रविवार, 6 नवंबर 2011

सियाटिका के दर्द को देँ ऐसे शिकस्त


सियाटिका नर्व (नाड़ी) शरीर की सबसे लंबी नर्व होती है। यह नर्व कमर की हड्डी से गुजरकर जांघ के पिछले भाग से होती हुई पैरोँ के पिछले हिस्से मेँ जाती है। जब दर्द इसके रास्ते से होकर गुजरता है, तब ही यह सियाटिका का दर्द कहलाता है। होलिस्टिक मेडिसिन के तहत इस मर्ज का स्थायी समाधान संभव है।


लक्षण


* कमर के निचले हिस्से मेँ दर्द के साथ जाँघ व टांग के पिछले हिस्से मेँ दर्द।

* पैरोँ मेँ सुन्नपन के साथ मांसपेशियोँ मेँ कमजोरी का अनुभव।

* पंजोँ मेँ सुन्नपन व झनझनाहट।

बचाव

* प्रतिदिन सामान्य व्यायाम करेँ।

* वजन नियंत्रण मेँ रखेँ।

* पौष्टिक आहार ग्रहण करेँ।

* रीढ़ की हड्डी को चलने-फिरने और उठते-बैठते समय सीधा रखेँ।

* भारी वजन न उठाएं।

होलिस्टिक समाधान

सामान्य रूप से यदि मरीज की उम्र बहुत अधिक नहीँ है, तो इस बीमारी को ठीक करना आसान होता है। मर्ज के शुरूआती दौर मेँ गर्म पैक, आराम और दर्दनाशक गोली का सेवन उपयोगी है।

डीप हीट थेरैपी

बीमारी पुरानी होने पर यह थेरैपी लाभप्रद है। इसके तहत गर्म पानी के प्रयोग से या अरंडी के तेल का गर्म पैक लगाने से मांसपेशियां शिथिल होती हैँ।

काइरोप्रैक्टिक चिकित्सा

मांसपेशियोँ के शिथिल होने पर व्यायाम करना जरूरी होता है। इससे विभिन्न स्थितियोँ मेँ मरीज का शरीर सुचारू रूप से गति करता है। इस प्रक्रिया से नर्व पर दबाव समाप्त हो जाता है और धीरे-धीरे दर्द जाता रहता है।

रीढ़ की कसरत

नर्व पर दबाव समाप्त होने पर रीढ़ की हड्डी के व्यायाम मांसपेशियोँ को मजबूत बनाते हैँ। इससे बीमारी के पुनः होने की संभावना समाप्त हो जाती है।

पोषक तत्व

आहार मेँ विटामिन सी, ई, बीटा कैरोटिन (हरी सब्जियोँ व फलोँ मेँ) और कैल्शियम का सेवन उपयोगी है। कैल्शियम दूध मेँ पर्याप्त मात्रा मेँ पाया जाता है। इसी तरह कान्ड्राइटिन सल्फेट व ग्लूकोसामीन (इन पोषक तत्वोँ की गोलियाँ दवा की दुकानोँ पर उपलब्ध हैँ) का सेवन भी लाभप्रद है। वहीँ आइसोफ्लेवान (सोयाबीन मेँ मिलता है) और विटामिन बी12 (बन्दगोभी व ऐलोवेरा मेँ) आदि का पर्याप्त मात्रा मेँ प्रयोग करने से ऊतकोँ (टिश्यूज) का पुःन निर्माण होता है।

परिणाम

मरीज की उम्र यदि बहुत अधिक नहीँ है और उसकी डिस्क कई हिस्सोँ मेँ टूटी नहीँ है, तो उपर्युक्त चिकित्सा औसतन 2 से 3 महिने मेँ आश्चर्यजनक परिणाम देती है।

शनिवार, 8 अक्टूबर 2011

तिमाही गर्भ निरोधक इंजैक्शन


प्रo तिमाही गर्भनिरोधक
इंजैक्शन क्या है?
उo तिमाही गर्भ निरोधक
इंजैक्शन अनचाहे गर्भ को
रोकने का एक उपाय है। यह
अनचाहे गर्भ को रोकने की
इच्छुक महिलाओँ के लिए
एक सरल और सुरक्षित
उपाय है। यह 99.796
प्रतिशत प्रभावशाली है।

प्रo यह सूई कहाँ लगाई
जाती है?
उo यह महिला के बांह या
कूल्हे मेँ लगाई जाती है।

प्रo यह गर्भ निरोधक
इंजैक्शन कब लगवाया जा
सकता है?
उo पहली सूई के बाद हर3
महिने मेँ एक सूई लगवाएं।
यह इंजैक्शन हर 3 महिने
मेँ लगवाना बहुत जरूरी है,
पर यदि किसी कारण से
इसे निर्धारित तारीख पर न
लगपा पाएं तो उस तारीख
से 2 हफ्ते पहले या 2 हफ्ते
बाद भी लगवा सकती हैँ।
यदि 2 हफ्ते से ज्यादा देर
हो जाए तो अगली सूई
लगवाने तक या तो यौन
संबंध न बनाएं अथवा यौन
संबंध मेँ सुरक्षित गर्भ
निरोधक अपनाएं।

प्रo महिलाओँ को कब
इसकी शुरूआत करनी
चाहिए?
उo जब आपको पक्का
यकीन हो कि आप गर्भवती
नहीँ हैँ। आमतौर पर
मासिक चक्र शुरू होने के
बाद अगले 7दिनोँ मेँ इसकी
शुरूआत की जा सकती है।
गर्भपात करवाने के या गर्भ-
पात होने के तुरन्त बाद भी
इसे लगवाया जा सकता है।
यदि आप स्तनपान करवा
रही हैँ तो प्रसव के 40 दिन
के बाद ये इंजैक्शन लगवा
सकती हैँ। स्तनपान न
करवाने वाली महिलाएं भी
प्रसूति के तुरंत बाद इंजैक्शन
लगवा सकती हैँ।

प्रo दूध पिलाने वाली माँएं
भी इसे ले सकती हैँ?
उo जी हाँ, दूध पिलाने
वाली माँओँ के लिए भी यह
सुरक्षित है।

प्रo तिमाही गर्भनिरोधक
इंजैक्शन कैसे असर करता
है?
उo तिमाही गर्भ निरोधक
के दौरान अण्डाशय मेँ अण्डा
विकसित नहीँ होता इसलिए
स्त्री गर्भवती नहीँ होती है
साथ ही गर्भाशय की अन्दरूनी
परत भी गददेदार नहीँ बनती ।

प्रo क्या इस इंजैक्शन
(डिपो प्रोवेरा 150 mg) का
प्रयोग बंद करने के मैँ माँ
बन सकती हूँ ?
उo बिल्कुल, इसका आपकी
गर्भधारण क्षमता पर कोई
असर नहीँ पड़ेगा। ज्यादातर
महिलाओँ मेँ आखिरी इंजैक्शन
के असर खत्म होने के 5-6
महिने बाद माहवारी शुरू
हो जाती है और गर्भधारण
क्षमता पहले जैसी हो जाती
है।

प्रo क्या तिमाही गर्भनिरोधक
इंजैक्शन के इस्तेमाल से
मेरे शरीर मेँ कोई बदलाव
आयेगा या मेरी सेहत पर
कोई असर पड़ेगा ?
उo इससे आपकी सेहत पर
कोई असर नहीँ पड़ेगा पर
आपके मासिक चक्र मेँ परी-
वर्तन जरूर आयेगा। कुछ
महिलाओँ को शुरूआती
महिनोँ मेँ अनियमित रक्त
स्त्राव और दाग-धब्बे आ
सकते हैँ फिर माहवारी धीरे
-धीरे बन्द हो जायेगी। जब
तक आप सूई लगवाती
रहेँगी यह असर रहेगा। जब
आप सूई लगवाना बंद कर
देँगी तो माहवारी पुन: शुरू
हो जाएगी।

प्रo महिलाओँ को गर्भ निरोधक
इंजैक्शन क्योँ चुनना चाहिए ?
उo क्योँकि एक सूई से आप
3 महिने के लिए निश्चिँत
हो सकती हैँ। इस इंजैक्शन
से माँ के दूध की मात्रा या
उसके गुणोँ पर कोई असर
नहीँ पड़ता बल्कि यह तो
मासिक रक्तस्त्राव मेँ कमी
लाकर एनीमिया को रोकने
मेँ सहायता करता है।

प्रo क्या यह इंजैक्शन सभी
महिलाओँ के लिए ठीक
रहेगा ?
उo यह इंजैक्शन अधिकतर
महिलाओँ को लगाया जाता
है लेकिन कुछ एक अवस्थाओँ
मेँ इसे नहीँ देते मसलन
लीवर रोग, हाई ब्लड प्रैशर
आदि। अगर आपको यह
इंजैक्शन लेना हो तो अपनी
स्त्री-रोग विशेषज्ञ से संपर्क
करेँ।

शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2011

क्योँ होता है सिर दर्द


सिर दर्द एक आम बीमारी
है। आमतौर से 90 प्रतिशत
व्यक्तियोँ मेँ एक बार सिर
दर्द होता ही है। 40 प्रतिशत
व्यक्तियोँ मेँ वर्ष मेँ एक बार
बहुत तेज सिर दर्द होता है।

*सिर दर्द के बहुत से कारण
हैँ, गम्भीर रोगोँ के प्रति भी
यह इशारा कर सकता है।

*सिर दर्द का आम कारण
टेँशन होता है जो आज के
युग मेँ आम बात है।

*सिर दर्द के रोगी का रक्त-
चाप अवश्य नाप लेना
चाहिए क्योँकि बढ़ा हुआ
रक्तचाप इस लक्षण का एक
आवश्यक कारण है।

*बार-बार जुकाम वाले
रोगी को जो सिर दर्द
साइनासाइटिस की वजह से
होता है। जो सूर्य के बढ़ते-
बढ़ते बढ़ता जाता है और
सूर्यास्त होते-होते घटने
लगता है। आगे झुकने पर
यह दर्द बढ़ जाता है।

*मस्तिष्क की झिल्लियोँ मेँ
सूजन(मेनिँगजाइटिस) सिर
दर्द का एक प्रमुख कारण है।
रोगी तेज रोशनी से बचने
का प्रयास करता है।

*ब्रेन ट्यूमर सिर दर्द का
खतरनाक कारण है, इसका
निदान सीoटीo स्केन से
होता है पर ये आवश्यक
नहीँ कि हर सिर दर्द के
मरीज का सीoटीo स्केन
करा लिया जाये।

*एक तरफा सिर दर्द
माइग्रेन का लक्षण है।

*सिर पर चोट लगने के
बाद सिर दर्द होना एक
आम बात है।

*किसी चीज की आदत को
एकदम से छोड़ना सिर दर्द
का कारण हो सकता है। जैसे
- धुम्रपान या शराब।

*तेज बुखार मेँ सिर दर्द हो
सकता है।

*नीँद का पूर्ण न होना सिर
दर्द का आम कारण है।

*आँखोँ का रोग जिसे
ग्लूकोमा कहते हैँ, मेँ सिर
दर्द होता है साथ मेँ उल्टी
होना पाया जाता है।

*यदि चश्मे की आवश्यकता
है और उसका उपयोग नहीँ
किया जाये तो सिर दर्द हो
सकता है।

*दाँतोँ की तकलीफ मेँ सिर
दर्द हो सकता है।

*सिर दर्द को साधारण रोग
ने समझकर चिकित्सक की
राय लेना आवश्यक है। दर्द
की दवाई से सिर दर्द घट
जायेगा पर जब तक मूल
कारण का पता न लग जाये
वह बार-बार होता रहेगा।

बुधवार, 5 अक्टूबर 2011

डायबिटिज वाले क्या खायेँ


आहार मेँ कुछ food
substance ऐसे होते हैँ
जिन्हेँ अवश्य शामिल करना
चाहिए जैसे- ओट्स,
सोयाबीन, हरी चाय, जौँ
तथा ईसबगोल।

ओट्स या ओटमील:-इसमेँ
एक विशिष्ट प्रकार का
फाइबर पाया जाता है जिसे
वीटा ग्लूकोज कहते हैँ। यह
घुलने वाला फाइबर होता है
और शरीर को बुरे
कोलेस्ट्रोल एलoडीoएलo
से लड़ने मेँ मदद करता है।
सबसे बड़ी बात तो यह है
कि यह केवल बुरे
कोलेस्ट्रोल को ही
कम करता है और अच्छा
कोलेस्ट्रोल एचoडीoएलo
शरीर मेँ बरकरार रहता है।
जिससे शरीर मेँ एलoडीo एलo और एचoडीoएलo
कोलेस्ट्रोल के बीच बेहतर
अनुपात रहता है।

सोयाबीन :- सोयाबीन
शरीर को हाइपरकोले-
स्ट्रोमिया से बचाता है और
शरीर मेँ बुरे कोलेस्ट्रोल
एलoडीoएलo को घटाता है।

हरी चाय :- कई शोधोँ से
यह सिद्व हुआ है कि काली
या हरी चाय पीने से शरीर
मेँ कोलेस्ट्रोल का जमाव,
रक्तचाप आदि नियंत्रित
होते है। चाय मेँ फोलिक
एसिड होता है जो कि इंसान
को कैँसर तथा हृदय रोग से
बचाता है ।

जौँ :- जौँ मेँ स्वास्थ्यवर्धक
प्रभाव पाए जाते हैँ। जौँ
शरीर मेँ से 15 प्रतिशत
तक बुरे कोलेस्ट्रोल को
निकाल सकता है। जौँ मेँ भी
बीटा ग्लूकोज पाया जाता है
जो कि घुलने वाला फाबर
है।

ईसबगोल :- ईसबगोल भी
बेहद फायदेमंद होता है।
यह भी शरीर का कोलेस्ट्रोल
कम करता है। पेट ठीक
रखने मेँ भी मददगार होता है।

गुरुवार, 29 सितंबर 2011

रत्नोँ के लाभ


आजकल गली-चौराहे व
चौपाटियोँ पर जगह-जगह
रत्नोँ की दुकानेँ खुल गई हैँ।
विक्रेता रत्न के बारे मेँ जानेँ
या ना जानेँ, पर इस फायदे
मंद धंधे को अपनाने से पीछे
नहीँ हटते।

वे जानते हैँ कि आजकल
रातोँ-रात लखपति बनने के
सपने आदमी देखता है।
रोगमुक्त जीवन जीना
चाहता है। फिर इन रत्नोँ
की जानकारी चाशनीदार
भाषा मेँ रूपान्तरित कर
खरीदार के समक्ष पेश करने
मात्र से लाभ ही लाभ है तो
क्या बुरा है।
आपको बता देँ कि कोई भी
रत्न अच्छे जानकार से पूछे
बगैर धारण न करेँ। बिना
सोचे-समझे पहननेँ पर
संभवतः आपको हानि ही
हाथ लगेगी।
आइए आपको रत्नोँ की
संक्षिप्त जानकारी देँ :-

1. माणिक्य :- यह सिँह
राशि का रत्न है जो सूर्य के
दोषोँ को दूर करता है।इसके
अलावा यह सिर, हृदय, पेट
व नेत्रोँ पर प्रभाव डालता
है। इससे ब्लड प्रैशर,
मधुमेह जैसी बीमारियोँ मेँ
लाभ पहुँचाता है। इसके
अलावा पीठ मेँ उत्पन्न पीड़ा , वातविकार, कर्ण रोग मेँ
प्रभाव दिखाता है।

2. नीलम :- यह कुंभ व
मकर राशि का रत्न है। यह
शनि पीड़ा को शांत करता
है। इस रत्न को धारण करने
से दाम्पत्य सुख मेँ वृद्वि,
टयुमर, घुटनोँ का दर्द, जोड़ोँ
का दर्द, घाव मेँ सड़न, श्वास
व अंडकोष की बीमारी जैसे
कष्ट दूर होते हैँ।

3. मोती :- यह चंद्र रत्न है।
अतः कर्क राशि वालोँ के
लिए फायदेमंद है। यह
त्वचा रोग, पेट संबंधी
बीमारी, श्वास रोग,
मस्तिष्क रोग मेँ लाभकारी है।

4. पुखराज :- यह धनु राशि
का रत्न है। गुरू के दोष को
शांत करने के लिए इसे
धारण किया जाता है। यह
दांपत्य जीवन को सुखमय
एवं कुछ बीमारियोँ मेँ जैसे
गर्भाशय, सैक्स अंगोँ,
किडनी, लीवर, घुटने,
कोहनी के दर्द, गैस, मुत्र
विकार, हड्डियोँ का दर्द दूर
कर लाभ पहुँचाता है। इसके
अलावा गुस्से को शांत करने
की क्षमता भी है इसमेँ।

5. गोमेद :- जो यूरेनस के
कारण कष्टमय जीवन जी
रहे हैँ, वे इसे धारण कर
सकते हैँ। इसके अलावा 4
अंक वाल (जिनका जन्मांक
4 हो) इसे धारण कर
मस्तिष्क, श्वास, मूत्र,यौनांग,
पेट, हृदय तथा तंत्रिकाओँ
संबन्धी समस्या से बच
सकते हैँ।

6. पन्ना :- यह कन्या राशि
वालोँ का शुभ रत्न है। इसके
अलावा मूलांक 5 वाले भी
इसे धारण कर सकते हैँ।
यह रत्न बुध का प्रतीक है।
यह दिमागी विकृति, कर्ण
रोग तथा दृष्टि दोष दूर
करने मेँ सहायक है।

7. हीरा :- मूलांक 6 एवं
तुला राशि वालोँ के लिए
यह रत्न उपयोगी है। शुक्र
ग्रह दोष नाशक रत्न है।
इससे रत्न चिकित्सक शुक्र
दोष (शुक्राणुओँ की कमी),
नशापान तथा चर्मरोग दूर
करते हैँ।

8. लहसुनिया :- यह मीन
राशि एवं मुलांक 7 वालोँ
का मुख्य रत्न है। इससे केतु
के प्रभाव मेँ शांति मिलती है।
इसे धारण कर आप चमड़ी के रोग, पाचन विकार, रक्त
विकार, आमाशय एवं दृष्टि
विकार से बच सकते हैँ।
यह शरीर मेँ स्फूर्ति प्रदान
करने वाला रत्न है।

9. मूंगा :- यह वृश्चिक एवं
मूलांक 9 वालोँ के लिए
अति उत्तम रत्न है। मंगल
का प्रतीक यह रत्न घाव,
छाले, हड्डी व जोड़ोँ के रोग,
आँतविकार, रक्त दोष,
पाचक अंगोँ के दोष तथा
टयूमर, कैँसर जैसी घातक
बीमारियोँ को दूर करता है।

रत्न धारण करने से पूर्व
किसी अच्छे रत्न चिकित्सक
से मिलेँ, तभी उसे धारण
करेँ वरना सड़क पर कई
अज्ञानी अपना-अपना
बखान करते मिल जाते हैँ,
जो आपके लिए घातक सिद्व
हो सकते हैँ।

सोमवार, 26 सितंबर 2011

क्योँ आता है जल्दी बुढ़ापा?


आज भी मॉर्डन जीवन शैली
मेँ जल्दी बुढ़ापा आने का
मतलब है कि शारीरिक
और मानसिक तौर पर
जल्दी कमजोर हो जाना।
दरअसल बढ़ती उम्र हमेँ
जीवन के आखिरी पड़ाव
बुढ़ापा या वृद्वावस्था तक
पहुँचाता है।
वृद्वावस्था वह अवस्था
होती है जब शरीर की सुनने
, देखने, बोलने, सूंघने, जीभ
, त्वचा, मानसिक क्षमता का
काम करने की योग्यता
क्षीण होने लगती है लेकिन
मॉर्डन जमाने मेँ यह
अवस्था जल्द ही इंसान को
अपने वश मेँ करने लगती
है।


जल्दी वृद्वावस्था आने के
कारण
:-

> भागती-दौड़ती जीवन शैली,

> गलत खाने की आदतेँ,

> शराब व तंबाकू का सेवन।


रोकथाम के उपाय
:-
> रोजमर्रा जीवन मेँ योगा
व आयुर्वेद का उपयोग करना।

> स्वादोँ 'मीठा, खट्टा, कड़वा, तीखा, नमकीन' का
संतुलित सेवन करना।

> कैलोरी के सेवन व खपत
मेँ सामंजस्य।

> नपा-तुला आहार लेना।

> तेल से शरीर की मालिश
करना ताकि शरीर मेँ लोच
रहे।

> नियमित व्यायाम, ध्यान
तथा सकारात्मक सोच।

> पढ़ना, संगीत सुनना व
हर वह काम करना जिससे
आपको खुशी मिले।


प्राकृतिक नियम
:-

> शुरूआती उम्र मेँ ही प्राणायाम करने से फेफड़े
मजबूत बनते हैँ।

> हंसना लम्बे जीवन के
लिए बहुत कारगर है।

> बालोँ को गर्म पानी व धूप
से बचना चाहिए ताकि
बाल जल्दी सफेद न होँ।

> सीजन के फल व
सब्जियोँ का सेवन अवश्य करेँ।
उदाहरण :- सर्दियोँ मेँ
आंवला, गर्मी मेँ नीँबू व
लंच के दौरान बटरमिल्क
लेना।

> जीवन मेँ पौष्टिक आहार
का बेहद महत्व है। निम्न
रसायनोँ का इस्तेमाल
करना चाहिए। बाल्यावस्था
मेँ- बाला व अतिबाला,
बीच की उम्र मेँ-अर्जुन,
युवावस्था मेँ -आमलकी,
सभी उम्र के लिए -तुलसी।

> हमारा शरीर 30 वर्षो की
उम्र तक शत-प्रतिशत
उर्जावान हो जाता है।
55 वर्ष की उम्र मेँ हृदय की
क्षमता 20 प्रतिशत तक कम
हो जाती है। 55 की उम्र मेँ
गुर्दोँ की क्षमता 25 प्रतिशत
घट जाती है। इसलिए
पौष्टिक आहार व व्यायाम
से हम उम्र को मात दे सकते हैँ।

शनिवार, 17 सितंबर 2011

सपनोँ मेँ भी महिलाओँ से भेदभाव


रात मेँ सोते समय सपने
देखना एक आम बात है।
हम सब कुछ हसीन सपने
देखते हैँ लेकिन कभी-कभी
सपने हमेँ अच्छा-खासा डरा
भी देते हैँ।

विशेषज्ञोँ के दावे को सही
माने तो सपनोँ की दुनिया
मेँ भी महिलाओँ के साथ
भेदभाव होता है। एक
रिसर्च के मुताबिक पुरूषोँ
के मुकाबले महिलाओँ को
ज्यादा डरावने सपने
दिखाई देते हैँ।

शोधकर्ताओँ का कहना है
कि रात को सोते वक्त
महिलाओँ को आने वाले
सपने मेँ हार्मोन महत्वपूर्ण
भूमिका निभाता है। शोध
से यह तथ्य सामने आया
है कि सपने के विषय तय
करने मेँ महिलाओँ के
हार्मोन चक्र की भूमिका
होती है। माहवारी से पहले
महिलाएं ज्यादा भावनात्मक
और डरावने सपने देखती हैँ
महावारी की वजह से
शरीर के तापमान मेँ आया
अंतर सपनो की जड़ है।

शोधदल की प्रमुख डाँक्टर
जेन्नी पार्कर का कहना है कि
माहवारी से महिलाएं
ज्यादा आक्रमक सपने
देखती हैँ। गर्भ के दौरान भी
सपनोँ के विषय मेँ बदलाव
आता है क्योँकि शरीर मेँ
हार्मोन का स्तर बढ़ जाता
है। साधारण महिलाएं भी
पुरूषोँ के मुकाबले अधिक
डरावने सपने देखती हैँ।


सपनोँ का मतलब :-



किसी का पीछा करना
:-
समस्या का सामना करने
से बचना, यह आपके
व्यक्तित्व को भी दिखाता है।


गिरना
:- खुद को पराजित
महसुस करना, यह व्यक्ति
के हारने की प्रवृति को भी
दिखाता है।

मंगलवार, 13 सितंबर 2011

जीभ से जाने अपने स्वास्थ्य के बारे मेँ


जब भी आप डाँक्टर के
पास जाते हैँ, तो वह टाँर्च
की मदद से आपकी जीभ
जरूर चेक करता है। कुछ
लोगोँ को भले ही यह
अजीब लगता हो, लेकिन
सच्चाई यह है कि इस तरह
से बड़ी-बड़ी बीमारियाँ
पकड़ मेँ आ जाती हैँ।
दरअसल, जीभ मेँ होने वाले
बदलाव कई बीमारियोँ को
समय पर पकड़ने मेँ मदद
करते हैँ। जाहिर है, इस
तरह ये बीमारियाँ गंभीर
रूप लेने से बच जाती हैँ।


छाले होना
:- जीभ पर छोटे व दर्द करने
वाले छाले एक आम
समस्या है । इनकी वजह
स्ट्रेस, टेँशन, और हाँर्मोनल
बदलाव हो सकती है ।
हालांकि ये किसी खास
बीमारी के लक्षण नहीँ होते
और कुछ ही दिनोँ मेँ ठीक
हो जाते हैँ । वहीँ , कुछ
खास तरह के छाले बाँडी मेँ
एलर्जी रिएक्शन, वायरस
इंफेक्शन और इम्यून
डिसऑर्डर की ओर इशारा
करतेँ हैँ और जीभ की एक
साइड पर दर्द करने वाली
ग्रोथ हो रही हो, तो इसे
फौरन डाँक्टर को दिखाएं।
यह कैँसर का लक्षण हो
सकता है।


रंग बदलना
:- स्मूथ, हल्की पीली और
सपाट जीभ बाँडी मेँ
आयरन की कमी बताती है,
जबकि सपाट लाल जीभ
डाइट मेँ गड़बड़ की ओर
इशारा करती है। अगर
जीभ का कलर स्ट्राँबेरी के
कलर का हो गया है, तो
इसका मतलब है कि आपको
स्कारलेट फीवर है। जीभ
पर सफेद पैचेज फीवर,
डिहाइड्रेशन, सायफिलिस
या स्मोक करने वालोँ मेँ
ल्यूकोप्लेकिया के लक्षण हो
सकते हैं।

> जीभ के सूजने और लाल
होने की स्थिति को
ग्लोसाइटिस कहते हैँ,
जिसकी वजह बैक्टीरिया
या वायरल इंफेक्शन हो
सकती है।
यह इंफेक्शन मुँह की पूरी
सफाई न रखने, जीभ मेँ
छेद करवाने या मसालोँ,
अल्कोहल और तंबाकू के
सेवन की वजह से होता है।


बाल महसूस होना
:- बुखार से उठने
के बाद, लंबे समय तक
एंटीबाँयोटिक का प्रयोग
करने या परऑक्साइड
वाला माउथवाँश इस्तेमाल
की वजह से जीभ का
टेक्सचर बालोँ वाला
महसूस हो सकता है ।
हालांकि यह कोई घबराने
वाली बात नहीँ है, लेकिन
इससे फंगल इंफेक्शन के
होने का डर रहता है।

> वैसे जीभ की साइड पर उगने वाली बालोँ जैसी
ग्रोथ को हेयरी
ल्यूकोप्लेकिया कहते हैँ। इसे
अक्सर एड्स के मरीजोँ मेँ
देखा गया है।


साइज बदलना
:- कई बार जीभ का साइज
बढ़ जाता है। इस स्थिति को
मेडिकल टर्म्स मेँ मैक्रो-
ग्लोसिया के नाम से जानते
हैँ। यह थायराँयड व हार्मोन
से जुड़ी गड़बड़ियोँ का एक
लक्षण है। हालांकि इस
बीमारी को दवाइयोँ की
सहायता से कंट्रोल किया
जा सकता है।


जीभ का सूखना
:- आमतौर पर नम रहने
वाली जीभ पर सूखापन
महसूस होना डिहाइड्रेशन
व सलाइवरी ग्लैँड के
डिसऑर्डर की पहचान है।
इसके लिए आपको तुरंत
डाँक्टर की मदद लेनी
चाहिए। अगर आपको
अपनी जीभ पर इनमेँ से
कोई भी लक्षण नजर आते
हैँ, तो डाँक्टर को अप्रोच
करने मेँ देर न करेँ। सही
समय पर पकड़े गए लक्षण
और शुरू किया गया
ट्रीटमेँट कई हेल्थ प्राँब्लम्स को दूर कर सकता है।

 
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