शुक्रवार, 20 जून 2014

ज्यादा उम्र तक जीने राज !

मनोवैज्ञानिक भी कहते हैं कि लंबी उम्र का राज आपकी लाइफस्टाइल में नहीं, आपके विचारों में छिपा है. अगर आपके विचार सकारात्मक होंगे, आप जिन्दगी के प्रति बेहतर दृष्टिकोण रखेंगे तो निश्चित तौर पर यह आपकी आयु सीमा को बढ़ाएगा. आप अपने विचारों से स्वस्थ रहेंगे तो इसका प्रभाव आपके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ेगा. फिर इस बात से क्या फर्क पड़ता है कि आज सुबह आप मॉर्निंग वॉक पर गए थे या नहीं, हेल्दी खाना खाया था नहीं, व्यायाम किया था नहीं, कहीं शराब ज्यादा तो नहीं पी ली, सिगरेट का सेवन ज्यादा तो नहीं हो गया….!!!

मंगलवार, 17 जून 2014

केवल चार घंटे का जीवन है दिल का।

दिल को सिर्फ 4 घंटे तक ही सुरक्षित रख सकते हैं। इसे जितनी जल्दी मरीज के शरीर में ट्रांसप्लांट कर दिया जाए,उतने ही ऑपरेशन के सफल होने की संभावना बढ़ जाती है।

रविवार, 2 मार्च 2014

अब खून की जाँच से ही पता चल सकेगा कैंसर (ट्यूमर) का।

न्यूयॉर्क/ भारतीय मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक रघु कल्लुरी द्वारा किए गए शोध में पता चला है कि खून की सामान्य जांच से ही अग्न्याशय कैंसर के बारे में पता लगाया जा सकता है।

यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास के एमडी एंडरसन डिपार्टमेंट ऑफ कैंसर बायोलॉजी में प्राफेसर कल्लुरी ने बताया। इस शोध से डॉक्टरों को खून की जांच से ही कैंसर का पता लगाने और उसके इलाज में मदद मिलेगी।

हमारा मानना है कि खून के नमूने से लिए गए एक्सोसोम (छोटे कण) डीएनए के विश्लेषण से शरीर में किसी भी स्थान पर कैंसर ट्यूमर के बारे में पता लगाया जा सकता है। इससे शरीर में होने वाले बदलाव के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए ट्यूमर के सैंपल की जरूरत नहीं पड़ेगी।

इससे प्रारंभिक चरण में कैंसर का पता लगाने की हमारी क्षमता में वृद्धि होगी और इस बीमारी के प्रभावी इलाज की संभावना बढ़ जाएगी।' उनके मुताबिक वर्तमान समय में खून की वैसी कोई जांच उपलब्ध नहीं है जिसके आधार पर कैंसर संबंधी डीएनए विकृति का पता लगाया जा सके। यह अध्ययन जर्नल ऑफ बायोलॉजिकल केमिस्ट्री में प्रकाशित हुआ है।

वहीं अमेरिका में केंटुकी स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ लूसविले के शोधकर्ताओं ने भी खून की जांच से सर्वाइकल कैंसर का पता लगाने संबंधी खोज की बात कही है। उनका कहना है कि खून की जांच से यह भी पता लगाया जा सकता है कि सर्वाइकल कैंसर किस चरण में है। खबर कैसी लगी

शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2014

अंडे की जर्दी खाइये और बच्चे पैदा करने की क्षमता बढाइये।

अंडे के फायदों को लेकर तो आपने बहुत कुछ सुना होगा लेकिन इसकी पीली जर्दी का यह फायदा बच्चे की चाहत रखने वाले प्रत्येक दम्पति को जानना चाहिए। है

न्यूयॉर्क पोस्ट में प्रकाशित खबर के अनुसार अंडे का पीला भाग और सोया तेल के सेवन से तीन बार आईवीएफ ट्रीटमेंट में नाकाम हो चुकी दंपत्ति को बच्चा हुआ है। ब्रिटिश दंपत्ति मार्क और सुजैन हार्पर ने कई बार गर्भपात और तीन बार आईवीएफ ट्रीटमेंट में असफलता के बाद डॉक्टरी परामर्श पर अंडे की जर्दी और सोया तेल के मिश्रण का सेवन शुरू किया और इससे उन्हें गर्भ धारण में सफलता भी मिली।

ब्रिटेन के केयर फर्टिलिटी नोटिंघम के फर्टिलिटी विशेषज्ञों की मानें तो इन दोनों में मौजूद फैटी एसिड की वजह से सुजैन को गर्भ धारण करने में आसानी मिली और वह इस तकनीक से प्रजनन करने वाली पहली महिला हैं। विशेषज्ञ अब इस विधि से गर्भधारण की प्रक्रिया और इससे संबंधित प्रभावों पर शोध कर रहे हैं पर इतना निश्चित है कि अंडे का सेवन फर्टिलिटी के लिहाज से बेहतर विकल्प हो सकता है।

सोमवार, 27 जनवरी 2014

अब बदल पाएंगे अपनी आँखों के रंग को।

रंगीन कॉन्टेक्ट लेंस युवा पीढ़ी के बीच काफी लोकप्रिय हो गए हैं। 25 वर्षीय फैशन मॉडल पुनीत शर्मा, जब स्कूल में पढ़ रहे थे, तभी उन्हें नीली आंखों के प्रति आकर्षण हो गया था। शर्मा कहते हैं, जब मैं 15 साल का था, तभी से कॉन्टेक्ट लेंस का इस्तेमाल करता आ रहा हूं, लेकिन बाद में मेरी आंखों में संक्रमण होना शुरू हो गया।

मेरे माता- पिता भी मुझे कॉन्टेक्ट लेंस से छुटकारा दिलाना चाहते थे, क्योंकि मेरी आंखों की समस्याओं के कारण वे बार- बार नेत्ररोग विशेषज्ञ के पास जाकर थक चुके थे। पुनीत ने मुझसे मुलाकात की। मैंने कृत्रिम आईरिस इंप्लांटेशन किया। सर्जरी के लिए उपयुक्त पाये जाने से पहले उन्हें कई प्रकार के परीक्षण कराने को कहा गया। प्रत्येक आंख की सर्जरी में 10 मिनट का समय लगा और और 6 से 7 घंटे तक स्वास्थ्य लाभ करने के बाद उन्हें अपनी पसंदीदा नीली आंखों के साथ घर जाने के लिए कह दिया गया।

प्राकृतिक रंग का निर्धारण:- किसी भी व्यक्ति की आंखों का प्राकृतिक रंग मेलानिन की मात्रा, रक्त वाहिकाओं के नेटवर्क और आंख में टिश्यूज की बनावट से निर्धारित होता है। सालों से नेत्र विशेषज्ञ ऐसे लोगों को जो अपनी आंखों का रंग बदलना चाहते हैं, उन्हें रंगीन कॉन्टेक्ट लेंस लगाने की सलाह देते रहे हैं, लेकिन अब कृत्रिम आईरिस इंप्लांटेशन सर्जरी के जरिये आंखों का रंग स्थायी रूप से बदला जा सकता है।

सजगता बरतना जरूरी:- कलर्ड या रंगीन कॉन्टेक्ट लेंस सिर्फ अलग-अलग रंग के साथ आंखों का रंग बदल देते हैं, लेकिन लंबे समय तक इन लेंसों के पहनने पर कॉर्निया (नेत्रगोलक की ऊपरी पर्त) में खुजली, कॉर्निया में संक्रमण या अल्सर, कन्जंक्टिवाइटिस और दृष्टि में कमी जैसी समस्याएं पैदा हो सकती हैं, लेकिन नेत्र विशेषज्ञ से परामर्श लेकर कॉन्टेक्ट लेंस के बारे में कुछ सजगताएं बरतकर काफी हद तक इन समस्याओं को दूर किया जा सकता है।

सर्जिकल प्रक्रिया:- डॉक्टर, प्राकृतिक आईरिस (आंख का वह भाग जिसमें रंग होता है और जो आपकी आंखों के प्राकृतिक रंग को निर्धारित करता है) पर कृत्रिम आईरिस का इंप्लांटेशन कर देते हैं। इस सर्जरी को सिर्फ प्रशिक्षित आई सर्जन ही अंजाम देते हैं।

(डॉ.शिबू वार्की आई सर्जन, नई दिल्ली)

शनिवार, 25 जनवरी 2014

सर्दियों में कंधे के दर्द में बरतें सावधानी

आजकल कंधे के दर्द की समस्या आम होती जा रही है। आखिर क्या कारण हैं कंधे में दर्द के, इससे जुड़े कौन से रोग हैं और क्या हैं इनके उपचार, बता रहे हैं मैक्स अस्पताल, पीतमपुरा, के आथरेपेडिक्स और ज्वॉइंट रिकंस्ट्रक्शन के प्रमुख डॉ. निश्चल चुघ

कंधे का दर्द एक बहुत ही आम शिकायत है। सर्दियों के दौरान तो यह अक्सर बुजुर्ग महिलाओं में देखने को मिलता है। भारत में कंधे के दर्द की घटनाएं लगभग 68 प्रतिशत लोगों में देखी जाती है।

दरअसल, हमारा कंधा तीन हड्डियों से बना है। ऊपरी बांह की हड्डी, कंधे की हड्डी और हंसली। ऊपरी बांह की हड्डी का शीर्ष कंधे के ब्लेड के एक गोल सॉकेट में फिट रहता है। यह सॉकेट ग्लेनोइड कहलाता है। मांसपेशियों और टेंडन्स का संयोजन बांह की हड्डी को कंधे के सॉकेट में केंद्रित रखता है। ये ऊतक रोटेटर कफ कहलाते हैं। वैसे तो कंधा खेल गतिविधियों और शारीरिक श्रम के दौरान आसानी से घायल हो जाता है, लेकिन ज्यादातर कंधे की समस्याओं का प्राथमिक स्त्रोत रोटेटर कफ में पाये जाने वाले आसपास के कोमल ऊतक का उम्र के कारण प्राकृतिक रूप से बिगड़ना है। रोटेटर कफ में तकलीफ की स्थिति 60 वर्ष से अधिक उम्र वालों में ज्यादा देखी जाती है। कंधे के अत्यधिक प्रयोग से उम्र की वजह से होने वाली गिरावट में तेजी आ सकती है।

कंधे के दर्द के मुख्य कारण:- फ्रोजन शोल्डर में ज्वॉइंट यानी जोड़ बहुत तंग और कड़ा हो जाता है, जिससे सरल क्रियाओं जैसे हाथ को ऊपर उठाने आदि में भी दिक्कत होने लगती है। अकड़न और तकलीफ रात में अधिक बढ़ जाती है। यह आमतौर पर अधिक उम्र की महिलाओं में व थायराइड और मधुमेह के रोगियों में पाया जाता है। इसके उपचार में दर्द निवारक दवाएं, हल्के-फुल्के स्ट्रेचिंग वाले व्यायाम आदि करने की सलाह दी जाती है। बाद में दवाओं की भी जरूरत पड़ती है। असल में पचास साल की उम्र के करीब 50 प्रतिशत लोगों के कंधे के एमआरआई स्कैन पर रोटेटर कफ के डिजनरेशन के प्रमाण देखे गए हैं। उम्र बढ़ने के साथ तकलीफ बढ़ती जाती है। आमतौर पर रोटेटर कफ के शिकार व्यक्ति को कंधे के ऊपर और बाहर की ओर की तिकोना पेशी पर दर्द महसूस होता है। कपड़े पहनने और तैयार होने में हाथ में दर्द होने लगता है। कंधा भी कमजोर लगने लगता है और कंधा हिलाने पर चटक की सी आवाज सुनाई देती है।

रोटेटर कफ रोग के उपचार :- इसका उपचार रोग की स्थिति पर निर्भर करता है। यदि इस रोग की शुरुआत है तो कंधे को आराम देने, हीट और कोल्ड थेरेपी, फिजियोथेरेपी, स्टेरॉयड के इंजेक्शन आदि से इलाज किया जाता है। यदि रोग बढ़ जाता है तो रोटेटर कफ को ठीक करने के लिए ऑर्थोस्कोपिक आदि की आवश्यकता पड़ती है। यह समस्या लम्बे समय तक रहती है तो गठिया का रूप भी ले सकती है।

गुरुवार, 23 जनवरी 2014

ऐसे पाएं सर्दियों में डैंड्रफ फ्री बाल

बालों में डैंड्रफ की समस्या सर्दियों में अधिक बढ़ जाती है क्योंकि सर्दियों में त्वचा और बालों में खुश्की ठंडी हवाओं के कारण ज्यादा आ जाती है। पानी कम पिया जाता है। गर्म पानी से स्नान और गर्म पेयों का सेवन भी बढ़ जाता है। इससे शरीर की त्वचा और बालों में खुश्की बढ़ जाती है और बाल भी अधिक गिरने लगते हैं।

गर्म पानी से सिर धोने के कारण सिर की त्वचा की तैल ग्रंथियां ज्यादा तेल निकालती हैं जिससे रूसी बनती है। अगर आप भी परेशान हैं इस समस्या से तो ध्यान दें कुछ बातों पर जिससे आपके बाल भी रह सकें डैंड्रफ फ्री।

● बालों में बार-बार कंघी करने से तैल ग्रंथियां सक्रिय हो जाती हैं और तेल अधिक निकलता है जिससे रूसी बनती है। बालों में कंघी दिन भर में तीन-चार बार ही करें।

● आपके बाल अधिक खुश्क हैं तो बालों में कुनकुने तेल की मालिश सप्ताह में एक बार अवश्य करें और गर्म पानी से भीगा तौलिया बालों पर लपेट लें। ठंडा होने पर माइल्ड शैम्पू से बाल धो लें।

● बालों को गंदा न रहने दें। सप्ताह में दो बार बाल अवश्य धोएं।

● रूसी होने पर नारियल तेल में एक नींबू का रस मिलाएं और सिर पर लगाएं। 30-40 मिनट पश्चात शैम्पू कर लें।

● जैतून के तेल में अदरक के रस की कुछ बूंदें मिलाएं और बालों की जड़ों में लगाएं। 30-40 मिनट पश्चात बाल शैम्पू से धो लें।

● धोने के बाद बालों की कंडीशनिंग अवश्य करें ताकि बालों की नमी खत्म न होने पाए।

● अगर आप बालों में मेहंदी लगाते हैं तो उसमें एक चम्मच तेल अवश्य मिलाएं।

● बालों को धोने से पहले बालों में ब्रश या कंघी अवश्य कर लें ताकि तैल ग्रंथियां सक्रिय हो सकें। इससे डैड सैल्स भी खत्म होते हैं। तैल ग्रंथियों से तेल बालों को धोते समय निकल जाता है।

● दो कप पानी में दो चम्मच थाइम डालकर उसे बालों की जड़ों में लगा लें। बाद में बाल शैम्पू कर लें। थाइम एंटीसैप्टिक होता है जो डैंड्रफ रोकने में मदद करता है। बालों की शाइनिंग बरकरार रखने के लिए

● बालों पर अच्छे हेयर प्रोडक्ट्स का प्रयोग करें।

● बालों में आयरनिंग और पमिंग करने से बचें।

● बालों की सप्ताह में एक बार तेल से मसाज अवश्य करें।

●कोई भी हेयर कलर लगाने से पूर्व उसकी पूरी जानकारी ले लें। आंख मूंदकर प्रयोग में न लाएं।

रविवार, 19 जनवरी 2014

पेट(stomach) के कैंसर को समय रहते ठीक कर सकते हैं।

पेट में किसी भी कोशिका (सेल) के असामान्य या अनियंत्रित तरीके से बढ़ने को सहज भाषा में पेट का कैंसर कहा जाता है। ये पेट की भीतरी परतों में फैलता हुआ धीरे-धीरे बाहरी परतों पर आता है। इसलिए शुरुआत में इस बीमारी का पता भी नहीं चल पाता है।

लक्षण:-

इस रोग की शुरुआती अवस्था में लक्षण स्पष्ट रूप से प्रकट नहीं होते। रोग के लक्षण काफी हद तक अल्सर या पेट के अन्य विकारों जैसे होते हैं, जिन्हें अक्सर लोग नजरअंदाज कर देते हैं। फिर भी इन लक्षणों के प्रकट होने पर सजग हो जाना चाहिए..

● अक्सर बदहजमी की शिकायत।

● पेट में अक्सर दर्द महसूस करना।

● भूख में कमी महसूस होना और खाए बगैर पेट भरा हुआ महसूस करना।

● काले रंग का मल निकलना।

● खाना खाने के बाद उल्टी होना।

● जी मिचलाना।

● वजन का कम होते जाना।

●पीड़ित व्यक्ति का रक्त की कमी (एनीमिया) से ग्रस्त होना।

इलाज:- अगर समय रहते इन समस्याओं में सुधार न हो रहा हो, तो पीड़ित लोगों को गैस्ट्रोएन्टेरोलॉजी विशेषज्ञ से परामर्श लेने में देर नहीं करना चाहिए। विशेषज्ञ डॉक्टर को अगर रोगी में पेट के कैंसर का अंदेशा होता है, तो डॉक्टर एंडोस्कोपी करते हैं जिससे रोगी में कैंसर होने की जानकारी मिल जाती है। कैंसर के पता चलने के बाद गैस्ट्रोएन्टेरोलॉजी विशेषज्ञ द्वारा एंडोस्कोपिक अल्ट्रासाउंड ( ई यू एस) के जरिये बीमारी की गहन जानकारी हासिल की जाती है। इसके बाद एंडोस्कोपिक सर्जन एंडोस्कोपिक विधि द्वारा पेट के कैंसरग्रस्त भाग को ऑपरेशन के बगैर निकाल देते हैं। इस प्रक्रिया में एंडोस्कोप और दूसरे उपकरणों की मदद से कैंसर टिश्यू या दूसरे असामान्य टिश्यू को पाचन तंत्र (डाइजेस्टिव सिस्टम) से हटा दिया जाता है।

एंडोस्कोपिक अल्ट्रासाउंड(ई यू एस)प्रक्रिया के फायदे

● इस प्रक्रिया के द्वारा ऑपरेशन के बगैर पेट के कैंसर के बारे में गहन जानकारी हासिल कर ईयूएस द्वारा ही इलाज किया जाता है।

● सीटी स्कैन और एक्स रे की तरह इसमें रेडिएशन नही होता।

● इससे रोगी सर्जरी करवाने से बच सकता है।

● रोगी को बहुत कम समय के लिए अस्पताल में रखा जाता है।

● यह तकनीक काफी सटीक और सुरक्षित है।

ई यू एस और पारंपरिक एंडोस्कोपी में फर्क:- पारंपरिक एंडोस्कोपी में डॉक्टर और सर्जन रोगी के पेट की सिर्फ सबसे अंदरूनी पर्त (लाइनिंग) को ही देख सकते हैं, लेकिन विशेषज्ञ डॉक्टरों को 'ई यू एस' पेट की सभी पर्र्ते देखने में मदद करता है। इसके अलावा पेट के बाहर के अंगों को भी अच्छी तरह से देखा जा सकता है। ईएसयू प्रक्रिया अल्ट्रासांउड और एंडोस्कोपी विधि का मेल है। रोग की डाइग्नोसिस कर इसी प्रक्रिया के जरिये रोग का सटीक व कारगर इलाज संभव है। इस प्रक्रिया की मदद से गैस्ट्रिक कैंसर का शुरुआती अवस्था में पता लगाकर कारगर इलाज संभव है।

(डॉ.रणधीर सूद सीनियर गैस्ट्रोइंटेरोलॉजिस्ट, मेदांता दि मेडिसिटी, गुड़गांव)

 
Powered by Blogger