शुक्रवार, 10 जनवरी 2014

अनार में सेहत का राज

एक अनार सौ बीमार वाली कहावत आपने सुनी ही होगी। मीठा अनार तीनों दोषों का शमन करने वाला, तृप्तिकारक, वीर्यवर्धक, हल्का, कसैले रसवाला, बुद्धि तथा बलदायक एवं प्यास, जलन, ज्वर, हृदयरोग, कण्ठरोग, मुख की दुर्गन्ध तथा कमजोरी को दूर करने वाला है।

खटमिट्ठा अनार अग्निवर्धक, रूचिकारक, थोड़ासा पित्तकारक व हल्का होता है। पेट के कीड़ों का नाश करने व हृदय को बल देने के लिए अनार बहुत उपयोगी है। इसका रस पित्तशामक है। इससे उल्टी बंद होती है। अनार पित्तप्रकोप, अरूचि, अतिसार, पेचिश, खांसी, नेत्रदाह, छाती का दाह व व्याकुलता दूर करता है।

सिर दर्द: गर्मियों में सिरदर्द हो, लू लग जाये, आँखें लाल-लाल हो जायें तब अनार का शरबत गुणकारी सिद्ध होता है। इसका रस स्वरयंत्र, फेफड़ों, हृदय, यकृत, आमाशय तथा आँतों के रोगों में लाभप्रद है। अनार खाने से शरीर में एक विशेष प्रकार की चेतना सी आती है।

पित्तरोग: ताजे अनार के दानों का रस निकालकर उसमें मिश्री डालकर पीने से हर प्रकार का पित्तरोग शांत होता है।

अरुचि रोग: अनार के रस में सेंधा नमक व शहद मिलाकर लेने से अरूचि मिटती है।

खाँसी: अनार की सूखी छाल आधा तोला बारीक कूटकर, छानकर उसमें थोड़ा सा कपूर मिलायें। यह चूर्ण दिन में दो बार पानी के साथ मिलाकर पीने से भयंकर कष्टदायक खांसी मिटती है।

अर्श या बवासीर: अनार के छिलके का चूर्ण नागकेशर के साथ मिलाकर देने से अर्श (बवासीर) का रक्तस्राव बंद होता है।

पेट के कीड़ें: अनार का रस शरीर में शक्ति, स्फूर्ति तथा स्निग्धता लाता है। बच्चों के पेट में कीड़े हों तो उन्हें नियमित रूप से सुबह-शाम 2-3 चम्मच अनार का रस पिलाने से कीड़े नष्ट हो जाते हैं। अनार का छिलका मुँह में डालकर चूसने से खाँसी में लाभ होता है।

बुधवार, 8 जनवरी 2014

सर्दियों में थकान का ज्यादा होना

थकान के लक्षण आप ऊर्जा की कमी महसूस करते हैं। अक्सर आलस और उत्साह की कमी पाते हैं। हमेशा उनींदा महसूस करते हैं। आपकी ध्यान केंद्रित करने की क्षमता कम हो जाती है। निर्णय लेने में कठिनाई होती है। कई बार अवसादग्रस्त महसूस करते हैं।

आयरन की कमी बढ़ाती है थकान : थकान का सबसे सामान्य चिकित्सकीय कारण है आयरन की कमी यानी एनीमिया। यह 20 में से एक पुरुष और मेनोपॉज के स्तर को पहुंच चुकी महिलाओं में होता है, लेकिन यह समस्या उन महिलाओं में 25-30 प्रतिशत होती है, जिन्हें पीरियड्स होते हैं। गर्भवती महिलाएं भी आमतौर पर एनीमिया से पीडित होती हैं। अगर महिलाएं प्रतिदिन 18 मिलीग्राम और पुरुष 8 मिलीग्राम से कम आयरन ले रहे हैं तो उनके शरीर को ठीक तरह से काम करने के लिए संघर्ष करना पड़ेगा। मांस और हरी पत्तेदार सब्जियां आयरन के अच्छे स्त्रोत हैं। आयरन हीमोग्लोबीन के निर्माण के लिए जरूरी है। हीमोग्लोबिन का स्तर सीधे तौर पर हमारी ऊर्जा के स्तर को प्रभावित करता है, क्योंकि इसकी कमी से अंगों को आॅक्सीजन कम मिलती है। पुरुषों के लिए हीमोग्लोबिन का स्तर 14-18 ग्राम/डीएल और महिलाओं में इसकी मात्रा 12-16ग्राम/डीएल होनी चाहिए। कितने कारगर हैं

सप्लीमेंट्स : कई लोग थकान महसूस होने पर एनर्जी ड्रिंक का सहारा लेते हैं, लेकिन एनर्जी ड्रिंक शुगर और कैफीन से भरपूर होते हैं। ये कुछ समय के लिए तो ऊर्जा दे देते हैं, लेकिन यह आपके लिए कई समस्याएं भी पैदा कर सकते हैं। ज्यादा कैफीन के सेवन से ब्लड प्रेशर हाई हो सकता है, जबकि शुगर वजन बढ़ाने का काम करती है। मल्टीविटामिन की गोलियां बिना डॉक्टर की सलाह के न लें।

क्यों होती है थकान : सर्दियों में दिन छोटे और रातें बड़ी हो जाती हैं और आपके जागने और सोने का चक्र गड़बड़ा जाता है, जिससे थकान होती है। सर्दियों में सूरज की रोशनी कम होने का अर्थ है कि आपका मस्तिष्क ज्यादा मात्रा में मेलैटोनिन हार्मोन बना रहा है, जो आपको उनींदा बनाता है, क्योंकि इस स्लीप हार्मोन का सीधा संबंध रोशनी और अंधेरे से होता है। सर्दियों में जब सूरज जल्दी छिप जाता है तो हमारा मस्तिष्क मेलैटोनिन बनाने लगता है, जिससे सांझ ढलते ही हमारा सोने का मन करता है और हम जल्दी बिस्तर में जाना चाहते हैं। सर्दियों में हमारी शारीरिक सक्रियता भी थोड़ी कम हो जाती है। हम थका-थका सा महसूस करते हैं। कभी-कभी यह थकावट और आलस गंभीर विंटर डिप्रेशन का संकेत भी हो सकती है। इसे डॉक्टरी भाषा में सीजनल अफेक्टिव डिसआर्डर कहते हैं। हर पंद्रह में से 1 व्यक्ति विंटर डिप्रेशन का शिकार होता है। यही वजह है कि सर्दियों में आत्महत्या के मामले बाकी मौसमों के मुकाबले बढ़ जाते हैं। इसी कारण इसे आत्महत्याओं का मौसम भी कहा जाता है। इससे बचने के लिए जितना ज्यादा से ज्यादा हो सके, प्राकृतिक प्रकाश में रहे। विटामिन डी की कमी से भी थकावट होती है। सर्दियों में अपने भोजन में सोया उत्पादों, दुग्ध उत्पादों, अंडे, मांस और चिकन की मात्रा बढ़ा दें।

मंगलवार, 7 जनवरी 2014

कुछ सामान्य लक्षणों से जाने कैंसर का संकेत

कुछ ऐसे सामान्य लक्षण हो सकते हैं जिन्हें आप रोजमर्रा की थकान समझ कर छोड़ सकती हैं। यदि आप भी इनमें से कोई लक्षण निरंतर तौर पर खुद में देखती हैं तो जांच अवश्य करवाएं...

बहुत अधिक वजन घटना

यदि डाइटिंग करने या कसरत के कारण आपका वजन कम हो रहा है तो यह ठीक बात नहीं है परंतु यदि आप जीवन शैली संबंधी आदतों में कोई परिवर्तन देखे बिना अपना वजन घटता हुआ देख रही हैं तो यह कई प्रकार के कैंसर से जुड़ा हो सकता है जिनमें पैंक्रियास या पेट का कैंसर शामिल हैं।

बुखार

लगातार बना रहने वाला बुखार लिम्फोमा या ल्यूकीमिया जैसे ब्लड कैंसर का प्रारंभिक संकेत हो सकता है। यदि आपको लगातार बुखार रहता है तो आपको डाक्टर से अवश्य मिलना चाहिए। यहां तक कि यदि यह कैंसर नहीं है तो भी गंभीरता से इसका उपचार होना चाहिए।

दर्द

हालांकि दर्द के कई कारण हो सकते हैं परंतु लगातार रहने वाले सिरदर्द दिमाग के कैंसर के प्रारंभिक संकेत हो सकते हैं। साथ ही कमर दर्द, रैक्टल या ओवेरियन कैंसर का संकेत हो सकता है। यदि आपको लगातार दर्द रहता हो तो अपने डाक्टर से सलाह अवश्य लें।

खांसी

यदि आप को खांसी रहती है जो जाती नहीं है तो यह फेफड़ों के या श्वास नली के कैंसर का संकेत हो सकती है। हो सकता है कि यह मौसम से संबंधित एलर्जी हो फिर भी सुनिश्चित करने के लिए जांच जरूरी है।

शरीर में मांस की गांठें

यदि आपकी त्वचा में मांस की गांठें हैं तो डर्मैटोलॉजिस्टस से संपर्क करें। यदि ये गांठें आपके वक्ष, अंडकोष या लिम्फ नोड्स के नजदीक हैं तो विशेष ध्यान दें। बांहों, टांगों या शरीर के अन्य हिस्सों में यदि गांठें दिखें तो डरें नहीं। ये नुक्सानरहित सिबेशियस सिस्ट्स हो सकती हैं।

असामान्य रक्तस्राव

असामान्य रक्तस्राव कई प्रकार के कैंसर का संकेत हो सकता है। खांसते वक्त खून आने का मतलब है फेफड़ों का कैंसर, मल में खून आने का अर्थ है कोलन या रैक्टर कैंसर, पेशाब में खून आने का अर्थ है ब्लैडर कैंसर तथा योनि में से लगातार रक्तस्राव का संबंध सर्वाइकल कैंसर से हो सकता है। यदि आपके निप्पल से खून निकलता हो तो यह छाती का कैंसर है।

थकान

लगातार रहने वाली थकान जो आराम करने से भी दूर न होती हो वह भी कैंसर का एक संकेत हो सकती है।

सोमवार, 6 जनवरी 2014

हाथों की त्वचा का रंग भी सेहत के बारे में कुछ बताता है


हैल्थ और पर्सनैलिटी का आईना होते हैं हाथ, इनमें हुनर
ही नहीं, स्वास्थ्य के भी राज हैं। पहले वैद्य एवं हकीम
रोगी की आंखों, हाथ, नाखून और त्वचा की रंगत और शरीर के
तापमान से ही रोग का पता लगा लेते थे, आज भले ही नई
तकनीकें इस क्षेत्र में आ गई हैं परंतु पुरानी तकनीक से हम
रोग की दस्तक को पहले ही पहचान कर उसका उपचार
करा सकते हैं।
आप भी अपने ही नहीं बल्कि दूसरों के हाथों पर भी नजर रख
उनके स्वास्थ्य के बारे में काफी हद तक जान सकती हैं
ताकि समय रहते आप उसका उपचार भी ढूंढ सकें।
हालांकि किसी भी रोग की सही जानकारी के लिए आज कई
प्रकार के टैस्ट कराए जाते हैं पर वे निशानियां आज
भी नहीं बदलीं और स्वास्थ्य में होने वाले बदलावों को सहज
ही बता जाती हैं।

नाखून

शनिवार, 14 दिसंबर 2013

जोड़ों के दर्द से राहत पाने के लिए धूप जरूरी

गठिया के रोगियों के लिए सावधान होने का समय आ गया है। सर्दियों की शुरुआत से ही खान-पान से लेकर शारीरिक सक्रियता का ध्यान रखना दर्द में राहत देगा।
खान-पान नियंत्रित करें
सबसे पहले तो सर्दियों में खान-पान पर विशेष ध्यान देना होगा। ज्यादा खाने-पिने की आदतों को नियंत्रित करना होगा। यदि किसी व्यक्ति को गठिया है और वह ज्यादा खाए तो उसका वजन और बढ़ सकता है।वजन से पैरों पर और जोर बढ़ेगा तो दर्द और बढ़ेगा,इसलिए वजन कम करने पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। खाने में वे चीजें कम लें,जो वजन बढ़ाने वाली होती हैं। मद्यपान एवं धूम्रपान से परहेज करना चाहिए।
शारीरिक गतिविधियां जरी रखें
औषधियों के साथ-साथ जोड़ों के व्यायाम,शारीरिक क्रियाशीलता,मांसपेशियों के व्यायाम या फिजियोथेरेपी गठिया के उपचार में भूमिका निभाते हैं। यह दर्द और जकड़न को कम करने में सहायक सिद्ध होते हैं।व्यायाम से जोड़ों में लचीलापन,गतिशीलता एवं मांसपेशियों को शक्ति मिलती है। तीन प्रकार के व्यायाम करने चाहिए। ● गतिशीलता को बढ़ाने वाले व्यायाम,जिनमें जोड़ों की सामान्य स्थिति बनी रहे एवं उनमें जड़ता उत्पन्न न हो पाए। ● मांसपेशियों को शक्ति प्रदान करने वाले व्यायाम। ● एरोबिक व्यायाम,जिनसे दिल में रक्त संचालन तेज हो और वजन भी नियंत्रित रहे।वजन जितना कम होगा,रोग उतनी जल्दी ठीक होगा।
धूप सेकें
सर्दियों में एक तो धूप कम आती है,दूसरे लोग बाहर भी कम निकलते हैं। गठिया से ग्रसित और इससे बचने के लिए लोगों को ज्यादा से ज्यादा धूप सेंकनी चाहिए।धूप से विटामिन-डी मिलता है,जिसकी कमी से प्रतिरोधक तंत्र कमजोर होने लगता है।विटामिन-डी हड्डियों के लिए खुराक का कार्य करता है।
सकारात्मक सोच रखें
कई बार सर्दियों में लोग उदास रहने लगते हैं। रोगियों की तकलीफ बढ़ने लगती है तो वे निराश व नकारात्मक हो जाते हैं। मौसम से उत्पन्न उदासी से बचने के लिए परिजनों के साथ समय बिताएं और विश्राम एवं श्रम में संतुलन बनाएं।

शनिवार, 10 अगस्त 2013

दिल के लिए गाएं

आप बेशक बेसुरा गाते हों,फिर भी गाएं। खासकर दोस्तों के साथ मिलकर गाना जरुरी है क्योंकि गाने और गुनगुनाने का सीधा संबंध आपके दिल की धडकनों से है।

स्वीडेन के डॉक्टर्स की एक रिसर्च बताती है कि गाने का सेहत के साथ गहरा रिश्ता है। इस रिसर्च टीम में वैज्ञानिक और संगीतकार दोनों ही शामिल थे। इससे यह पता चला कि सिंगर्स के सांस लेने की क्रिया और दिल की धडकन में किस तरह का संयोजन होता है। सांस लेने की क्रिया से दिल धडकनों और ब्लड प्रेशर पर खासा असर पड़ता है,इस तथ्य से हम अनजान नहीं हैं। इसीलिए प्राणायाम जैसे ब्रीदिंग एक्सरसाइज़ चलन में आए।

लेकिन दूसरे अध्ययन से यह बात सामने आई कि ब्रीदिंग रेट और हार्ट रेट के बदलाव एक-दुसरे से जुड़े हुए हैं। इतना ही नहीं,वहां 'रेस्परेट' नाम की एक मशीन भी बनाई गई है,जो स्लो ब्रीदिंग के तरीके बताती है। स्लो ब्रीदिंग के मायने प्रति मिनट दस बार से भी कम सांस लेना है। हाई ब्लडप्रेशर का उपचार करने के लिए भी यह प्रकिया फायदेमंद बताई गई है।

अब बात सिंगिंग की है तो इसका परिणाम देखने के लिए स्वीडेन में एक सिंगिंग सेसन के बाद हार्ट रेट में होने वाले बदलाव को नोटिस किया गया। यह भी देखा गया कि गाने के बाद ओक्सीटोसिन का लेवल बढ़ जाता है, जिससे अच्छी सेहत को बढ़ावा मिलता है।

इसकी वजह यह है कि 'रेगुलेटेड ब्रीदिंग' गाने की जरूरत है। ब्रीदिंग और हार्ट रेट ऑटोनोमस नर्वस सिस्टम से जुड़े होते हैं। हालांकि, अकेले गाने की तुलना में ग्रुप में गाने के फायदे ज्यादा हैं।

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

दमा रोग को बेकाबू न होने दें

दमा यानि ब्रोंकिअल अस्थमा एक तकलीफ़ देह श्वांस रोग है,जो किसी भी उम्र,लिंग और आर्थिक वर्ग के व्यक्ति को हो सकता है।यह एक व्यापक रोग है और इसके कई रूप हैं। पर मूलत: या इसमें सांस की नलियाँ बार-बार कुछ समय के लिए सिकुड़ जाती हैं।तब बीमार को सांस लेते और छोड़ते समय तकलीफ़ होती है, छाती में सांय-सांय होती है, भीतर बलगम जमा हुआ मालूम होता और दम फूलने लगता है।दवाओं और आराम करने से प्राय: राहत तो मिल जाती है, लेकिन रोग कभी भी फिर से हो जाता है।

अभी हाल में न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में इसी रोग के बावत एक जापानी अध्ययन की रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। इसके मुताबिक बीमारी के लक्षण रोग की गम्भीरता का पूरा पता नहीं देते और इसलिये मरीज इस भुलावे में रह जाता है कि उसका रोग नियन्त्रण में है, जबकि भीतर श्वांस प्रक्रिया में आये व्यवधान के फलस्वरूप शरीर की पूरी जैव-रसायनिकी अस्त-व्यस्त हो जाती है। शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाने पर भी उसके स्पष्ट लक्षण नहीं दिखाई देते।

इसलिए अध्ययनकर्ताओं का यह मानना है कि स्थिति का आंकलन रोगी की रक्त जांच से ही किया जा सकता है। जांच करके यह पता लगाया जा सकता है कि रक्त में ऑक्सीजन और कार्बन-डाई-ऑक्साइड किस मात्रा में है और रक्त की पी.एच.ठीक तो है। गंभीर वर्ग के रोगियों के लिये यह जानकारी काफी महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकती है।

यों तो रोग पर नजर रखने के लिए रोगी अपने डॉक्टर की सलाह से 'पीक एक्सपीरेटरी फ्लो रेट'मापने वाला साधारण सा उपकरण भी प्रयोग कर सकते हैं। सांस छोड़ते समय कोई कितनी ज्यादा हवा बिना अड़चन के बाहर छोड़ सकता है इसका आंकलन इस छोटे से उपकरण द्वारा घर पर ही संभव है। इससे यह पता रहता है कि रोग कितना काबू में है। गौरतलब बात यह है कि दमा रोग में ज्यादा तकलीफ सांस बाहर छोड़ते समय ही होती है।

गुरुवार, 28 जून 2012

कंप्यूटर से आंखोँ का बचाव

आज के हाईटेक जमाने मेँ कंप्यूटर के बिना काम करने की कल्पना भी नहीँ की जा सकती है। जब हर रोज सात-आठ घंटे कंप्यूटर पर काम करना हो तो आंखोँ पर इसका प्रभाव तो पड़ता ही है। कंप्यूटर से होने वाली इन तकलीफोँ को कंप्यूटर विजन सिँड्रोम का नाम दिया गया है। समय रहते इसके लक्षणोँ को समझकर बचाव के लिए उपाय भी किये जा सकते हैँ।

कंप्यूटर विजन सिंड्रोम के लक्षण

1. आंख और सिर मेँ भारीपन।
2. धुंधला दिखना।
3. आंख मेँ जलन या खुजली।
4. आंखोँ का सूखा रहना।
5. पास का देखने मेँ दिक्कत।
6. रंगोँ को पहचानने मेँ मुश्किल।
7. आंखोँ के अलावा गर्दन, कमर और कंधोँ मेँ दर्द होना।
ये सभी कंप्यूटर विजन के लक्षण हैँ।

आंखोँ मेँ तकलीफ के डर से कंप्यूटर को तो नहीँ छोड़ा जा सकता है, क्योँ ना कुछ बुरी आदतोँ को छोड़ दिया जाए और फायदे वाले टिप्स आजमा लेँ।

इन उपायोँ से बचायेँ आंखेँ

1. कंप्यूटर पर काम करते समय आंख की पलकोँ को थोड़ी-थोड़ी देर बाद झपकाते रहना चाहिए। सामान्य अवस्था मेँ व्यक्ति एक मिनट मेँ 20 से 22 बार पलकोँ को झपकाता है। कंप्यूटर पर काम करते समय लोग एक मिनट मेँ सिर्फ 7 से 8 बार ही पलकोँ को झपका पातेँ हैँ। पलकोँ को जल्दी-जल्दी झपकाने से पलकेँ आंख की पुतली (कोर्निया और कन्जंक्टाइवा) के ऊपर आंसू फैलाने का काम करती हैँ और आंख को सूखा होने से बचाती हैँ।

2. कंप्यूटर पर काम करते समय कंप्यूटर वाले चश्मेँ का इस्तेमाल करेँ तो ज्यादा बेहतर होगा। इस तरह के चश्मेँ मेँ ट्राइपोकल लेंस और प्रोगेसिव लेँस के मुकाबले बीच के देखनेँ का क्षेत्र बड़ा होता है।

3. कंप्यूटर खिड़की के सामने नहीँ होना चाहिए। स्क्रीन की रोशनी और कमरे की रोशनी की मात्रा बराबर होनी चाहिए।

4. कंप्यूटर स्क्रीन आंख के स्तर से 15 डिग्री नीचे की तरफ होनी चाहिए। स्क्रीन और आंख के बीच लगभग 25 इंच की दूरी होनी चाहिए।
5. कंप्यूटर पर काम करते समय हर आधा घंटे बाद 15-20 सेकैँड के लिए किसी दूर की वस्तु को देखना चाहिए। अच्छा होगा कि हर घंटे एक छोटा ब्रेक लिया जाए।

6. दूध, हरी सब्जी, मौसमी फलोँ का प्रचूर मात्रा मेँ सेवन भी बचाव का एक उपाय है।

बुधवार, 11 जनवरी 2012

फैटी लिवर(जिगर)


बीमारी का स्वरूप

जैसा कि मर्ज के नाम से ही स्पष्ट है कि इस मर्ज मेँ वसा का एक खास प्रकार ट्राईग्लिसराइड्स का स्तर लिवर(जिगर) मेँ बढ़ जाता है। वसा का यह बढ़ा हुआ स्तर आंशिक तौर पर लिवर के स्वस्थ ऊतकोँ(टिश्यूज) को बदल देता है। इस स्थिति मेँ लिवर का आकार थोड़ा बढ़ जाता है और यह कुछ भारी भी हो जाता है और यह पीलापन लिए दिखता है। इस मर्ज की शिकायत गर्भावस्था के कारण, अत्यधिक मात्रा मेँ शराब का सेवन या फिर एल्कोहलिक सिरोसिस नामक मर्ज के कारण संभव है।

एक शोध के द्वारा यह निष्कर्ष निकला है कि हाईग्लाईसीमिक फूड्स के अंतर्गत व्हाइट ब्रेड, चावल, शुगर और ब्रेकफास्ट मेँ प्रयोग किए जाने वाले 'रेडी टू ईट सीरियल्स' जैसे फास्ट फूड्स मैगी, बर्गर आदि को शामिल किया जा सकता है। ये खाए जाने वाले पदार्थ शरीर मेँ ब्लड शुगर के स्तर को तेजी से बढ़ाते हैँ। इस कारण कालांतर मेँ फैटी लिवर की शिकायत संभव है।
वहीँ लो ग्लाईसीमिक भोज्य पदार्थ जैसे फल, सब्जियां, बीन्स, फलियां और साबुत अनाज आदि ब्लड शुगर के स्तर को धीरे-धीरे कम करते हैँ। फैटी लिवर मेँ लो ग्लाईसीमिक आहार ग्रहण करेँ।

कारगर सुझाव

* फाइबर युक्त भोज्य पदार्थोँ को आहार मेँ स्थान देँ। फलोँ, सब्जियोँ, बीन्स और साबुत अनाजोँ मेँ फाइबर पर्याप्त मात्रा मेँ पाया जाता है।
* सब्जियोँ के ताजा रस मेँ एंटीऑक्सीडेँट्स पर्याप्त मात्रा मेँ पाये जाते हैँ। स्वच्छता से तैयार किय गए जूस लिवर के लिए किसी टॉनिक से कम नहीँ हैँ।
* आपके आहार मेँ हरे रंग के भोज्य पदार्थ कि प्रचुरता होना लिवर की सेहत के लिए अच्छा है।
* घी के स्थान पर स्वास्थ्यकर तेलोँ जैसे जैतून , कैनोला, राइस ब्रान(चावल की भूसी से निकला) तेल का प्रयोग करेँ।
* यह बात सुनिश्चित करेँ कि आप विभिन्न भोज्य पदार्थोँ से जितनी कैलोरी ग्रहण करते हैँ, उसमेँ 30 फीसदी भाग से अधिक वसा न हो। इस क्रम मेँ डाइटीशियन की मदद लेँ।
*प्रोसेस्ड फूड्स की तुलना मेँ जहाँ तक संभव हो, आर्गेनिक(कार्बनिक) भोज्य पदार्थोँ को ही ग्रहण करेँ। ऐसा इसलिए क्योँकि आर्गेनिक भोज्य पदार्थोँ मेँ ही कहीँ अधिक पोषक तत्व पाये जाते हैँ, क्योँकि इनकी खेती मेँ रासायनिक खादोँ का प्रयोग नहीँ होता। आर्गेनिक भोज्य पदार्थ लिवर की सेहत के लिए अच्छे माने जाते हैँ। वहीँ प्रोसेस्ड फूड्स को सुरक्षित बनाए रखने के लिए विभिन्न केमिकल्स और परिरक्षकोँ(प्रीजर्वेँटिव्स) का प्रयोग किया जाता है। इसलिए प्रोसेस्ड फूड्स को पचाने मेँ जिगर पर काफी जोर पड़ता है।

शुक्रवार, 18 नवंबर 2011

दिल के मरीजोँ के लिए लहसुन का तेल फायदेमंद


एक शोध के अनुसार लहसुन का तेल हार्ट पेशेँट के लिए बेहद फायदेमंद है। खास तौर पर हार्ट अटैक के बाद पेशेँट को ठीक रखने के लिए।
लहसुन के तेल मेँ मौजूद डायलिल ट्राइ सल्फाइड नामक पदार्थ कार्डियक सर्जरी के दौरान हार्ट को मजबूती देता है। शोध के अनुसार डायलिल ट्राई सल्फाइड नामक पदार्थ हाइड्रोजन सल्फाइड के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है।

रविवार, 6 नवंबर 2011

सियाटिका के दर्द को देँ ऐसे शिकस्त


सियाटिका नर्व (नाड़ी) शरीर की सबसे लंबी नर्व होती है। यह नर्व कमर की हड्डी से गुजरकर जांघ के पिछले भाग से होती हुई पैरोँ के पिछले हिस्से मेँ जाती है। जब दर्द इसके रास्ते से होकर गुजरता है, तब ही यह सियाटिका का दर्द कहलाता है। होलिस्टिक मेडिसिन के तहत इस मर्ज का स्थायी समाधान संभव है।


लक्षण


* कमर के निचले हिस्से मेँ दर्द के साथ जाँघ व टांग के पिछले हिस्से मेँ दर्द।

* पैरोँ मेँ सुन्नपन के साथ मांसपेशियोँ मेँ कमजोरी का अनुभव।

* पंजोँ मेँ सुन्नपन व झनझनाहट।

बचाव

* प्रतिदिन सामान्य व्यायाम करेँ।

* वजन नियंत्रण मेँ रखेँ।

* पौष्टिक आहार ग्रहण करेँ।

* रीढ़ की हड्डी को चलने-फिरने और उठते-बैठते समय सीधा रखेँ।

* भारी वजन न उठाएं।

होलिस्टिक समाधान

सामान्य रूप से यदि मरीज की उम्र बहुत अधिक नहीँ है, तो इस बीमारी को ठीक करना आसान होता है। मर्ज के शुरूआती दौर मेँ गर्म पैक, आराम और दर्दनाशक गोली का सेवन उपयोगी है।

डीप हीट थेरैपी

बीमारी पुरानी होने पर यह थेरैपी लाभप्रद है। इसके तहत गर्म पानी के प्रयोग से या अरंडी के तेल का गर्म पैक लगाने से मांसपेशियां शिथिल होती हैँ।

काइरोप्रैक्टिक चिकित्सा

मांसपेशियोँ के शिथिल होने पर व्यायाम करना जरूरी होता है। इससे विभिन्न स्थितियोँ मेँ मरीज का शरीर सुचारू रूप से गति करता है। इस प्रक्रिया से नर्व पर दबाव समाप्त हो जाता है और धीरे-धीरे दर्द जाता रहता है।

रीढ़ की कसरत

नर्व पर दबाव समाप्त होने पर रीढ़ की हड्डी के व्यायाम मांसपेशियोँ को मजबूत बनाते हैँ। इससे बीमारी के पुनः होने की संभावना समाप्त हो जाती है।

पोषक तत्व

आहार मेँ विटामिन सी, ई, बीटा कैरोटिन (हरी सब्जियोँ व फलोँ मेँ) और कैल्शियम का सेवन उपयोगी है। कैल्शियम दूध मेँ पर्याप्त मात्रा मेँ पाया जाता है। इसी तरह कान्ड्राइटिन सल्फेट व ग्लूकोसामीन (इन पोषक तत्वोँ की गोलियाँ दवा की दुकानोँ पर उपलब्ध हैँ) का सेवन भी लाभप्रद है। वहीँ आइसोफ्लेवान (सोयाबीन मेँ मिलता है) और विटामिन बी12 (बन्दगोभी व ऐलोवेरा मेँ) आदि का पर्याप्त मात्रा मेँ प्रयोग करने से ऊतकोँ (टिश्यूज) का पुःन निर्माण होता है।

परिणाम

मरीज की उम्र यदि बहुत अधिक नहीँ है और उसकी डिस्क कई हिस्सोँ मेँ टूटी नहीँ है, तो उपर्युक्त चिकित्सा औसतन 2 से 3 महिने मेँ आश्चर्यजनक परिणाम देती है।

शनिवार, 8 अक्टूबर 2011

तिमाही गर्भ निरोधक इंजैक्शन


प्रo तिमाही गर्भनिरोधक
इंजैक्शन क्या है?
उo तिमाही गर्भ निरोधक
इंजैक्शन अनचाहे गर्भ को
रोकने का एक उपाय है। यह
अनचाहे गर्भ को रोकने की
इच्छुक महिलाओँ के लिए
एक सरल और सुरक्षित
उपाय है। यह 99.796
प्रतिशत प्रभावशाली है।

प्रo यह सूई कहाँ लगाई
जाती है?
उo यह महिला के बांह या
कूल्हे मेँ लगाई जाती है।

प्रo यह गर्भ निरोधक
इंजैक्शन कब लगवाया जा
सकता है?
उo पहली सूई के बाद हर3
महिने मेँ एक सूई लगवाएं।
यह इंजैक्शन हर 3 महिने
मेँ लगवाना बहुत जरूरी है,
पर यदि किसी कारण से
इसे निर्धारित तारीख पर न
लगपा पाएं तो उस तारीख
से 2 हफ्ते पहले या 2 हफ्ते
बाद भी लगवा सकती हैँ।
यदि 2 हफ्ते से ज्यादा देर
हो जाए तो अगली सूई
लगवाने तक या तो यौन
संबंध न बनाएं अथवा यौन
संबंध मेँ सुरक्षित गर्भ
निरोधक अपनाएं।

प्रo महिलाओँ को कब
इसकी शुरूआत करनी
चाहिए?
उo जब आपको पक्का
यकीन हो कि आप गर्भवती
नहीँ हैँ। आमतौर पर
मासिक चक्र शुरू होने के
बाद अगले 7दिनोँ मेँ इसकी
शुरूआत की जा सकती है।
गर्भपात करवाने के या गर्भ-
पात होने के तुरन्त बाद भी
इसे लगवाया जा सकता है।
यदि आप स्तनपान करवा
रही हैँ तो प्रसव के 40 दिन
के बाद ये इंजैक्शन लगवा
सकती हैँ। स्तनपान न
करवाने वाली महिलाएं भी
प्रसूति के तुरंत बाद इंजैक्शन
लगवा सकती हैँ।

प्रo दूध पिलाने वाली माँएं
भी इसे ले सकती हैँ?
उo जी हाँ, दूध पिलाने
वाली माँओँ के लिए भी यह
सुरक्षित है।

प्रo तिमाही गर्भनिरोधक
इंजैक्शन कैसे असर करता
है?
उo तिमाही गर्भ निरोधक
के दौरान अण्डाशय मेँ अण्डा
विकसित नहीँ होता इसलिए
स्त्री गर्भवती नहीँ होती है
साथ ही गर्भाशय की अन्दरूनी
परत भी गददेदार नहीँ बनती ।

प्रo क्या इस इंजैक्शन
(डिपो प्रोवेरा 150 mg) का
प्रयोग बंद करने के मैँ माँ
बन सकती हूँ ?
उo बिल्कुल, इसका आपकी
गर्भधारण क्षमता पर कोई
असर नहीँ पड़ेगा। ज्यादातर
महिलाओँ मेँ आखिरी इंजैक्शन
के असर खत्म होने के 5-6
महिने बाद माहवारी शुरू
हो जाती है और गर्भधारण
क्षमता पहले जैसी हो जाती
है।

प्रo क्या तिमाही गर्भनिरोधक
इंजैक्शन के इस्तेमाल से
मेरे शरीर मेँ कोई बदलाव
आयेगा या मेरी सेहत पर
कोई असर पड़ेगा ?
उo इससे आपकी सेहत पर
कोई असर नहीँ पड़ेगा पर
आपके मासिक चक्र मेँ परी-
वर्तन जरूर आयेगा। कुछ
महिलाओँ को शुरूआती
महिनोँ मेँ अनियमित रक्त
स्त्राव और दाग-धब्बे आ
सकते हैँ फिर माहवारी धीरे
-धीरे बन्द हो जायेगी। जब
तक आप सूई लगवाती
रहेँगी यह असर रहेगा। जब
आप सूई लगवाना बंद कर
देँगी तो माहवारी पुन: शुरू
हो जाएगी।

प्रo महिलाओँ को गर्भ निरोधक
इंजैक्शन क्योँ चुनना चाहिए ?
उo क्योँकि एक सूई से आप
3 महिने के लिए निश्चिँत
हो सकती हैँ। इस इंजैक्शन
से माँ के दूध की मात्रा या
उसके गुणोँ पर कोई असर
नहीँ पड़ता बल्कि यह तो
मासिक रक्तस्त्राव मेँ कमी
लाकर एनीमिया को रोकने
मेँ सहायता करता है।

प्रo क्या यह इंजैक्शन सभी
महिलाओँ के लिए ठीक
रहेगा ?
उo यह इंजैक्शन अधिकतर
महिलाओँ को लगाया जाता
है लेकिन कुछ एक अवस्थाओँ
मेँ इसे नहीँ देते मसलन
लीवर रोग, हाई ब्लड प्रैशर
आदि। अगर आपको यह
इंजैक्शन लेना हो तो अपनी
स्त्री-रोग विशेषज्ञ से संपर्क
करेँ।

शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2011

क्योँ होता है सिर दर्द


सिर दर्द एक आम बीमारी
है। आमतौर से 90 प्रतिशत
व्यक्तियोँ मेँ एक बार सिर
दर्द होता ही है। 40 प्रतिशत
व्यक्तियोँ मेँ वर्ष मेँ एक बार
बहुत तेज सिर दर्द होता है।

*सिर दर्द के बहुत से कारण
हैँ, गम्भीर रोगोँ के प्रति भी
यह इशारा कर सकता है।

*सिर दर्द का आम कारण
टेँशन होता है जो आज के
युग मेँ आम बात है।

*सिर दर्द के रोगी का रक्त-
चाप अवश्य नाप लेना
चाहिए क्योँकि बढ़ा हुआ
रक्तचाप इस लक्षण का एक
आवश्यक कारण है।

*बार-बार जुकाम वाले
रोगी को जो सिर दर्द
साइनासाइटिस की वजह से
होता है। जो सूर्य के बढ़ते-
बढ़ते बढ़ता जाता है और
सूर्यास्त होते-होते घटने
लगता है। आगे झुकने पर
यह दर्द बढ़ जाता है।

*मस्तिष्क की झिल्लियोँ मेँ
सूजन(मेनिँगजाइटिस) सिर
दर्द का एक प्रमुख कारण है।
रोगी तेज रोशनी से बचने
का प्रयास करता है।

*ब्रेन ट्यूमर सिर दर्द का
खतरनाक कारण है, इसका
निदान सीoटीo स्केन से
होता है पर ये आवश्यक
नहीँ कि हर सिर दर्द के
मरीज का सीoटीo स्केन
करा लिया जाये।

*एक तरफा सिर दर्द
माइग्रेन का लक्षण है।

*सिर पर चोट लगने के
बाद सिर दर्द होना एक
आम बात है।

*किसी चीज की आदत को
एकदम से छोड़ना सिर दर्द
का कारण हो सकता है। जैसे
- धुम्रपान या शराब।

*तेज बुखार मेँ सिर दर्द हो
सकता है।

*नीँद का पूर्ण न होना सिर
दर्द का आम कारण है।

*आँखोँ का रोग जिसे
ग्लूकोमा कहते हैँ, मेँ सिर
दर्द होता है साथ मेँ उल्टी
होना पाया जाता है।

*यदि चश्मे की आवश्यकता
है और उसका उपयोग नहीँ
किया जाये तो सिर दर्द हो
सकता है।

*दाँतोँ की तकलीफ मेँ सिर
दर्द हो सकता है।

*सिर दर्द को साधारण रोग
ने समझकर चिकित्सक की
राय लेना आवश्यक है। दर्द
की दवाई से सिर दर्द घट
जायेगा पर जब तक मूल
कारण का पता न लग जाये
वह बार-बार होता रहेगा।

बुधवार, 5 अक्टूबर 2011

डायबिटिज वाले क्या खायेँ


आहार मेँ कुछ food
substance ऐसे होते हैँ
जिन्हेँ अवश्य शामिल करना
चाहिए जैसे- ओट्स,
सोयाबीन, हरी चाय, जौँ
तथा ईसबगोल।

ओट्स या ओटमील:-इसमेँ
एक विशिष्ट प्रकार का
फाइबर पाया जाता है जिसे
वीटा ग्लूकोज कहते हैँ। यह
घुलने वाला फाइबर होता है
और शरीर को बुरे
कोलेस्ट्रोल एलoडीoएलo
से लड़ने मेँ मदद करता है।
सबसे बड़ी बात तो यह है
कि यह केवल बुरे
कोलेस्ट्रोल को ही
कम करता है और अच्छा
कोलेस्ट्रोल एचoडीoएलo
शरीर मेँ बरकरार रहता है।
जिससे शरीर मेँ एलoडीo एलo और एचoडीoएलo
कोलेस्ट्रोल के बीच बेहतर
अनुपात रहता है।

सोयाबीन :- सोयाबीन
शरीर को हाइपरकोले-
स्ट्रोमिया से बचाता है और
शरीर मेँ बुरे कोलेस्ट्रोल
एलoडीoएलo को घटाता है।

हरी चाय :- कई शोधोँ से
यह सिद्व हुआ है कि काली
या हरी चाय पीने से शरीर
मेँ कोलेस्ट्रोल का जमाव,
रक्तचाप आदि नियंत्रित
होते है। चाय मेँ फोलिक
एसिड होता है जो कि इंसान
को कैँसर तथा हृदय रोग से
बचाता है ।

जौँ :- जौँ मेँ स्वास्थ्यवर्धक
प्रभाव पाए जाते हैँ। जौँ
शरीर मेँ से 15 प्रतिशत
तक बुरे कोलेस्ट्रोल को
निकाल सकता है। जौँ मेँ भी
बीटा ग्लूकोज पाया जाता है
जो कि घुलने वाला फाबर
है।

ईसबगोल :- ईसबगोल भी
बेहद फायदेमंद होता है।
यह भी शरीर का कोलेस्ट्रोल
कम करता है। पेट ठीक
रखने मेँ भी मददगार होता है।

गुरुवार, 29 सितंबर 2011

रत्नोँ के लाभ


आजकल गली-चौराहे व
चौपाटियोँ पर जगह-जगह
रत्नोँ की दुकानेँ खुल गई हैँ।
विक्रेता रत्न के बारे मेँ जानेँ
या ना जानेँ, पर इस फायदे
मंद धंधे को अपनाने से पीछे
नहीँ हटते।

वे जानते हैँ कि आजकल
रातोँ-रात लखपति बनने के
सपने आदमी देखता है।
रोगमुक्त जीवन जीना
चाहता है। फिर इन रत्नोँ
की जानकारी चाशनीदार
भाषा मेँ रूपान्तरित कर
खरीदार के समक्ष पेश करने
मात्र से लाभ ही लाभ है तो
क्या बुरा है।
आपको बता देँ कि कोई भी
रत्न अच्छे जानकार से पूछे
बगैर धारण न करेँ। बिना
सोचे-समझे पहननेँ पर
संभवतः आपको हानि ही
हाथ लगेगी।
आइए आपको रत्नोँ की
संक्षिप्त जानकारी देँ :-

1. माणिक्य :- यह सिँह
राशि का रत्न है जो सूर्य के
दोषोँ को दूर करता है।इसके
अलावा यह सिर, हृदय, पेट
व नेत्रोँ पर प्रभाव डालता
है। इससे ब्लड प्रैशर,
मधुमेह जैसी बीमारियोँ मेँ
लाभ पहुँचाता है। इसके
अलावा पीठ मेँ उत्पन्न पीड़ा , वातविकार, कर्ण रोग मेँ
प्रभाव दिखाता है।

2. नीलम :- यह कुंभ व
मकर राशि का रत्न है। यह
शनि पीड़ा को शांत करता
है। इस रत्न को धारण करने
से दाम्पत्य सुख मेँ वृद्वि,
टयुमर, घुटनोँ का दर्द, जोड़ोँ
का दर्द, घाव मेँ सड़न, श्वास
व अंडकोष की बीमारी जैसे
कष्ट दूर होते हैँ।

3. मोती :- यह चंद्र रत्न है।
अतः कर्क राशि वालोँ के
लिए फायदेमंद है। यह
त्वचा रोग, पेट संबंधी
बीमारी, श्वास रोग,
मस्तिष्क रोग मेँ लाभकारी है।

4. पुखराज :- यह धनु राशि
का रत्न है। गुरू के दोष को
शांत करने के लिए इसे
धारण किया जाता है। यह
दांपत्य जीवन को सुखमय
एवं कुछ बीमारियोँ मेँ जैसे
गर्भाशय, सैक्स अंगोँ,
किडनी, लीवर, घुटने,
कोहनी के दर्द, गैस, मुत्र
विकार, हड्डियोँ का दर्द दूर
कर लाभ पहुँचाता है। इसके
अलावा गुस्से को शांत करने
की क्षमता भी है इसमेँ।

5. गोमेद :- जो यूरेनस के
कारण कष्टमय जीवन जी
रहे हैँ, वे इसे धारण कर
सकते हैँ। इसके अलावा 4
अंक वाल (जिनका जन्मांक
4 हो) इसे धारण कर
मस्तिष्क, श्वास, मूत्र,यौनांग,
पेट, हृदय तथा तंत्रिकाओँ
संबन्धी समस्या से बच
सकते हैँ।

6. पन्ना :- यह कन्या राशि
वालोँ का शुभ रत्न है। इसके
अलावा मूलांक 5 वाले भी
इसे धारण कर सकते हैँ।
यह रत्न बुध का प्रतीक है।
यह दिमागी विकृति, कर्ण
रोग तथा दृष्टि दोष दूर
करने मेँ सहायक है।

7. हीरा :- मूलांक 6 एवं
तुला राशि वालोँ के लिए
यह रत्न उपयोगी है। शुक्र
ग्रह दोष नाशक रत्न है।
इससे रत्न चिकित्सक शुक्र
दोष (शुक्राणुओँ की कमी),
नशापान तथा चर्मरोग दूर
करते हैँ।

8. लहसुनिया :- यह मीन
राशि एवं मुलांक 7 वालोँ
का मुख्य रत्न है। इससे केतु
के प्रभाव मेँ शांति मिलती है।
इसे धारण कर आप चमड़ी के रोग, पाचन विकार, रक्त
विकार, आमाशय एवं दृष्टि
विकार से बच सकते हैँ।
यह शरीर मेँ स्फूर्ति प्रदान
करने वाला रत्न है।

9. मूंगा :- यह वृश्चिक एवं
मूलांक 9 वालोँ के लिए
अति उत्तम रत्न है। मंगल
का प्रतीक यह रत्न घाव,
छाले, हड्डी व जोड़ोँ के रोग,
आँतविकार, रक्त दोष,
पाचक अंगोँ के दोष तथा
टयूमर, कैँसर जैसी घातक
बीमारियोँ को दूर करता है।

रत्न धारण करने से पूर्व
किसी अच्छे रत्न चिकित्सक
से मिलेँ, तभी उसे धारण
करेँ वरना सड़क पर कई
अज्ञानी अपना-अपना
बखान करते मिल जाते हैँ,
जो आपके लिए घातक सिद्व
हो सकते हैँ।

सोमवार, 26 सितंबर 2011

क्योँ आता है जल्दी बुढ़ापा?


आज भी मॉर्डन जीवन शैली
मेँ जल्दी बुढ़ापा आने का
मतलब है कि शारीरिक
और मानसिक तौर पर
जल्दी कमजोर हो जाना।
दरअसल बढ़ती उम्र हमेँ
जीवन के आखिरी पड़ाव
बुढ़ापा या वृद्वावस्था तक
पहुँचाता है।
वृद्वावस्था वह अवस्था
होती है जब शरीर की सुनने
, देखने, बोलने, सूंघने, जीभ
, त्वचा, मानसिक क्षमता का
काम करने की योग्यता
क्षीण होने लगती है लेकिन
मॉर्डन जमाने मेँ यह
अवस्था जल्द ही इंसान को
अपने वश मेँ करने लगती
है।


जल्दी वृद्वावस्था आने के
कारण
:-

> भागती-दौड़ती जीवन शैली,

> गलत खाने की आदतेँ,

> शराब व तंबाकू का सेवन।


रोकथाम के उपाय
:-
> रोजमर्रा जीवन मेँ योगा
व आयुर्वेद का उपयोग करना।

> स्वादोँ 'मीठा, खट्टा, कड़वा, तीखा, नमकीन' का
संतुलित सेवन करना।

> कैलोरी के सेवन व खपत
मेँ सामंजस्य।

> नपा-तुला आहार लेना।

> तेल से शरीर की मालिश
करना ताकि शरीर मेँ लोच
रहे।

> नियमित व्यायाम, ध्यान
तथा सकारात्मक सोच।

> पढ़ना, संगीत सुनना व
हर वह काम करना जिससे
आपको खुशी मिले।


प्राकृतिक नियम
:-

> शुरूआती उम्र मेँ ही प्राणायाम करने से फेफड़े
मजबूत बनते हैँ।

> हंसना लम्बे जीवन के
लिए बहुत कारगर है।

> बालोँ को गर्म पानी व धूप
से बचना चाहिए ताकि
बाल जल्दी सफेद न होँ।

> सीजन के फल व
सब्जियोँ का सेवन अवश्य करेँ।
उदाहरण :- सर्दियोँ मेँ
आंवला, गर्मी मेँ नीँबू व
लंच के दौरान बटरमिल्क
लेना।

> जीवन मेँ पौष्टिक आहार
का बेहद महत्व है। निम्न
रसायनोँ का इस्तेमाल
करना चाहिए। बाल्यावस्था
मेँ- बाला व अतिबाला,
बीच की उम्र मेँ-अर्जुन,
युवावस्था मेँ -आमलकी,
सभी उम्र के लिए -तुलसी।

> हमारा शरीर 30 वर्षो की
उम्र तक शत-प्रतिशत
उर्जावान हो जाता है।
55 वर्ष की उम्र मेँ हृदय की
क्षमता 20 प्रतिशत तक कम
हो जाती है। 55 की उम्र मेँ
गुर्दोँ की क्षमता 25 प्रतिशत
घट जाती है। इसलिए
पौष्टिक आहार व व्यायाम
से हम उम्र को मात दे सकते हैँ।

 
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