रविवार, 17 जुलाई 2011

अलसी में सेक्स समस्या का समाधान

फ्लैक्सीड या अलसी की मदद से सेक्स से जुड़ी समस्याओं का समाधान निकाला जा सकता है। महिलाओं व पुरूषों में सेक्सुअली सक्षम न हो पाने का एक प्रमुख कारण है पेल्विस की रक्त वाहिनियों में रक्त का सही तरीके से प्रवाह न होना। फ्लैक्सीड के लगातार प्रयोग से रक्त वाहिनियां खुल जाती हैं। नब्बे के दशक में फ्लैक्सीड को एक अच्छा एफरोडाइसियेक्स माना जाता था एफरोडाइसियेक्स उत्तेजित करने वाले प्राकृतिक पदार्थ होते हैं।
पिछले कुछ दशकों से किसी भी बीमारी के प्राकृतिक तरीके से उपचार पर ज़्यादा जोर दिया जा रहा है, जिसके लिए जड़ी बूटियों व पौधों की मदद से उपचार के तरीकों को अपनाया जा रहा है। फ्लैक्सीड के प्रयोग से भी बहुत सी बीमारियों का उपचार खोजा जा रहा है। सेक्स से जुड़ी समस्याओं मे फ्लैक्सीड का उपयोग बहुत समय से किया जा रहा है।


अलसी लाभदायी क्यों है

अलसी बहुत से कारणों से लाभदायी है, इन सभी कारणों में से एक कारण है अलसी में अल्फा लिनोलेनिक एसिड का पाया जाना जो कि ओमेगा 3 फैटी एसिड ग्रुप का एक भाग है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए ओमेगा 3 फैटी एसिड बहुत ही महत्वपूर्ण है। अलसी में लिग्नाज़ भी होते हैं जिनमें कि एण्टीआक्सिडेंट होने की वजह से ये कुछ प्रकार के कैंसर से भी सुरक्षा करते हैं जैसे प्रोसट्रेट कैंसर।

65 वर्ष से अधिक उम्र में पुरूषों में यह सबसे ज़्यादा पाया जाने वाला कैंसर है, हालांकि अगर समय रहते इस बीमारी का इलाज शुरू हो गया तो इससे बच पाना सम्भव होता है। इस बीमारी से सेक्स में समस्याएं आ सकती हैं। प्रोसट्रेट कैंसर का पता लगाने के बहुत से तरीके है लेकिन सबसे अच्छा और सबसे मुश्किल तरीका है डिजिटल रेक्टल परीक्षण। दूसरा तरीका है प्रोसट्रेट स्पेसिफिक एन्टीजन टेस्ट। इस टेस्ट में व्यक्ति के खून में एक खास एन्टीजन के पाये जाने से प्रोसट्रेट कैंसर के होने की पुष्टि होती है। लेकिन यह टेस्ट थोड़ा प्रतिद्वंदी होने के कारण बहुत ज़्यादा नहीं सराहा गया है क्योंकि कई बार यह कैंसर की पुष्टि ठीक तरीके से नहीं कर पाता।

प्रोसट्रेट कैंसर की चिकित्सा से सेक्स पर प्रभाव पड़ने के साथ साथ ब्लैडर का नियंत्रण भी खो जाता है ा फ्लैक्सीड की मदद से सेक्स से जुड़ी समस्याओं के साथ साथ कैंसर की रोकथाम भी हो सकती है। अभी भी इस बात की पूरी तरह से पुष्टि नहीं हो पायी है कि फ्लैक्सीड की मदद से कैंसर कैसे ठीक हो सकता है लेकिन सालों से लोग इसका इस्तेमाल करते आ रहे है और इससे लाभ पाकर लोग इसे अपने खाने में शामिल करते हैं।


अलसी का सेवन करने वालों को एक बार डाक्टर से ज़्रूरूर सम्पर्क करना चाहिए। यह प्राकृतिक है लेकिन इसके साइड एफेक्ट हो सकते है और फ्लैक्सीड को पावडर या गोली के रूप में लेने वालो के लिए तो डाक्टर से सम्पर्क करना अनिवार्य है।


आपके लिए अन्य लेख:-

रोगों के अनुसार अलसी का सेवन करें।

तिमाही गर्भ निरोधक इंजैक्शन।

शादी के बाद बनती है अच्छी सेहत।

क्या आप जानते हैं कि बेटी पैदा करने की ख्वाहिश कैसे पूरी हो सकती है।

पुरुष शराब की ओर अधिक आकर्षित क्यों होते हैं?

बढ़ती उम्र में घटती आँखों की रोशनी को कैसे बढ़ाऐं।

कुछ सामान्य लक्षणों से जानें कैंसर का संकेत।

Earn Upto Rs. 9,000 pm. Checking Emails. Join now!


-: MY OTHER BLOGS :-

> SANSAR (Ghazals)

> प्रेरक-विचार

जाने अपने भाग्य, कैरियर और स्वास्थ्य को हाथ की रेखाओँ से

रविवार, 19 जून 2011

स्‍त्री से हार जाता है पुरुष

स्‍त्री का मन पुरुषों के तन को निष्क्रिय कर देता है। कहने का तात्‍पर्य यह है कि स्त्रियों की भावुकता, उनके आंसू पुरुषों के संभोगेच्‍छा को मार डालती है। महिलाएँ भले ही पुरुषों से अपनी बात मनवाने के लिए आसुओं को अपना हथियार मानती हों लेकर उनका यह हथियार उलटवार भी कर सकता है। अनुसंधानकर्ताओं का कहना है महिलाओं के आंसू पुरुषों में सेक्स की इच्छा को कम करते हैं।


इसराइल के विज़मान संस्थान के अनुसंधानकर्ताओं ने पाया है कि महिलाओं के आँसुओं में ऐसे रसायन होते हैं जो पुरुषों में कामोत्तेजना को कम करते हैं। संस्थान से जुड़े प्रोफेसर नोआम सोबेल ने बीबीसी को बताया कि महिलाओं के आँसुओं का यह रसायन कामोत्तेजना से जुड़े हारमोन ‘टेस्टोसटेरॉन’ को कम करता है और उनके मस्तिष्‍क में सेक्स के प्रति रुचि को कम करता है।


टेस्टोसटेरॉन

इस शोध के दौरान अनुसंधानकर्ताओं ने रोने के दौरान महिलाओं के आँसुओं को इकट्ठा किया। इसके बाद पुरुषों को अलग-अलग महिलाओँ की तस्वीरें दिखाई गईं जिस दौरान उन्हें साधारण नमक और महिलाओं के आंसुओं से निकला नमक सुंघाया गया।

जिन पुरुषों की नाक के नीचे महिलाओं के आँसुओं से निकला नमक रखा गया था उन्होंने अलग-अलग महिलाओं की तस्वीरें देखकर भी कोई कामोत्तेजक प्रतिक्रिया नहीं दिखाई।

सिगनल

अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि इस प्रक्रिया के दौरान पुरुषों में ‘टेस्टोसटेरॉन’ का स्तर 13 फीसदी तक कम हो गया। इस शोध को लेकर सोबेल ने कहा, 'यह अध्ययन इस बात को साबित करता है प्रत्येक मनुष्य दूसरे व्यक्ति को कुछ सिगनल देता है जिसके आधार पर दूसरे व्यक्ति का व्यवहार तय होता है। यह प्रक्रिया जाने-अनजाने होती है।'

हालाँकि शोधकर्ताओं को अब भी यह जानना बाकि है कि यह सिगनल किस तरह के होते हैं और किस आधार पर पैदा होते हैं। सोबेल की टीम अब महिलाओं पर पुरुषों के आसुओं का प्रभाव जानने में जुटे हैं।


-: MY OTHER BLOGS :-


> SANSAR(Ghazals)

> प्रेरक-विचार

> Mind Body And Luck Balance

अण्डॆ(Ovam) के निर्माण काल में बदल जाता है बेटियों का व्यवहार

यदि आपकी 18 से 22 साल की बेटी हर महीने किसी खास पीरियड में आपसे बात करने से कतराए तो समझ जाइए कि उस समय वह प्रजनन(हाई फटार्इल पीरीयड) के उच्च स्तर पर है। यानी उस अवधि में उसके अंदर अंडा निर्माण की प्रक्रिया चल रही है। वह उस अवधि में आकर्षक दिखने के लिए सलीके से कपड़े पहनेगी, सजेगी-संवरेगी, लेकिन अपने पापा से बात करने से झिझकेगी। उसकी मस्‍ती सीमित हो जाती है और वह एकांत पसंद करती है।                                                                   इस अवधि में उसकी आवाज में एक मादकता आ जाती है, जो पुरुषों को आकर्षित करती है। अचेतन मन से ही, लेकिन लड़कियां नहीं चाहती कि अण्डाणु निर्माण की अवधि में उसके साथ कोई टोका-टोकी किया जाए। पापा वह शख्‍स होता है, जो अपनी बच्चियों की सुरक्षा के लिए उस पर सबसे अधिक नजर रखता है और शायद यही लड़कियों को इस काल में नागवार गुजरती है।


मां के अधिक करीब
अंडा निर्माण काल में एक युवा लड़की अपने पापा से अधिक अपनी मां से बात करना पसंद करती है। वास्तव में लड़की की पूरी चेतना फलिर्टिलिटी पीरियड में उसे अपने पापा से थोड़ा दूर और मां के करीब रखता है। इस समय लड़की का अपनी मां से भावनात्मक लगाव बढ़ जाता है जबकि सामान्य काल या अनुर्वर अवधि में उसका भावनात्मक लगाव पापा से अधिक होता है।


क्‍या कहता है शोध
फ़्लर्टन के यूनिवर्सिटी ऑफ मियामी एण्ड कॉल स्टेट ने 18 से 22 साल की 48 लड़कियों के मोबाइल फोन के रिकॉर्ड के आधार पर एक अध्ययन किया है। इस अध्ययन में लड़कियों ने उर्वर व अनुर्वर पीरियड में लड़कियों के अपने माता-पिता से बात करने के समय में अन्तर पाया गया। अध्ययन से यह पता चला कि अण्डाणु निर्माण की अवधि यानी उर्वरता काल में लड़कियां अपने पापा से कम बात करती है, जबकि सामान्य काल या अनुर्वर अवधि में वह इसकी अपेक्षा मोबाइल पर पापा से अधिक देर तक बातें करती रही हैं।


मोबाइल कॉल ने खोली पोल

अध्ययन में शामिल लड़कियों ने उर्वर काल में अपने पापा से जहां औसतन प्रतिदिन 1.7 मिनट बात की, वहीं अनुर्वर काल में प्रतिदिन बातचीत की यह अवधि 3.4 मिनट पाई गई। इस दौरान लड़कियों की मां से बातचीत बढ़ गई। प्रति दिन लड़कियां अपनी मां से औसतन 4.7 मिनट तक बातें करने लगी जबकि सामान्य समय में यह 4.2 मिनट प्रति दिन था।

विशेषज्ञों की राय

प्रजनन जीववैज्ञानियों की राय में अंडाणु निर्माण के दौरान स्त्रियां किसी भी तरह के सामाजिक संबंध से कतराती है। ऐसा वह अनजाने ही करती है, लेकिन ऐसे समय वह अपने नातेदार पुरुषों से हमेशा दूर रहने की कोशिश करती है। मीयामी यूनिवर्सिटी के फिजियोलॉजी विभाग के सहायक प्रोफेसर डेब्रा लिब्रेमैन के मुताबिक ऐसे समय स्त्रियों के अंदर सकारात्‍मक ऊर्जा का संचार होता रहता है।

स्त्रियों का चेतन या अचेतन मन से किया गया व्‍यवहार उसके अंदर अंडे के निर्माण पर प्रभाव डालता है। पिता जैसे निकटतक पुरुष नातेदार से अधिक समय तक उसका सामाजिक व्‍यवहार उसके अंदर अनुर्वरता या नकारात्‍मक ऊर्जा को उत्‍पन्‍न कर सकती है। ऐसे काल में स्त्रियां निखर उठती है और संभवत: पिता वह प्राणी होता है, जो उसकी हर हरकत पर नजर रखता है। ऐसे में उसके निखरने या सजने-संवरने पर हल्‍की टोका-टोकी भी नकारात्‍मक ऊर्जा उत्‍पन्‍न कर सकता है, जो उसके उस अवधि में अंडाणु निर्माण की पूरी प्रक्रिया पर असर डाल सकता है। अंडे के कम या अधिक निर्माण पर इनका असर पड़ता है।

प्रजनन काल में स्त्रियों का व्‍यवहार

विशेषज्ञों के अनुसार अंडाणु निर्माण काल में लड़कियां निखर उठती हैं। वह सामान्‍य काल की अपेक्षा इस अवधि में पुरुषों को अधिक आकर्षक लगती हैं। उनकी आवाज में एक खुमारी-सी आ जाती है और आवाज का पिच बदल जाता है। उसका शारीरिक गठन भी सुडौल लगता है और व्‍यवहार भी बदल जाता है। वह इस अवधि में जुबान से अधिक आंखों से बात करना पसंद करती है।

वह अपने पिता से दूर रहना पसंद करती है, लेकिन यदि ब्‍वॉयफ्रेंड है तो वह उसके साथ अधिक समय बिताना चाहती हैा शादीशुदा महिलाएं अंडाणु निर्माण काल में अपने पति से अधिक अच्‍छे से पेश आती है, उसके साथ अधिक समय बिताना पसंद करती है और संभोग के लिए कई बार वही पहल भी करती है। अंडाणु निर्माण महिला की प्रजनन शक्ति का द्योतक है, जो उसके पूरे व्‍यक्तित्‍व को एक नया आकार दे देता है। प्रजनन काल के बीतने पर स्त्रियों का सामान्‍य व्‍यवहार यानी पुरानी मस्‍ती लौट आती है।



-: MY OTHER BLOGS :-


> SANSAR(Ghazals)

> प्रेरक-विचार

> बचत और निवेश

शुक्रवार, 3 जून 2011

अब मच्छर नहीँ काट सकेगेँ

मुमकिन है कि जल्द ही आपको मच्छरोँ के काटने से छुटकारा मिल जाए । भारतीय मूल के एक शोधकर्ता की अगुवाई मेँ अमेरिकी Scientists की एक टीम ने ऐसी गैस तैयार करने का दावा किया है जो मच्छरोँ को उलझन मेँ डालकर उनकी सोचने समझने की ताकत छीन लेती है ।
यूनिवर्सिटी आँफ कैलीफोर्निया के शोधकर्ताओँ ने खुशबूदार अणुओँ का तीन वर्ग तैयार किया है जो मच्छरोँ की इंद्रीय शक्तियोँ को बेकार कर देते हैँ । नतीजतन मच्छरोँ के लिए इंसानोँ का खून पीना मुश्किल हो जाता है । शोधकर्ताओँ का कहना है कि इस खोज से बाजार मेँ नए तरीके के लोशन और स्प्रे आ सकते है ।


-: MY OTHER BLOGS :-


> SANSAR(Ghazals)

> प्रेरक-विचार

> बचत और निवेश

मंगलवार, 31 मई 2011

कैँसर की रेडिएशन के जरिए सर्जरी


फेफड़ोँ मेँ यदि शुरूआत मेँ ही कैँसर का पता लग जाए तो रेडियो सर्जरी काफी कारगर है । इस तकनीक मेँ बिना आँपरेशन रेडिएशन के जरिए सर्जरी का जाती है । कैँसर यदि बढ़ गया है तो कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी के ही विकल्प बचते हैँ । सिर से लेकर गले तक के कैँसर मेँ बीमारी के फैलाव के आधार पर रेडियोथेरेपी या कीमोथेरेपी या सर्जरी की जाती है ।




-: MY OTHER BLOGS :-


> SANSAR(Ghazals)

> प्रेरक-विचार

> बचत और निवेश

च्युंईँगम से स्मोकिँग को गुडबाय


प्रयाग अस्पताल के डाँ. इमरान कहते हैँ कि प्रमुख दवा निर्माता कंपनी सिपला फार्मास्युटिकल ने 'निकोटेक्स' जबकि फाइजर फार्मा ने 'चैँपिक्स' नाम से कुछ समय पहले च्युंईँगम लांच किये थे । 2 और 4 mg निकोटिन की क्षमता वाले ये च्युंईँगम खाते ही सिगरेट पीने या गुटख या मसाला खाने की तलब बिल्कुल खत्म हो जाती है ।
इनका असर 2 से 4 घंटे तक रहता है ।


-: MY OTHER BLOGS :-


> SANSAR(Ghazals)

> प्रेरक-विचार

> बचत और निवेश

क्योँ लगती है निकोटिन (तंबाकू) की लत ?


सिगरेट का हर कश 10 सेकेंड के अंदर दिमाग को निकोटिन भेजता है । उसी दौरान इसके लती को चुस्ती और मन को शांति का अहसास होता है । यह अहसास ही और कश लेने या गुटखा खाने के लिए प्रेरित करता है ।
निकोटिन दिमाग के > उस हिस्से को सक्रिय बना देता है और निकोटिन की जरूरत लगातार पड़ने लगती है । जल्द ही दिमाग की संरचना बदल जाती है और व्यक्ति निकोटिन का लती हो जाता है ।



-: MY OTHER BLOGS :-


> SANSAR(Ghazals)

> प्रेरक-विचार

> बचत और निवेश

शुक्रवार, 20 मई 2011

फायदेमंद है तरबूज

प्यास बुझाने मेँ तरबूज का जबाब नहीँ । तरबूज का 70 से 80 प्रतिशत भाग खाया जाता है । लाल रंग के गूदे वाले तरबूज मेँ सबसे अधिक लाइकोपिन पाया जाता है । लाइकोपिन एंटीआँक्सीडेँट की तरह काम करता है । तरबूज मेँ बीटा केरोटिन भी प्रचुर मात्रा मेँ पाया जाता है । इसके छिलके मेँ सिट्रलिन रसायन पाया जाता है जो शरीर मेँ एर्जीमिन अमिनो एसिड बनाता है । यह एसिड शरीर से अमोनिया व अन्य विषैले पदार्थोँ को शरीर से बाहर निकालने मेँ सहायता करता है ।

font color="green">
-: MY OTHER BLOGS :-

> SANSAR(Ghazals)

> प्रेरक-विचार

> बचत और निवेश

 
Powered by Blogger