गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

खुदकुशी रोकने की बनेगी दवा

हर साल दुनिया भर में लाखों लोग तनाव और अवसाद का शिकार होकर अपनी जिंदगी खत्म कर लेते हैं। उनके इस भयानक इरादे का करीबी लोगों को भनक तक नहीं लगती
लेकिन अब इस दिशा में बड़ी उम्मीद जगी है। अब यह जानना संभव हो सकेगा कि व्यक्ति कहीं आत्महत्या जैसा कदम उठाने की ओर तो नहीं बढ़ रहा। ऐसा शरीर में मौजूद एक खास प्रोटीन का स्तर जान कर किया जा सकता है। वैज्ञानिकों ने इस प्रोटीन की पहचान कर ली है।

कनाडा के शोधकर्ताओं ने उस रहस्य को सुलझा लेने का दावा किया है जिसके कारण लोग आत्महत्या करते हैं या बहुत गहरे अवसाद का शिकार हो जाते हैं। एक अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने पाया कि जो लोग आत्महत्या करते हैं, उनके दिमाग में एक खास तरह की प्रोटीन का स्तर बढ़ जाता है।

यूनिवर्सिटी आफ वेस्टर्न ओंटारियो के माइकल पोल्टर और चा‌र्ल्टन यूनिवर्सिटी के हाइमी एनिसमैन के नेतृत्व
वाले एक अंतरराष्ट्रीय शोध दल ने अपने अध्ययन के
दौरान पाया कि उस खास प्रोटीन का स्तर बढ़ने का
उस विशेष जीन पर प्रभाव पड़ता है जो तनाव और
चिंता को नियंत्रित करता है।

शवों के पोस्टमार्टम के दौरान इन लोगों ने पाया कि अन्य कारणों से मरने वालों की तुलना में आत्महत्या करने वालों में उस खास प्रोटीन का स्तर अधिक था जो तनाव और चिंता को नियंत्रित करने वाले जीन को प्रभावित करता है। शोधकर्ताओं ने बताया कि इस प्रोटीन से उस विशेष जीन में रासायनिक परिवर्तन होता है जिसे हम 'इपिजेनोमिक रेगुलेशन' प्रणाली के रूप में जानते हैं। इस परिवर्तन का परिणाम यह होता है कि तनाव को नियंत्रित करने वाले जीन या तो काम करना बंद कर देते हैँ या फिर गलत ढंग से काम कराना शुरू कर देते हैँ इस तरह तनाव से लड़ने की व्यक्ति की क्षमता को यह बर्बाद कर देता है और व्यक्ति आत्महत्या कर लेता है।शोधकर्ताओं का कहना है कि यह खास जीन दिमाग के क्रियाकलाप को नियंत्रित करने में विशेष भूमिका निभाता है।

पोल्टर के अनुसार, इसके रासायनिक बदलाव की प्रकृति दीर्घकालिक होती है। इसकी परिणति अवसाद के रूप में होती है। उन्होंने कहा कि इस अध्ययन के परिणाम ने पूरी तरह से शोध का एक नया रास्ता खोल दिया है। इस खोज से आत्महत्या की प्रवृत्ति से निजात दिलाने वाली दवा विकसित करने में भी मदद मिलेगी।

अध्ययन का यह परिणाम चल रहे उस शोध का हिस्सा है जिसमें इस बात की जांच की जा रही है कि किस तरह जीन में परिवर्तन की अभिव्यक्ति होती है। वैज्ञानिकों के अनुसार एक खास प्रोटीन का स्तर बढ़ने से व्यक्ति आत्महत्या के लिए प्रेरित होता है।


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सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

हृदय रोगोँ का प्रभावी इलाज

ह्दय रोग मे प्याज का रस काफी लाभकारी पाया गया है. सुबह के समय कच्चे सफेद प्याज का रस दो छोटे चम्मच पीने से हदय रोग के किसी भी अवस्था में लाभ मिलता है. डा० सत्यव्रत सिद्धान्तालंकार ने अपनी पुस्तक "रोग और उनकी होम्योपैथिक चिकित्सा" मे इसके बारे जिक्र करते हुए
लिखा है कि अरब के एक उच्च कोटि के धनी मानी व्यक्ति का कथन है कि उसे ह्दय के रोग के दौरे पडते थे. उसने अपने घर में कार्डियोग्राम की मशीन लगा रखी थी. और प्रतिदिन वह अपने ह्दय की गति की जाँच करवाया करता था. डाक्टरों ने उसे बीसियों गोलियां खाने को दिया था. अरब के एक हकीम ने उसे प्याज का रस पीने का नुख्सा बताया था. उसने आजमाया और उसका ह्दय का रोग जाता रहा. उसने डाक्टरों की गोलियां और मशीन सभी अलग कर दी और प्याज का दो चम्मच रस प्रतिदिन पीने से वह स्वस्थ हो गया ।

लखनऊ के किंग जार्ज मेडिकल कालेज के डा० एन० एन० गुप्त ने अपने परीक्षणों के आधार पर यह कहा है कि कच्चा प्याज का सेवन करने से ह्दय रोगों से बचा जा सकता है । ह्दय रोग मे चने की दाल भी काफी फायदेमंद है. इंडियन कौसिंल आफ मेडिकल रिसर्च द्वारा आयोजित आगरा के एस० एन० मेडिकल कालेज मे किये गये परीक्षणों से यह सिद्ध हुआ है की चने की दाल खाने से ह्दय का रोग नहीं होता है. ह्दय रोग में ह्दय की धमनियों (ARTERIES) मे कोलेस्ट्ररोल की परत जम जाती है जिससे धमनियां मोटी हो जाती है और उसमे खुन के प्रवाह के रुकावट होने लगती है जो दिल के दौरे का मुख्य कारण है. चने की दाल खाने से कौलेस्ट्रोल घुलने लगता है. ह्दय रोगियों को चने की दाल और कच्चे प्याज का अधिक सेवन करना चाहिए.

होम्योपैथिक दॄष्टिकोण से ह्दय रोग मे काफी औषधियां है जो ह्दय रोगी के शारीरिक और मानसिक लक्षण के साथ साथ मियाज्म के आधार पर दिया जाता है पर एक दवा क्रैटेगस (CRATAEGUS), मुल अर्क की १५--१५ बुन्द आधे कप पानी मे डालकर दिन मे दो बार लेने से आश्चर्यजनक लाभ मिलता है. जिस ह्दय रोग मे आपरेशन की अनुशंशा की गई है उनके लिए भी यह समान रुप से उपयोगी है. किसी भी एलोपैथिक दवाओं के साथ साथ इसे भी लें तो धीरे धीरे एलोपैथिक दवाओं से छुट्टी मिल सकती है. लम्बे मुझे अपने परिवार के कुछ सदस्यों और मित्रों पर इसके उपयोग से चमत्कारिक लाभ मिला है. ह्दय (सीने) मे दर्द होने पर इसी दवा की १०-१० बुन्द प्रत्येक पंद्रह पंद्रह मिनट पर दो तीन खुराक मे आराम आ जाता है. उसके बाद कुछ दिनों तक १५ - १५ बुन्द दवा दिन मे तीन बार लें. फिर सिर्फ दो बार शुबह और शाम मे लें.कोई भी ह्दय रोग से पीडित व्यक्ति इस दवा का बिना किसी हिचकिचाहट के उपयोग कर सकते है. ह्दय रोग मे दवा के साथ साथ प्राणायाम भी काफी लाभ देता है. प्राणायाम से फेफडों मे ज्यादा आक्सीजन मिलता है जिससे ह्दय के धमनियों मे जमा कोलेस्ट्रोल की परत को साफ होने मे मदद मिलती है ।


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