को यह औषधि देने से लाभकारी प्रभाव पड़ता है।

रोगी को दम घुटने जैसा महसूस होने के साथ ऐसी स्थिति उत्पन्न होना कि रोगी स्वयं को आमाशय में डूबता हुआ महसूस कर रहा है तथा आराम के लिए रोगी को गहरी सांस लेनी पड़ती है। ऐसी स्थिति वाले लक्षणों में रोगी को इग्नेशिया औषधि देने से रोग ठीक होता है।

नींद से संबन्धित लक्षण :- यदि रोगी को बहुत कम नींद आती है तथा नींद आते ही रोगी को आंखों में झटके महसूस होने लगते हैं। ऐसे लक्षणों में रोगी को यह औषधि देने से अनिद्रा (नींद का न आना) रोग दूर होता है।

यदि रोगी को चिन्ता, डर, भय, रोग, शोक आदि के कारण नींद नहीं आ रही हो तथा साथ ही बाहों में खुजली होती है और अधिक जम्भाइयां आती है तो रोगी में उत्पन्न ऐसे लक्षणों को ठीक करने के लिए इग्नेशिया औषधि का प्रयोग करना अत्यन्त लाभकारी है।

यदि रोगी को नींद आने पर डरावने सपने आते हो साथ ही रोगी नींद में ही डरता रहता है और लम्बे समय बाद अचानक डरकर उठता है। ऐसे लक्षणों को दूर करने के लिए इग्नेशिया औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

पेट से संबन्धित लक्षण :- यदि रोगी के आतों में गड़गड़ाहट हो। ऊपरी पेट के भाग में कमजोरी महसूस होने जैसे लक्षण। पेट के अन्दर जलन होने वाले लक्षण। पेट के एक ओर अथवा दोनों ओर ऐंठनयुक्त दर्द होने वाले लक्षण। इस तरह के लक्षण यदि रोगी में हो तो इग्नेशिया औषधि का प्रयोग करना चाहिए। इससे रोग में जल्दी आराम मिलता है।

बुखार (फीवर) से संबन्धित लक्षण :- यदि बुखार होने पर रोगी के आन्तरिक अंगों में ठण्ड लग रही हो और बाहर से गर्म करने से रोगी को गर्माहट नहीं मिल रही हो तो ऐसी स्थिति में रोगी को इग्नेशिया औषधि देने से तुरन्त लाभ मिलता है।

यदि रोगी को बुखार के साथ खुजली तथा पूरे शरीर में शीत-पित्त का अनुभव हो तो रोगी को इग्नेशिया औषधि देनी चाहिए।

मलाशय से संबन्धित लक्षण :- मलाशय के अन्दर ऊपर तक खुजली होने के साथ सुई के चुभने जैसा दर्द होना तथा मलाशय का चिर जाना आदि लक्षणों में रोगी को इग्नेशिया औषधि का प्रयोग कराने से रोग ठीक होता है।

यदि रोगी को दस्त त्याग करने में परेशानी होती तथा दस्त कठोर होने के कारण मलत्याग के बाद गुदा सिकुड़ने के साथ मलद्वार में तेज दर्द होता है तो रोगी को इग्नेशिया औषधि देने से आराम मिलता है।

यदि किसी रोगी को बवासीर की शिकायत हो और खांसने से बवासीर के मस्से से खून आता हो तथा मलद्वार में सुई के चुभने जैसा दर्द हो तो रोगी को इग्नेशिया औषधि का सेवन कराना चाहिए। इस औषधि के प्रयोग से दर्द व बवासीर के रोग नष्ट होते हैं।

यदि किसी रोगी को मलत्याग करते समय मल के साथ खून आता हो और मलद्वार में तेज दर्द होता है तो ऐसे लक्षणों में रोगी को इग्नेशिया औषधि का सेवन कराने से रोग में आराम मिलता है और मल के साथ खून का बहना बन्द होता है।

यदि रोगी को ऐसा दर्द महसूस होता है कि कोई तेज हथियार दबाव के साथ अन्दर से बाहर निकला जा रहा हो तो ऐसे लक्षण वाले दर्दों में रोगी को इग्नेशिया औषधि देने से रोग ठीक होता है।

कांच निकलना :- मलत्याग करते समय हल्का सा जोर लगाने पर कांच (गुदा) का बाहर आ जाना आदि में इग्नेशिया औषधि का प्रयोग करने से रोग ठीक होता है। कांच निकलने के लक्षण पाडोफाइलम और रूटा औषधि में भी होते हैं।

मूत्र से संबन्धित लक्षण :- पेशाब का अधिक मात्रा में आना तथा पेशाब पानी की तरह बिल्कुल साफ आना। ऐसे लक्षणों में इग्नेशिया औषधि लाभकारी होती है।

त्वचा से संबन्धित लक्षण (स्कीन) :- यदि त्वचा पर खुजली हो गई है तथा शीत-पित्त का प्रकोप रहता है तो रोगी को यह औषधि लेनी चाहिए।

त्वचा रोगग्रस्त होने पर हवा के प्रति अतिसंवेदनशीलता, निस्त्वचन (एक्सकोरीएशन) विशेष रूप से योनि और मुख के चारों ओर त्वचा का उड़ जाना। ऐसे लक्षणों में रोगी को इग्नेशिया औषधि का सेवन करना चाहिए। यह औषधि त्वचा पर तेजी से क्रिया करती है और रोग को समाप्त करती है।

हिचकी के लक्षण :- भोजन करने के बाद या तम्बाकू के गन्ध से यदि किसी को हिचकी आ जाती है तो उसे इग्नेशिया औषधि का सेवन कराना चाहिए।

वृद्धि :- सुबह के समय, खुली हवा में, भोजन करने के बाद, कॉफी पीने से, धूम्रपान करने से, तरल पदार्थो का सेवन करने से तथा बाहरी गरमाई से रोग बढ़ता है।

शमन :- भोजन करते समय तथा शारीरिक स्थिति परिवर्तन करने से रोग में आराम मिलता है।

तुलना :- इग्नेशिया औषधि की तुलना जिंक, काली-फा, सीपिया, सिमिसीफ्यू, पैनासिया तथा आर्वेन्सिस से की जाती है।

इन औषधियों का प्रयोग अन्य परिस्थितियों जैसे जठर प्रदेश के ऊपर संवेदनशीलता के साथ खांसी आना तथा भोजन करने की इच्छा न करना आदि लक्षणों में भी किया जाता है।

पूरक :-:- इग्नेशिया औषधि का पूरक नेट्रम्यूरि औषधि है।

प्रतिकूल :- इग्नेशिया औषधि काफिया, नक्स वमिका तथा ढैबाक औषधि के प्रतिकूल है।

प्रतिविष :-

इग्नेशिया औषधि के प्रयोग में असावधानी करने से यदि रोगी को किसी तरह की हानि होती है तो उस हानि को रोकने के लिए पल्साटिला, कमो तथा काक्कू आदि औषधियों का प्रयोग किया जाता है।

मात्रा :- इग्नेशिया औषधि की 6 से 10 शक्ति का प्रयोग किया जाता है। परन्तु रोग अधिक कष्टकारी होने पर इग्नेशिया औषधि के 200 शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है।


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रविवार, 17 जुलाई 2011

रोगों के अनुसार अलसी का सेवन करें

सुपर फुड अलसी में ओमेगा थ्री व सबसे अधिक फाइबर होता है। यह डब्लयू एच ओ ने इसे सुपर फुड माना है। यह रोगों के उपचार में लाभप्रद है। लेकिन इसका सेवन अलग-अलग बीमारी में अलग-अलग तरह से किया जाता है।

स्वस्थ व्यक्ति को रोज सुबह-शाम एक-एक चम्मच अलसी का पाउडर पानी के साथ ,सब्जी, दाल या सलाद मंे मिलाकर लेना चाहिए । अलसी के पाउडर को ज्यूस, दूध या दही में मिलाकर भी लिया जा सकता है। इसकी मात्रा 30 से 60 ग्राम प्रतिदिन तक ली जा सकती है। 100-500 ग्राम अलसी को मिक्सर में दरदरा पीस कर किसी एयर टाइट डिब्बे में भर कर रख लें। अलसी को अधिक मात्रा मंे पीस कर न रखें, यह पाउडर के रूप में खराब होने लगती है। सात दिन से ज्यादा पुराना पीसा हुआ पाउडर प्रयोग न करें। इसको एक साथ पीसने से तिलहन होने के कारण खराब हो जाता है।

खाँसी होने पर अलसी की चाय पीएं। पानी को उबालकर उसमें अलसी पाउडर मिलाकर चाय तैयार करें। एक चम्मच अलसी पावडर को दो कप (360 मिलीलीटर) पानी में तब तक धीमी आँच पर पकाएँ जब तक यह पानी एक कप न रह जाए। थोड़ा ठंडा होने पर शहद, गुड़ या शकर मिलाकर पीएँ। सर्दी, खाँसी, जुकाम, दमा आदि में यह चाय दिन में दो-तीन बार सेवन की जा सकती है। दमा रोगी एक चम्मच अलसी के पाउडर को आधा गिलास पानी में 12 घंटे तक भिगो दे और उसको सुबह-शाम छानकर सेवन करे तो काफी लाभ होता है। गिलास काँच या चाँदी का होना चाहिए।
समान मात्रा में अलसी पाउडर, शहद, खोपराचूरा, मिल्क पाउडर व सूखे मेवे मिलाकर नील मधु तैयार करें। कमजोरी में व बच्चों के स्वास्थ्य के लिए नील मधु उपयोगी है।

डायबीटिज के मरीज को आटा गुन्धते वक्त प्रति व्यक्ति 25 ग्राम अलसी काँफी ग्राईन्डर में ताजा पीसकर आटे में मिलाकर इसका सेवन करना चाहिए। अलसी मिलाकर रोटियाँ बनाकर खाई जा सकती हैं। अलसी एक जीरो-कार फूड है अर्थात् इसमें कार्बोहाइट्रेट अधिक होता है।शक्कर की मात्रा न्यूनतम है।
कैंसर रोगियों को ठंडी विधि से निकला तीन चम्मच तेल, छः चम्मच पनीर में मिलाकर उसमें सूखे मेवे मिलाकर देने चाहिए।

कैंसर की स्थिति में डाँक्टर बुजविड के आहार-विहार की पालना श्रद्धा भाव से व पूर्णता से करनी चाहिए। कैंसर रोगियों को ठंडी विधि से निकले तेल की मालिश भी करनी चाहिए।
साफ बीनी हुई और पोंछी हुई अलसी को धीमी आंच पर तिल की तरह भून लें। मुखवासी इसका सेवन करें। इसमें सेँधा नमक भी मिलाया जा सकता है। ज्यादा पुरानी भुनी हुई अलसी प्रयोग में न लें।
बेसन में 25 प्रतिशत मिलाकर अलसी मिलाकर व्यंजन बनाएं। बाटी बनाते वक्त भी उसमें भी अलसी पाउडर मिलाया जा सकता है। सब्जी की ग्रेवी में भी अलसी पाउडर का प्रयोग करें।
अलसी सेवन के दौरान खूब पानी पीना चाहिए। इसमें अधिक फाइबर होता है, जो खूब पानी माँगता है।

अंकुरित अलसी

अंकुरित अलसी बनाने की विधिः–

रात को सोते समय अलसी को भिगो कर रख दीजिये। सुबह अलसी को साफ पानी में धोकर पांच मिनट के लिए किसी चलनी में रख दें ताकि उसका पानी नितर जाये। अब साफ धुले हुए मोटे सूती कपड़े जैसे पुराने बनियान में लपेट कर एक प्लेट में रख कर दूसरी प्लेट से ढक कर रख दें। दूसरे दिन सुबह आपके स्वादिष्ट अंकुरित तैयार हैं।

अलसी के कुछ सौंदर्य प्रसाधन आप द्वारा घर पर भी बनाये जा सकते हैं।

अलसी का उबटनः-

चौथाई कप ताजा पिसी अलसी, चौथाई कप बेसन और चौथाई कप गैंहूं के आटे को आधा कप (100 एम.एल.) दही, एक बड़ी चम्मच शहद, एक बड़ी चम्मच अलसी या खोपरे के तेल व किसी भी सुगंधित तेल की 5 बूंद (जैसे लेवेंडर तेल आदि) में अच्छी तरह मिला कर उबटन बनाएं, होले होले चेहरे व बदन पर मलें और घर बैठे ही हर्बल स्पा जैसा लाभ पायें। इससे त्वचा नम व रेशमी बनी रहेगी।

बालों का सेटिंग जेलः-

पहले तीन कप पानी को तेज आंच पर रखें। उबाल आने पर तीन चौथाई कप अलसी डाल कर 8 – 10 मिनट तक सिमर करें। ठंडा होने पर एक चम्मच नारियल या बादाम का तेल व 5 बूंद लेवेन्डर का तेल मिलाएं और फ्रीज में रखें। इसे एक सप्ताह तक बालों को सेट करने हेतु काम में ले सकते हैं।

केश तेलः-

मीठी नीम और मेंहदी के पत्तों को धो कर और पोंछ कर मिक्सर में बारीक पीस लें। एक कप नारियल के तेल को गर्म करें और उसमें एक चम्मच मीठी नीम और मेंहदी के पत्तों के इस पेस्ट को भूरा होने तक धीरे-धीरे भूने। फिर उसमें एक कप अलसी का तेल डाल कर थोड़ा सा लेवेन्डर तेल मिलाएं। आपका केश तेल तैयार है।

स्मरण शक्ति बढ़ाने मेँ प्रयोग

अलसी का तेल आपकी
एकाग्रता, स्मरण शक्ति तथा
सोचने-समझने की शक्ति
को बढ़ाता है। नियमित रूप
से अलसी के तेल के सेवन
से आपको मस्तिष्क सम्बंधी
कोई विकार नहीँ रहेगा ।

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