मंगलवार, 31 मई 2011

कैँसर की रेडिएशन के जरिए सर्जरी


फेफड़ोँ मेँ यदि शुरूआत मेँ ही कैँसर का पता लग जाए तो रेडियो सर्जरी काफी कारगर है । इस तकनीक मेँ बिना आँपरेशन रेडिएशन के जरिए सर्जरी का जाती है । कैँसर यदि बढ़ गया है तो कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी के ही विकल्प बचते हैँ । सिर से लेकर गले तक के कैँसर मेँ बीमारी के फैलाव के आधार पर रेडियोथेरेपी या कीमोथेरेपी या सर्जरी की जाती है ।




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च्युंईँगम से स्मोकिँग को गुडबाय


प्रयाग अस्पताल के डाँ. इमरान कहते हैँ कि प्रमुख दवा निर्माता कंपनी सिपला फार्मास्युटिकल ने 'निकोटेक्स' जबकि फाइजर फार्मा ने 'चैँपिक्स' नाम से कुछ समय पहले च्युंईँगम लांच किये थे । 2 और 4 mg निकोटिन की क्षमता वाले ये च्युंईँगम खाते ही सिगरेट पीने या गुटख या मसाला खाने की तलब बिल्कुल खत्म हो जाती है ।
इनका असर 2 से 4 घंटे तक रहता है ।


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क्योँ लगती है निकोटिन (तंबाकू) की लत ?


सिगरेट का हर कश 10 सेकेंड के अंदर दिमाग को निकोटिन भेजता है । उसी दौरान इसके लती को चुस्ती और मन को शांति का अहसास होता है । यह अहसास ही और कश लेने या गुटखा खाने के लिए प्रेरित करता है ।
निकोटिन दिमाग के > उस हिस्से को सक्रिय बना देता है और निकोटिन की जरूरत लगातार पड़ने लगती है । जल्द ही दिमाग की संरचना बदल जाती है और व्यक्ति निकोटिन का लती हो जाता है ।



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शुक्रवार, 20 मई 2011

फायदेमंद है तरबूज

प्यास बुझाने मेँ तरबूज का जबाब नहीँ । तरबूज का 70 से 80 प्रतिशत भाग खाया जाता है । लाल रंग के गूदे वाले तरबूज मेँ सबसे अधिक लाइकोपिन पाया जाता है । लाइकोपिन एंटीआँक्सीडेँट की तरह काम करता है । तरबूज मेँ बीटा केरोटिन भी प्रचुर मात्रा मेँ पाया जाता है । इसके छिलके मेँ सिट्रलिन रसायन पाया जाता है जो शरीर मेँ एर्जीमिन अमिनो एसिड बनाता है । यह एसिड शरीर से अमोनिया व अन्य विषैले पदार्थोँ को शरीर से बाहर निकालने मेँ सहायता करता है ।

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रविवार, 8 मई 2011

संगीत से चिकित्सा होगी अब

अगर आप पेट दर्द या सिर दर्द से तड़पते हुए अस्पताल पहुंचे और वहां पहुंचने पर डाक्टर दवा देने के बजाय आपको संगीत सुनाने लगे तो चौंके नहीं। शायद आपको विश्वास नहीं हो, लेकिन आने वाले समय में संगीत को कई बीमारियों के इलाज का कारगर नुस्खे के तौर पर इस्तेमाल में लाया जाने वाला है। विदेश के साथ साथ भारत के कई अस्पतालों में भी इसका इस्तेमाल किया जा रहा है।


स्वास्थ्य पर संगीत के प्रभाव को लेकर अनेक देशों में हुए वैज्ञानिक अध्ययनों से पता चला है कि मनपसंद संगीत सुनने से ब्लड प्रेशर में कमी आती है, दिल की धड़कन नियमित होती है, डिप्रेशन दूर होता है, बेचैनी में कम होती है और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता बढ़ती है। आपरेशन के दौरान या उसके बाद दर्द निवारक दवाइयों की जरूरत कम होती है, कीमोथिरेपी के बाद उल्टी की शिकायत कम होती है, दर्द से राहत मिलती है और पार्किसन के रोगी के अंगों में स्थिरता आती है। संगीत चिकित्सा का इस्तेमाल प्रसव पीड़ा को कम करने के अलावा सिर दर्द और सर्दी, जुकाम जैसी रोजमर्रे की समस्याओं को दूर करने में भी हो रहा है। पश्चिमी देशों में संगीत का इस्तेमाल पार्किसन व अल्जाइमर जैसी खतरनाक बीमारियों के इलाज में भी होता है।

नई दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के बॉडी माइंड क्लीनिक में आने वाले मरीजों के इलाज के लिए संगीत चिकित्सा का भी इस्तेमाल किया जाता है। इस क्लीनिक के प्रमुख और वरिष्ठ होलिस्टिक चिकित्सा विशेषज्ञ डा. रविंद्र कुमार तुली का कहना है कि मानसिक रोगों के मरीजों पर संगीत का चमत्कारिक असर होता है। संगीत मैटाबाल्जिम को तेज करता है, मांसपेशियों की ऊर्जा बढ़ाता है, श्वसन प्रक्रिया को नियमित करता है और ब्लड प्रेशर पर भी सकारात्मक प्रभाव डालता है।

दुनिया के अनेक देशों के साथ साथ भारत में भी संगीत को लेकर अनेक स्तरों पर अध्ययन-अनुसंधान हो रहे हैं। चेन्नई के अपोलो अस्पताल ने संगीत चिकित्सा पर एक साल का एक पाठ्यक्रम शुरू किया है। मुंबई के एक अस्पताल और नागपुर के डाक्टरों की एक टीम ने संगीत चिकित्सा के बारे में अलग-अलग प्रशंसनीय कार्य किए हैं। डयूटी के दौरान दिल के दौरे पड़ने के बढ़ रहे मामलों के मद्देनजर मंुबई पुलिस ने भी तनाव घटाने के लिए संगीत का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। बड़ोदरा में किए गए अध्ययनों में पाया गया कि शास्त्रीय संगीत अनेक तरह की समस्याओं को दूर करने में सहायक है। डाक्टरों का मानना है कि संगीत का उन्मादी लोगों पर भी सकारात्मक असर पड़ता है।
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सोमवार, 2 मई 2011

ऐसे रह सकते हैँ आप हेल्दी


शरीर के लिए डीटाँक्सिफिकेशन उतना ही जरूरी है , जितना घर के लिए सफाई। आप इन टिप्स को फाँलो करके तन-मन साफ रख सकते हैँ :


माँडर्न लाइफस्टाइल की वजह से बाँडी कई तरह के विषैले पदार्थोँ यानी टाँक्सिँस के प्रभाव मेँ आ जाती है । इससे बाँडी सुस्त रहती है और सिस्टम भी ढीला पड़ जाता है । जाहिर है , इससे काम पर इफेक्ट पड़ता है । ऐसे मेँ बाँडी को रेग्युलर डीटाँक्सिफाई करना चाहिए यानी ऐसी डाइट लेँ , जिससे बाँडी से टाँक्सिँस निकल जाएँ ।


क्योँ करेँ डीटाँक्स :-
बाँडी मेँ जब विषैले पदार्थ इकटठे होते हैँ , तब काम करने की कैपेसिटी कम हो जाती है । इससे दिमाग भी थका हुआ महसूस करता है और आप पूरी तरह रीलैक्स फील नहीँ कर पाते हैँ । बाँडी मेँ टाँक्सिँस के जमा होने से और भी कई तरह की परेशानियां हो सकती हैँ । मसलन सेल्स मेँ इनके जमा होने से इम्युनिटी सिस्टम कमजोर हो सकता है , जिससे जुकाम , खांसी , लगातार छीँकेँ आती हैँ । इनसे बचने के लिए डीटाँक्सिफिकेशन तो जरूरी है ही , इसी के साथ डाइट कंट्रोल , एक्सरसाइज , मसाज , रीफलैक्सोलजी , ब्रीदिँग टेक्नीक , मेडिटेशन वगैरह भी जरूरी है ।


ये हैँ फायदे :-
डिटाँक्सिफिकेशन स्टेमिना बढ़ाने का बेहतर तरीका है । इससे आप लाइट , फ्री और फ्रेश महसूस करेँगे । इससे होने वाले तमाम फायदोँ मेँ स्किन व काँम्प्लेक्शन का अच्छा होना, इम्युनिटी सिस्टम का स्ट्राँन्ग होना, पाचन क्षमता का बढ़ना, स्टेमिना और एनर्जी लेवल बढ़ना, मेटाबाँलिज्म का इंप्रूव होना वगैरह हैँ ।
डीटाँक्सिफिकेशन मे ली जाने वाली डाइट से हानिकारक पदार्थ बाहर निकल जाते हैँ और पूरी बाँडी का सिस्टम क्लीन हो जाता है । इस दौरान सबसे ज्यादा इफेक्ट डाइजेस्टिव सिस्टम पर पड़ता है, क्योँकि रिलीफ होने का पूरा टाइम मिलता है । इस प्रोसेस के दौरान फाइबर रिच डाइट मसलन फ्रूट्स, वेजिटेबल और साबुत अनाज ज्यादा लेँ वहीँ, लिक्विड मेँ फ्रूट जूस, वेजिटेबल जूस और सूप ही लेँ । इस दौरान स्मोकिँग, अल्कोहल, काँफी वगैरह ना लेँ । साथ ही, रेड मीट, फैट्स और शुगर जैसी चीजों से परहेज करेँ । दो से तीन दिन तक शाँर्ट व हल्की डाइट लेँ ।
डीटाँक्सिफिकेशन की साइकल हफ्ते मेँ एक दिन और महिने मेँ तीन दिन ही करेँ । अगर आप लंबे टाइम तक डीटाँक्सिफिकेशन डाइट लेना चाहते हैँ, तो डाइटिशियन की सलाह जरूर ले लेँ ।


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शनिवार, 16 अप्रैल 2011

सारे कैँसर को जड़ से मिटा देगा अब एक टीका

कैँसर का टीका तैयार कर रहे Scientists ने कहा है कि अब एक ही इंजेक्शन सभी तरह के टयूमर्स को जड़ से खत्म कर देगा । यह इंजेक्शन दो साल मेँ बाजार मेँ आ जायेगा ।
योँ तो टीके के जरिये रोगोँ से बचाव किया जाता है, लेकिन टेलोवैक इंजेक्शन का इस्तेमाल इलाज के तौर पर किया जायेगा । मौजूदा दवाओँ मेँ ज्यादातर कैँसर की कोशिकाओँ पर हमला करती हैँ । लेकिन टेलोवैक इंजैक्शन टयूमर्स के खिलाफ शरीर की प्रतिरोधक क्षमता का इस्तेमाल करेगा । इससे इम्यून सिस्टम इस कदर तेज हो जाएगा कि वह टेलोमेराज नाम के एंजाइम को नष्ट कर सकेगा । यह एंजाइम कैँसर की कोशिकाओँ मेँ भारी मात्रा मेँ पाया जाता है । टेलोमेराज के कारण ही कोशिकाएं मरती नहीँ, जबकि स्वस्थ कोशिकाओँ का स्वभाव मर जाना है । कोशिकाओँ के न मरने से टयूमर का विस्तार होता जाता है ।
ब्रिटेन मेँ अपने तरह के सबसे बड़े ट्रायल मेँ पैँक्रियाटिक कैँसर के आखिरी स्टेज मेँ पहँच चुके 1000 लोगोँ पर सामान्य दवाओँ के साथ इस टीके को आजमाया गया । 53 अस्पतालोँ मेँ हुए इस ट्रायल के नतीजे अगले साल तक उपलब्ध हो पाएंगे, लेकिन रोगियोँ का कहना है कि ट्रायल मेँ शामिल होने से उन्हेँ एक-दो साल और जीने का मौका मिल गया । ट्रायल के कोआँर्डिनेटर जाँन नेपटोलमोस का कहना है कि पैँक्रियाटिक कैँसर को शरीर का इम्यून सिस्टम पहचान नहीँ पाता, लेकिन उससे टेलोमेराज का रिसाव यह टीका पहचान लेता है और इसके खिलाफ लड़ाई शुरू करा देता है ।
टेलोवैक टीके का विकास कर रही कोरियाई कंम्पनी जेमवैक्स के संस्थापक डाँ जे सांगजे किम का कहना है, दूसरे कैँसर टीकोँ की कमियोँ को यह टीका दूर कर देगा ।


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शुक्रवार, 11 मार्च 2011

डायटिंग को कहें बाय, मोटापे पर मत मचाएं हाय

अगर आपको डायटिंग पसंद नहीं तो अब आप यह बहाना भी मार सकते हैं कि वजन घटाना हमेशा अच्छा नहीं होता। थोड़ा सा मोटा होना और बैलेंस्ड डाइट खाना ज्यादा सेहतमंद है। यह कोई हवाई बात नहीं है, बल्कि रिसर्च में साबित हुई बात है। रिसर्चरों के मुताबिक, यह बात कहकर कुछ ज्यादा ही डराया जाता है कि मोटापा खतरनाक है, पर असल में वजनदार लोग लंबी उम्र जीते हैं। ऐसे लोग अगर जबरदस्ती स्लिम बनने की कोशिश करते हैं तो उनकी सेहत को बड़ा खतरा पैदा हो सकता है।

ब्रिटिश अखबार डेली मेल ने न्यूट्रिशन मैगजीन में छपी इस स्टडी के हवाले से बताया है कि लोगों को तरह-तरह की और बैलेंस्ड डाइट लेनी चाहिए। साथ ही बिना फिक्र किए मजे के साथ एक्सरसाइज करनी चाहिए। फिर चाहे आपका वजन कुछ पाउंड ज्यादा ही क्यों न हो।

स्टडी करने वालों में शामिल एक डायटीशियन ने दावा किया है कि डायटिंग को लेकर लोगों का जुनून खास काम नहीं आता। खाना सामने आते ही वे उस पर टूट पड़ते हैं जिससे वे ज्यादा मोटे हो जाते हैं। यह स्टडी रिपोर्ट कैलिफॉर्निया यूनिवर्सिटी ने साढ़े तीन लाख अमेरिकी लोगों पर विश्लेषण के बाद तैयार की है। रिसर्चर लिंडा बेकन के मुताबिक, काफी सबूत यह साबित करते हैं कि ज्यादा वजन वाले सामान्य वजन वालों से ज्यादा जीते हैं।

जो बुढ़ापे में मोटे होते हैं वे बुढ़ापे में पतले दिखने वालों से ज्यादा जीते हैं। यही नहीं टाइप-2 डायबीटीज, हार्ट की बीमारी और किडनी फेल होने जैसी स्थितियों में मोटे लोगों के बचने के चांस ज्यादा होते हैं। हालांकि सभी जानते हैं कि मोटापा दिल की बीमारियों और दूसरी बीमारियों का खतरा बढ़ाता है पर रिसर्चरों का कहना है कि इन बीमारियों की वजह मोटा होना नहीं है। बल्कि वे इसके लिए सही से खानपान न होना और एक्सरसाइज न करना मानते हैं, जो कि अक्सर मोटापे के साथ आती हैं।

स्टडी में सलाह दी गई है कि डायटिंग की दीवानगी के बजाय, अगर लोग अपने शरीर को जैसा है, वैसा स्वीकार करने लगें और उसी का सही से ख्याल रखें, तो ज्यादा अच्छी सेहत बनेगी। खाने में तरह-तरह की पोषण वाली चीजें खाएं, न कि खुद को कुछ कैलरी तक सीमित रखें।
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