मंगलवार, 14 जनवरी 2014

गर्भावस्था के स्ट्रैच मार्क्स

एक हालिया सर्वेक्षण में सामने आया है कि भारतीय महानगरों और उप नगरों में नई तथा बनने वाली 87 प्रतिशत माँऐं डिलीवरी से पहले या बाद में अपने शरीर की दिखावट को लेकर चिंतित रहती हैं। 90 प्रतिशत नई तथा बनने वाली मां इस बात से सहमत हैं कि स्ट्रैच मार्क्स उनके लिए सर्वाधिक चिंता का विषय होते हैं।

क्या हैं गर्भावस्था के स्ट्रैच मार्क्स :जच्चा-बच्चा विशेषज्ञों के अनुसार जैसे-जैसे पेट के अंदर बच्चा विकसित होता है तो इसके आसपास की त्वचा में खिंचाव आता है। हालांकि हमारी त्वचा में एक निश्चित मात्रा तक लचक होती है, फिर भी त्वचा में इसके सामर्थ्य से अधिक खिंचाव आता है। कुछ निश्चित प्रकार की गर्भावस्था में यदि बच्चा आकार में बड़ा हो तो दबाव बहुत अधिक होता है।

गर्भावस्था के बाद जब पेट का अतिरिक्त वजन कम हो जाता है तो खिंची हुई त्वचा ढीली हो जाती है जिससे अक्सर मार्क्स रह जाते हैं। इनसे छुटकारा पाना मुश्किल होता है। यह एक सामान्य परिघटना है और हर गर्भस्थ महिला के लिए यह एक डरावने सपने की तरह है।

कब सामने आते हैं स्ट्रैच मार्क्स: विशेषज्ञों के अनुसार अधिकतर महिलाओं में ये मार्क्स गर्भावस्था के छठे या सातवें महीने के बाद सामने आना शुरू हो जाते हैं। गर्भावस्था के बाद ये मार्क्स अधिक दिखने लगते हैं क्योंकि महिला का वजन कम होना शुरू हो जाता है।

डाक्टरों के अनुसार स्ट्रैच मार्क्स आनुवांशिक भी हो सकते हैं। यदि आपकी माता या बहन में भी स्ट्रैच मार्क्स थे तो आप में भी इनके होने की संभावना है। अधिक वजन वाली महिलाओं में ये मार्क्स ज्यादा पाए जाते हैं। गोरी रंगत वाली महिलाओं में गुलाबी रंग के जबकि सांवली रंगत वाली महिलाओं में हमारी स्किन टोन से थोड़े हल्के स्ट्रैच मार्क्स पाए जाते हैं।

सिर्फ पेट पर स्ट्रैच मार्क्स एक भ्रांति: भारतीय महिलाओं का मानना है कि स्ट्रैच मार्क्स सिर्फ पेट पर ही उभरते हैं। यह एक भ्रांति है। गर्भावस्था के दौरान पडऩे वाले स्ट्रैच मार्क्स हो सकता है पेट के आसपास के क्षेत्र पर ही दिखते हों परन्तु ये जांघों पर और यहां तक कि घुटनों से लेकर बांहों पर भी हो सकते हैं।

स्ट्रैच मार्क्स का इलाज: माँओं के लिए यह समझना महत्वपूर्ण है कि स्ट्रैच मार्क्स से बचना पूरी तरह संभव नहीं है। ये मार्क्स गर्भावस्था की देन हैं। कई मामलों में ये गायब होने में 5 से 6 साल का समय लेते हैं। स्ट्रैच मार्क्स को कम करने के लिए एक दिन में दो या तीन बार कोको या शिया बटर से अपनी स्किन को मॉइश्चराइज करने से बहुत सहायता मिलती है। बॉडी ऑयल्स तथा क्रीम्स का नियमित प्रयोग गर्भावस्था के दौरान बहुत जरूरी है क्योंकि इस दौरान महिलाओं की त्वचा अधिक सूखी हो जाती है।

जिन क्रीम्स में ट्रैटीनोइन और टाजारोटीन मौजूद होते हैं वे स्ट्रैच स्ट्रैच मार्क्स के अंदर कोलाजैन का पुन: निर्माण कर सकते हैं और उनकी दिखावट को सुधार सकते हैं लेकिन इनका इस्तेमाल गर्भावस्था के दौरान नहीं किया जाना चाहिए। ग्लाइकोलिक एसिड भी इसी तरह का काम करता है और इसे क्रीम के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है।

कॉस्मैटिक प्रक्रियाओं का इस्तेमाल: जो महिलाएं स्ट्रैच स्ट्रैच मार्क्स से छुटकारा पाना चाहती हैं उनमें कॉस्मैटिक ट्रीटमैंट्स भी एक बढिय़ा विकल्प साबित हो रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार चीर-फाड़ की प्रक्रिया के बिना स्ट्रैच स्ट्रैच मार्क्स को पूरी तरह दूर करना असंभव है क्योंकि यह त्वचा के डर्मिस (मध्यम परत) पर पडऩे वाले दाग हैं। साथ ही विशेषज्ञ यह चेतावनी भी देते हैं कि ट्रीटमैंट्स सिर्फ गर्भावस्था के बाद ही करवाई जानी चाहिए। आइए जानते हैं

कुछ आम कॉस्मैटिक प्रक्रियाओं के बारे में-

एब्डोमिनोप्लास्टी: इसे ‘टमी टक’ के नाम से भी जाना जाता है। यह एक आम सर्जीकल प्रक्रिया है जिसे गर्भावस्था के बाद नजर आने वाले स्ट्रैच स्ट्रैच मार्क्स को हटाने के लिए किया जाता है। यह प्रक्रिया न सिर्फ पेट के निचले हिस्से की अतिरिक्त त्वचा को हटाती है बल्कि साथ ही इसे टोन अप भी करती है। यह एक डे केयर प्रक्रिया है और यह एक सप्ताह तक चलती है। मरीज को कुछ हफ्तों तक खिंचाव पैदा करने वाली गतिविधियों से बचना चाहिए।

लेजर ट्रीटमैंट: पल्स्ड डाई लेजर का इस्तेमाल करने से गर्भावस्था के बाद के स्ट्रैच स्ट्रैच मार्क्स कम हो जाते हैं। ऐसी लेजर ट्रीटमैंट्स सांवली त्वचा वाली महिलाओं के लिए अधिक प्रभावी नहीं हैं। यह प्रक्रिया तब बहुत बढिय़ा काम करती है जब लाल स्ट्रैच स्ट्रैच मार्क्स और त्वचा की पिगमैंट में बहुत बड़ा कंट्रास्ट हो। पुराने स्ट्रैच स्ट्रैच मार्क्स के लिए लेजर बेरंगेपन, आकार तथा गहराई को कम करती है और त्वचा की लचक को 50 से 65 प्रतिशत तक सुधारती है।

स्ट्रैच मार्क्स की देखभाल के टिप्स

1 हमेशा हाईड्रेटिड रहें।

2 स्नान के एकदम बाद ऑलिव, आल्मंड, कैस्टर तथा एवोकाडो ऑयल से शरीर की मालिश करें। एलोवेरा स्ट्रैच स्ट्रैच मार्क्स को समाप्त करने के लिए प्रसिद्ध है।

3 अपनी त्वचा पर अंडे का सफेद हिस्सा लगाएं जो प्रोटीन का भरपूर स्रोत है।

4 गर्भावस्था के दौरान यदि सूर्य की रोशनी में समय बिता रही हों या स्विमिंग करने जा रही हों तो सनस्क्रीन का इस्तेमाल करें।

5 पालक, गाजर, शकरकंद, ब्लूबेरीका, स्ट्राबेरीका, विटामिन ई युक्त खाद्यों, मेवों, एवोकाडो, हरी फूल गोभी तथा साग इत्यादि जैसे एंटी ऑक्सीडैंट्स से भरपूर खाद्यों का सेवन करें क्योंकि इनसे त्वचा को पोषण मिलता है। जो महिलाएं मांसाहारी हैं उनके लिए फिश, अंडे तथा ऑयस्टर्स बढिय़ा विकल्प हैं।

6 स्ट्रैच मार्क्स से बचने के लिए तैलीय खाने की अधिक खपत से बचें। यह एक भ्रांति है कि गर्भस्थ महिला को दो लोगों के बराबर खाना खाना चाहिए। अधिक वजन बढऩे से बचने के लिए प्रोटीन से भरपूर नियमित तौर पर खाना खाएं। वजन बढ़ता है तो स्ट्रैच मार्क्स उभरते हैं।

7 गर्भावस्था के दौरान कसरत करने से त्वचा की लचक बरकरार रहती है। इस प्रकार स्ट्रैच स्ट्रैच मार्क्स कम होते हैं। अपने रक्त प्रवाह को बढिय़ा बनाने के लिए कीजैल एक्साइज करें। आप प्रैगनैंसी योगा का विकल्प भी चुन सकती हैं।

8 स्ट्रैच मार्क्स से खुजली भी हो सकती है परन्तु ऐसा करना नहीं चाहिए। इन पर कैलामाइन ऑयल क्रीम लगाई जानी चाहिए।

सोमवार, 13 जनवरी 2014

ब्लड ग्रुप ए वालों को अधिक होता है गंजापन

एलोपेसिया यानी गंजापन केवल जीन के प्रभाव के कारण ही नहीं होता है बल्कि ब्लड ग्रुप ए के प्रभाव से भी होता है। प्लास्टिक सर्जन डॉ. तेजिंदर भट्टी ने अलग अलग ब्लड ग्रुप्स के ऊपर शोध किया जिसमें पता चला कि ए पॉजीटिव ब्लड ग्रुप के पुरुषों में बाकी ब्लड ग्रुप्स की तुलना में अधिक गंजापन होता है।

डॉ. भट्टी ने बताया कि मरीज पानी, शैंपू की क्वालिटी इत्यादि को गंजेपन का कारण मानते हैं इसके अलावा ब्लड ग्रुप भी उतना ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ए पॉजीटिव ब्लड ग्रुप के लोगों में बी विटामिंस खासतौर पर बायोटिन को ग्रहण(सोखने) की क्षमता कम होती है। जिसके कारण बालों की (मोटाई)थिकनेस कम होती जाती है। एक व्यक्ति के लिए 5 एमजी(mg) बायोटिन रोजाना लेना जरूरी होता है। बायोटिन की ठीक मात्रा शरीर में जाने से बालों की ग्रोथ और बढ़त नार्मल रहती है।

ज्यादातर पुरूष मेल पैट्रन बाल्डनेस के अधिक शिकार होते हैं तो उनमें ए पॉजीटिव ब्लड ग्रुप के पुरुषों में गंजेपन की संभावना अधिक हो जाती है। डॉ. भट्टी ने बताया कि 80 फीसदी केसों में गंजापन करने वाले जीनस मां की ओर से शरीर में आते हैं। अगर आपके नाना या मामा गंजे हैं तो आपके 80 फीसदी गंजे होने के आसार हैं। अद्भुत बात यह है कि मां खुद इस गंजेपन का शिकार नहीं होती है। सिर के आगे के हिस्से में एमपीबी जीनस जड़ों को प्रभावित करते हैं।

रविवार, 12 जनवरी 2014

घरेलू नुस्खों से करें दांतों की रक्षा।

सुंदर, सुडौल और चमकीले दांत एक ओर हमारी सुंदरता को बढ़ाते हैं, वहीं ये हमारे व्यक्तित्व को भी प्रभावशाली बनाते हैं। मानव शरीर का यह अंग हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। सुंदर दांत वालों की हंसमुख प्रकृति और हंसता चेहरा एक प्रसन्नचित व्यक्ति का प्रमाण है।

मानव काया के सुचारू संचालन के लिए जिस ऊर्जा और शक्ति की हमें आवश्यकता है, वह हम भोजन से प्राप्त करते हैं। भोजन का प्रत्येक कण हमारे शरीर को शक्ति, ऊष्मा और स्फूर्ति प्रदान करता है। पाचन क्रिया का पहला कार्य दांतों से ही प्रारम्भ होता है और भोजन को सुपाच्य बनाने में इसका सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान होता है।

अत: भोजन को खूब चबाकर खाना चाहिए ताकि जब चबाया हुआ अन्न पेट में जाए तो दांतों का काम आंतों को न करना पड़े। पूर्ण रूप से चबाकर खाने से हमारे मुंह के लार से घुलकर अन्न का दाना बिल्कुल पिस जाता है जो पाचन क्रिया की पहली सुचारू चेष्टा है। इससे हमारी पाचन शक्ति ठीक रहती है और हम भोजन का शत-प्रतिशत लाभ उठाकर स्वस्थ रहते हैं।

कुछ प्रचलित आजमाए हुए सस्ते और सुविधानुसार उपलब्ध होने वाले सामान तथा उपायों को यहां दिया जा रहा है जिनके पालन से दंत रोगों से बचा जा सकता है।

1 मुंह से दुर्गंध आने पर आम का दातुन नियमित करना चाहिए। कुछ दिन के प्रयोग से मुंह से दुर्गंध आनी समाप्त हो जाएगी।

2 नौसादर, सोंठ, हल्दी और नमक को महीन पीस कर कपड़े में छान लें। फिर सरसों के तेल में मिला कर मंजन करें। इससे पायरिया रोग का भी नाश हो जाएगा और मुंह की सारी दुर्गंध मिट जाएगी।

3 सरसों के तेल में नमक और नींबू का रस मिला कर मंजन करने से भी दांतों को लाभ होता है।

4 मौलसरी के फल या बीज अथवा उसकी छाल का काढ़ा दंत रोगों का नाश करता है।

5 नौसादर और सोंठ को बराबर भाग में लेकर बारीक पीस लें और इसे मंजन की तरह प्रयोग करें। दांत साफ भी रहेंगे और दांतों के दर्द से छुटकारा भी मिलेगा।

6 बादाम के छिलके को आग में जला कर खरल में कूट लें और साफ कपड़े से छान लें। महीन छना हुआ नमक इसमें मिला कर मंजन की तरह रोज प्रयोग करें।

7 पालक का साग पूरे मौसम में खूब खाएं। यह दांतों के लिए बड़ा लाभकारी है।

8.तिल के तेल से दांतों को रगडऩे पर लाभ होता है।

9.मकई के पत्तों को पानी में उबालें और पानी को छान लें। पानी थोड़ा गर्म रहे तो कुल्ला करने पर दांतों को बहुत लाभ होता है।

10 ‘आमचूर’ को खूब महीन पीस कर हल्का गर्म कर मुंह में लगा कर कुल्ला करें। मसूढ़ों का दर्द, सूजन आदि तुरंत दूर होगी।

11 आम की लकड़ी जलाकर मंजन बना लें। इससे मुंह धोने से भी दांतों को लाभ होता है।

12 फिटकरी के पानी से कुल्ला करना भी दांतों के लिए लाभदायक है।

13 लौंग का तेल रूई के फाहे में भिगो कर दांतों पर लगाने से दांतों का दर्द तुरंत दूर हो जाता है।

14 सोया का रस पानी में मिला कर कुल्ला करने से दांत मजबूत और साफ होते हैं।

15 चमेली फूल की पत्ती चबाने से भी दांतों के दर्द में राहत मिलती है।

16 अनार की पत्तियों को सुखा कर चूर्ण बना लें और फिर इसे मंजन की तरह प्रयोग करने से दांत से खून बहना बंद हो जाता है।

17 अमरूद और नीम की कोमल पत्तियों को चबाने से भी दांतों को लाभ होता है।

18 नींबू का रस दांतों के लिए सदा लाभकारी है।

19 टमाटर का रस भी दांतों को स्वस्थ बनाए रखने में सहायक होता है।

20 तुलसी के पांच अंगों (जड़, पत्ते, डंठल, फल और बीज) को लेकर पानी में उबालें। जब आधा पानी रह जाए तो उस काढ़े के गुनगुना रहने पर कुल्ला करें। इससे दांत के कीड़े मर जाएंगे और मसूढ़े का दर्द समाप्त हो जाएगा।

21 तुलसी के पत्ते, लौंग और कपूर मिला कर पीस लें। फिर इसकी छोटी-छोटी गोलियां बना लें। इन गोलियों को दांत के नीचे दबा कर रखने से दांतों का दर्द दूर होता है और मुंह से दुर्गंध का नाश होता है।

22 तुलसी की पत्ती और काली मिर्च पीस कर छोटी गोलियां बना लें। यदि दांतों में दर्द हो तो उस दांत के नीचे गोलियों को दबाने से दांत का दर्द दूर हो जाता है।

23 दांतों की बीमारियों में बबूल बड़ा लाभदायक है। बबूल की लकड़ी को जलाकर कोयला बना लें। इसे महीन पीस कर कपड़े से छान लें। इसे दांतों पर खूब अच्छी तरह मलें और आधे घंटे तक कुल्ला न करें। दांतों का दर्द, दांत का हिलना, दांतों में से खून आना, मसूढ़ों का फूलना सब दूर हो जाता है।

24 सेंधा नमक आग में जला कर बारीक पीस लें और छान कर मंजन की तरह दांतों पर सुबह-शाम मलें। दांतों का दर्द और कीड़े आदि नष्ट होकर दांत मजबूत हो जाते हैं।

25 प्रतिदिन दांतों पर शहद मल कर ताजे पानी से कुल्ला करें। दांत साफ और चमकीले हो जाएंगे तथा दांतों का दर्द, मसूढ़ों की सूजन और दांतों से खून का बहना आदि बंद हो जाएगा।

26 रीठे के बीजों को जला कर चूर्ण बना लें और फिटकरी भून कर बारीक पीस लें, दोनों को मिला कर मंजन की तरह दांतों पर लगाएं। इससे हिलते दांत मजबूत हो जाएंगे तथा दांत का दर्द दूर हो जाएगा।

27 तुलसी की पत्ती सुबह-शाम चबाने से मुंह की दुर्गंध दूर होती है।

28 सौंफ और लौंग को मुंह में लेकर देर तक चबाते और चूसते रहें। इससे भी मुंह की दुर्गंध मिट जाती है।

29 फिटकरी को महीन पीस कर शहद के साथ मिला कर यदि दांतों पर मलें तो दांतों का गिरना रुक जाता है और वे मजबूत हो जाते हैं।

30 जूही फूल को पानी में उबाल कर काढ़ा बना कर कुल्ला करने से दांत की परेशानियां दूर होती हैं।

31 खाने का सोडा और हल्दी मिला कर दिन में तीन बार मंजन करने से हिलते दांत मजबूत हो जाते हैं।

32 पिपली, सेंधा नमक और जीरा प्रत्येक 20-20 ग्राम लेकर बारीक पीस कर मंजन बना लें। मंजन से सुबह-शाम दांत साफ करने से दांतों का हिलना बंद होता है।

33 जामुन की पत्तियों को चबाने से भी हिलते दांतों में फायदा होता है।

34 मुलेठी का दातुन करने से भी दांत रोग में लाभ होता है।

35 भुनी हुई लौंग चबाने से भी हिलते दांत की जड़ मजबूत होती है।

36 गन्ना चूसने से दांत मजबूत होते हैं तथा हिलते दांतों को नवजीवन मिलता है।

37 मौसम के अनुसार फलों का रस पीने से दांत निरोग रहते हैं।

हरी सब्जियों के सेवन से दांत व मसूढ़े मजबूत रहते हैं।

38 सुपारी व गुटखे का प्रयोग भूल कर भी न करें।

शुक्रवार, 10 जनवरी 2014

अनार में सेहत का राज

एक अनार सौ बीमार वाली कहावत आपने सुनी ही होगी। मीठा अनार तीनों दोषों का शमन करने वाला, तृप्तिकारक, वीर्यवर्धक, हल्का, कसैले रसवाला, बुद्धि तथा बलदायक एवं प्यास, जलन, ज्वर, हृदयरोग, कण्ठरोग, मुख की दुर्गन्ध तथा कमजोरी को दूर करने वाला है।

खटमिट्ठा अनार अग्निवर्धक, रूचिकारक, थोड़ासा पित्तकारक व हल्का होता है। पेट के कीड़ों का नाश करने व हृदय को बल देने के लिए अनार बहुत उपयोगी है। इसका रस पित्तशामक है। इससे उल्टी बंद होती है। अनार पित्तप्रकोप, अरूचि, अतिसार, पेचिश, खांसी, नेत्रदाह, छाती का दाह व व्याकुलता दूर करता है।

सिर दर्द: गर्मियों में सिरदर्द हो, लू लग जाये, आँखें लाल-लाल हो जायें तब अनार का शरबत गुणकारी सिद्ध होता है। इसका रस स्वरयंत्र, फेफड़ों, हृदय, यकृत, आमाशय तथा आँतों के रोगों में लाभप्रद है। अनार खाने से शरीर में एक विशेष प्रकार की चेतना सी आती है।

पित्तरोग: ताजे अनार के दानों का रस निकालकर उसमें मिश्री डालकर पीने से हर प्रकार का पित्तरोग शांत होता है।

अरुचि रोग: अनार के रस में सेंधा नमक व शहद मिलाकर लेने से अरूचि मिटती है।

खाँसी: अनार की सूखी छाल आधा तोला बारीक कूटकर, छानकर उसमें थोड़ा सा कपूर मिलायें। यह चूर्ण दिन में दो बार पानी के साथ मिलाकर पीने से भयंकर कष्टदायक खांसी मिटती है।

अर्श या बवासीर: अनार के छिलके का चूर्ण नागकेशर के साथ मिलाकर देने से अर्श (बवासीर) का रक्तस्राव बंद होता है।

पेट के कीड़ें: अनार का रस शरीर में शक्ति, स्फूर्ति तथा स्निग्धता लाता है। बच्चों के पेट में कीड़े हों तो उन्हें नियमित रूप से सुबह-शाम 2-3 चम्मच अनार का रस पिलाने से कीड़े नष्ट हो जाते हैं। अनार का छिलका मुँह में डालकर चूसने से खाँसी में लाभ होता है।

 
Powered by Blogger