बुधवार, 5 जनवरी 2011

भविष्य की बीमारियोँ की पहचान हुई आसान

अगर सब कुछ ठीक रहा तो वह दिन दूर नहीँ जब आपको होने वाली आनुवांशिक बीमारी का पता पहले ही चल जाएगा ।
ब्रिटेन के Scientists ने एक ऐसी नई तकनीक विकसित करने का दावा किया है,
जो किसी भी व्यक्ति के जीनोम को कुछ मिनटोँ मेँ ही तैयार कर सकता है । वह भी मौजूदा खर्चोँ की तुलना मेँ बेहद कम दामोँ पर ।


दरअसल शरीर का सारा राज जीन मेँ छुपा होता है । इसके भंडार को जीनोम कहते है । हमारा जीनोम 31 लाख अलग अलग फाँर्मूलोँ से बना है । इन्हीँ फाँर्मूलोँ मेँ छुपा है सारा राज ।

इंपीरियल काँलेज लंदन की एक टीम ने इस तकनीक का पेटेँट कराया है । इसके तहत आगामी दस साल मेँ बहुत ही तेजी से व्यावसायिक तौर पर DNA की सीक्वेँसिग की जा सकेगी ।
इससे साफ है कि इंसान के DNA को डिकोड करके यह बताया जा सकता है कि आगे वह कौन सी बीमारी का शिकार होगा ।
यह शोध नैनो जर्नल मेँ प्रकाशित हुआ है ।
शोधकर्ताओँ ने पाया कि प्रयोगशाला मेँ एक प्रक्रिया के माध्यम से ही पूरे जीनोम को सीक्वेँस किया जा सकेगा । वर्तमान मेँ इसे जटिल तरीके से छोटे छोटे टुकड़ोँ मेँ तोड़कर लंबे समय मेँ क्रमबद्ध किया जाता है ।
Scientists का कहना है कि तेजी से और कम खर्च पर होने वाले इस जीनोम सीक्वेँसिँग से लोगोँ के DNA के राज तुरंत खुल जाऐँगे और उनमेँ अल्जाइमर्स , डायबिटीज और कैंसर होने की आशंका का पता चल सकेगा ।
प्रमुख शोधकर्ता डाँ. जोशुआ ईडेल ने कहा , "वर्तमान तकनीक की तुलना मेँ यह युक्ति ज्यादा किफायती है ।"


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बुधवार, 29 दिसंबर 2010

बांझपन ( इनफर्टिलिटी ) की बंदिश अब नही रहेगी

फैलोपियन टयूब के विकारग्रस्त होने से निःसंतान होना एक व्यक्तिगत समस्या है , किन्तु जिसके जीवन मेँ यह होती वह मानसिक और सामाजिक रूप से टूट जाता है । एक अनुमान के अनुसार दस मेँ से एक दंपति इस समस्या से ग्रस्त हैं ।
इस प्रकार के बांझपन (इनफर्टिलिटी) के लिए मोटे तौर पर एक तिहाई मामलोँ मेँ महिलाएँ , एक तिहाई मेँ पुरूष और शेष मेँ दोनोँ जिम्मेदार हो सकते हैँ । जहाँ तक महिलाओँ की बात है तो उनमेँ बांझपन का एक प्रमुख कारण फैलोपियन टयूब की गड़बड़ी है । 25 से 30 प्रतिशत महिलाओँ मेँ बांझपन का कारण फैलोपियन टयूब का अवरूद्ध (ब्लाँक्ड) होना या उसमे किसी प्रकार का विकार का पाया जाना है ।
जहाँ तक गर्भ ठहरने की बात है तो महिलाओँ मेँ ओवरी ( Overy) से अंडाणु का उत्पादन होता है । ये अंडाणु फैलोपियन टयूब के रास्ते गर्भाशय मेँ जाते हैँ , जहाँ उनका मिलन शुक्राणुओँ से होता है और इसके बाद ही गर्भ ठहरता है ।


-: बिमारी का स्वरूप :-


जहाँ तक फैलोपियन टयूब मेँ खराबी की बात है तो इसका एक सिरा ओवरी के पास होता है तो दूसरा सिरा गर्भाशय मेँ खुलता है । ओवरी वाले सिरे पर उंगलियोँ के आकार की संरचनाएँ पायी जाती हैँ जो ओवरी से निकलने वाले अंडाणु को टयूब के अन्दर पहुँचाती हैँ । यहाँ पर टयूब की लाइनिँग महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है । इसी टयूब के अन्दर अंडाणु को पोषण मिलता है और ऐसा वातावरण भी मिलता है कि वह शुक्राणु से मिल सके । टयूब की लाइनिँग इसके अन्तिम सिरे पर होती है । यहीँ पर अंडा निषेचित (फर्टिलाइज्ड) होता है और पाँच दिनोँ मेँ यह निषेचित अण्डाणु गर्भाशय मेँ पहुचँकर उसकी लाइनिँग से जुड़कर बड़ा होने लगता है


-: विकार का कारण :-


फैलोपियन टयूब मेँ आने वाले विकार के कारणोँ मेँ संक्रमण जैसे - टी.बी , एंडोमेट्रियोसिस , क्लेमाइडिया हाइड्रोसाल्पिँक्स , एक्टोपिक प्रेग्नेन्सी आदि कारण हैँ ।


-: उपचार :-


* अगर फैलोपियन टयूब बच्चेदानी के पास से अवरूद्ध है , तो खराब टयूब के भाग को हटाकर अच्छी टयूब टयूब के भाग को बच्चेदानी से जोड़ा जाता है । इसके अलावा बच्चेदानी के रास्ते से ' कैनुला ' डालकर खोला जा सकता है ।

* टयूब के ओवरी के सिरे से बंद होने की स्थिति मेँ लैप्रोस्कोपी के द्धारा टयूब के ' फिब्रिया ' को खोला जा सकता है और आसपास मौजूद जाला और झिल्ली को साफ किया जा सकता है ।

* यदि टयूब मेँ पानी या रक्त भरा हो तो भी उसे साफ कर टयृब खोली जा सकती है ।

* अधिकतर मामलोँ मेँ ऐसा देखा गया है कि टयूब मेँ संक्रमण या जाले बनने के शुरूआती दौर मेँ ही लैप्रोस्कोपी के माध्यम से जाँच व उपचार कर 'IUI' तकनीक के द्धारा गर्भ ठहरने से संबंधित इलाज किया जाता है , किन्तु यदि संक्रमण पुराना है और उसके कारण टयूब का ज्यादातर भाग खराब हो तब 'IUI' तकनीक सफल नहीँ होती । ऐसे मे ' आई वी एफ ' या इक्सी (टेस्ट टयूब बेबी) तकनीक का प्रयोग कर गर्भ ठहराया जाता है ।


डाँ. मधु लूम्बा
वरिष्ठ स्त्री रोग
व इनफर्टिलिटी स्पेशलिस्ट

mrsanchar@yahoo.com



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बुधवार, 22 दिसंबर 2010

स्मरण शक्ति ( मैमोरी ) बढ़ाने के आसान उपाय

अक्सर लोगोँ की शिकायत होती है कि उन्हेँ बातेँ याद नहीँ रहती हैँ । मन एकाग्रचित नहीँ रहता । उम्र के साथ याददाश्त कमजोर होना आम बात है , लेकिन बच्चोँ और युवाओँ मेँ भी यह समस्या देखने को मिलती है । लेकिन अधिकतर समस्या रिकाल करने मेँ होती है क्योँकि हमारे दिमाग को रिकाल प्रोसेस के लिए जिन पोषक तत्वोँ (supplements) की आवश्यकता होती है उनकी हमारे शरीर मेँ कमी हो जाती है । अतः उन पोषक तत्वोँ की पूर्ति करने के लिए आप इन उपायोँ को आजमाँ सकते हैँ ।

* दिन मेँ कुछ मिनट के लिए सब कुछ भूल कर ध्यान लगाएँ ।

* रोज एक कप चुकंदर का जूस पियेँ । इससे मस्तिष्क संबंधी विकार दूर होते हैँ ।

* आठ - दस खजूर रोज दूध मेँ उबाल कर पीने से स्मरण शक्ति बढ़ती है ।

* सुबह खाली पेट आंवले का मुरब्बा खाएँ । कुछ देर तक ऊपर से पानी या दूध नहीँ पिएँ ।

* रोज दो चम्मच गेँहूँ के ज्वारे का रस पिएँ ।

* पीपल के पेड़ की छाल पीसकर इसे दो चम्मच शहद या पानी के साथ लेँ ।

* पिस्ता और तिल की बर्फी भी फायदा करती है ।

* खरबूज के छिले हुए बीज को घी मेँ भूनकर रख लेँ । रोजाना सुबह - शाम खाने के बाद थोड़े - थोड़े खाएँ ।



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गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

रीगेन हेयर ट्रीटमेँट द्धारा गिरते बालोँ पर लगाएँ विराम

युवकोँ मेँ या कम उम्र मेँ बालोँ का गिरना एक ऐसी समस्या है, जिसे वही समझ सकता है, जो इस समस्या से जूझ रहा हो।
बाल गिरने की समस्या के समाधान के लिए अनेक लोग कई नुस्खोँ को सुझाते हैँ, जो कि scientific नही होते, किँतु अब मान्यता प्राप्त आधुनिक "Regain hair treatment" शुरू हो चुका है।
इस ट्रीटमेँट के प्रचलन मेँ आने से बालोँ के गिरने की समस्या से पीड़ित लोगोँ को काफी राहत मिली है।




क्या है यह तकनीक



रीगेन हेयर ट्रीटमेँट प्रत्येक व्यक्ति के लिए व्यक्तिगत स्तर पर किया जाता है। इस ईलाज मेँ विभिन्न दवाओँ व अत्याधुनिक यंत्रोँ जैसे ' लेजर व डरमा रोलर' का प्रयोग किया जाता है। इस ट्रीटमेँट मेँ प्रयुक्त होने वाला लेजर विशेष रूप से विकसित किया गया है, जो केशोँ की जड़ोँ मेँ blood circulation को बढ़ा देता है। इस कारण बालोँ की जड़ेँ मजबूत होती हैँ और बाल मोटे (थिक) होते हैँ।
इसी तरह डरमा रोलर एक ऐसा विशेष उपकरण है, जिसके द्धारा दवाएँ सीधे बालोँ की जड़ोँ तक पहुँचकर लाभ देती हैँ। यह treatment अधिकतर लोगोँ को तीन महिने मेँ परिणाम प्रदान करता है।


इसे भी जानेँ


रीगेन हेयर ट्रीटमेँट करने से पहले किसी व्यक्ति के बालोँ के गिरने का कारण जानना आवश्यक है। इसके लिए रक्त और त्वचा की जाँचेँ करने के बाद उसी आधार पर इलाज किया जाता है।


बालोँ के गिरने का कारण


केश गिरने के हर व्यक्ति मेँ अलग अलग कारण हो सकते हैँ। जैसे :-
* आनुवांशिक ।
* फंगल इंफेक्शन ।
* कुछ बिमारियोँ और दवाईयोँ का दुष्प्रभाव ।
* तनावपूर्ण व नकारात्मक सोच ।
* हार्मोन्स का असंतुलन ।
* डाइबिटीज व एनीमिया की बीमारी ।


एन्ड्रोजीनिक एलोपेसिया


अधिकांश पुरूषोँ के गंजेपन की अवस्था को एन्ड्रोजेनिक एलोपेसिया कहते हैँ। इसका कारण DHT नामक हार्मोन होता है, जो टेस्टोस्टेराँन हार्मोन के विघटन से बनता है। ऐसा देखा गया है कि 35 साल की आयु तक अनेक पुरूषोँ के बाल गिरने लगते हैँ। इसी तरह 45% लोगोँ के बाल पतले (Thin) होने लगते हैँ, परन्तु जो अवस्था सबसे ज्यादा तकलीफ देती है वह यह है कि 25% पुरूषोँ मेँ 21 साल के आसपास गंजेपन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। जिससे उनका आत्मविश्वास कम हो जाता है।





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गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

कंप्यूटर से आँखोँ की सुरक्षा कैसे करेँ ?

कंप्यूटर पर ज्यादा समय तक काम करने से सबसे ज्यादा दबाव आँखोँ पर पड़ता है । इससे आँखोँ मेँ जलन, खुजली, थकान, पानी आना और लालपन जैसी समस्या आने लगती है । ऐसी तमाम समस्याओँ से बचने के लिए आँखोँ की देखभाल बहुत जरूरी है ।



आँखोँ का बचाव कैसे करेँ


* कंप्यूटर पर लगातार काम न करेँ । हर आधे घंटे बाद ब्रेक लेँ । लंबे समय तक टीबी न देखेँ ।

* आँखोँ के व्यायाम करेँ । गर्दन को बिना हिलाए आँखोँ को ऊपर नीचे, दाएं बाएं और गोल घुमाएं ।
* विटामिन ए युक्त आहार लेँ । दूध, मक्खन, पपीता, आम, सोयाबीन, खजूर, दालेँ, गाजर, टमाटर और हरी सब्जियाँ इसका अच्छा स्त्रोत हैँ ।
* आँखोँ मेँ जलन या थकान लगे तो बंद आँखोँ पर गुलाब जल, कटे आलू या खीरे के गोल टुकड़ेँ रखेँ ।
* रूई को हल्के गर्म दूध मेँ भिगोकर आँखोँ पर रखने से भी आराम मिलेगा ।
* भरपूर नीँद लेँ, ताकि आँखोँ को आराम मिल सके ।
* आँखोँ के लिए योग क्रियाएँ भी करेँ। जैसे :- सूर्य भेदन प्रणायाम, चक्षु व्यायाम, जल नेती, सूत नेती व त्राटक क्रियाएँ आदि । इनसेँ आँखोँ के दृष्टि दोष जैसे :- दूर का न दिखाई देना या पास का न दिखाई देना आदि ठीक हो जाते हैँ ।
* आँखोँ मेँ ज्यादा तकलीफ होने पर तुरन्त डाँक्टर की सलाह लेँ ।



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बुधवार, 24 नवंबर 2010

लो ब्लड प्रेशर का इलाज खुद करेँ

इस भागमभाग और तनाव भरी जिँदगी मेँ लोगोँ मेँ ब्लड प्रेशर (रक्तचाप) की समस्या पेश आ रही हैँ।
जितना घातक हाई ब्लड प्रेशर होता है उतना ही नुकसानदेह लो ब्लड प्रेशर।

इस रोग के कारण रोगी के शरीर मेँ खून सँचरण गति (Blood circulation) सामान्य से कम हो जाती है।

अर्थात लो ब्लड प्रेशर की स्थिति वह होती है कि जिसमेँ रक्तवाहिनियोँ मेँ खून का दबाव काफी कम हो जाता है। सामान्य रूप से 90/60 mmhg को लो ब्लड प्रेशर की स्थिति माना जाता है।

-: लो ब्लड प्रेशर के लक्षण :-

* थकान
* सुस्ती
* नीँद
* कमजोरी
* चक्कर
* सिर दर्द

-: लो ब्लड प्रेशर के कारण :-

* भोजन मेँ पोषक तत्वोँ की कमी
* कुपोषण
* खून की कमी
* पेट व आँतोँ , किडनी और ब्लैडर मेँ खून का कम पहुँचना
* निराशा का भाव लगातार बनेँ रहना
* ज्यादा गर्म वातावरण मेँ रहना

-: कैसे करेँ इलाज :-

* पिए चुकंदर का जूस- लो ब्लड प्रेशर को सामान्य बनाये रखने मेँ चुकंदर का जूस काफी कारगर होता है। रोजाना 100 - 100 ml. जूस सुबह - शाम पीना चाहिए। इससे हफ्ते भर मेँ आप अपने ब्लड प्रेशर मेँ सुधार पाएंगे।

* एक गिलास दूध मेँ चुटकी
भर असली केसर को घोट
कर पियेँ।

* जटामानसी , कपूर और दालचीनी को समान मात्रा मेँ लेकर मिश्रण बना लेँ और तीन - तीन ग्राम की मात्रा मेँ सुबह - शाम गर्म पानी से सेवन करेँ। कुछ ही दिन मेँ आपका ब्लड प्रेशर मेँ सुधार हो जायेगा।

-:भोजन मेँ पोषक तत्वोँ की मात्रा बढ़ाए :-

* प्रोटीन , विटामिन B और C लो ब्लड प्रेशर को ठीक रखने मेँ मददगार होते हैँ।
ये पोषक तत्व एड्रीनल ग्रन्थि से निकलने वाले हार्मोनो के स्त्राव मेँ वृद्धि कर लो ब्लड प्रेशर को तेजी से सामान्य करते हैँ।

* रात के समय देशी चने भिगोकर रख देँ तथा सुबह नाश्ते मेँ खाएँ।
* सोफ्ट और स्लो म्यूजिक को 10 - 15 मिनट तक सुनना चाहिए।
* फल और दूध का सेवन करेँ।

* लो ब्लड प्रेशर के मरीजो के लिए पैदल चलना , साईकिल चलाना और तैरना जैसी कसरतेँ फायदेमंद साबित होती है।


इन सब के अलावा सबसे जरूरी यह है कि व्यक्ति तनाव और काम की अधिकता से बचे।



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शनिवार, 13 नवंबर 2010

वायरल, डेगूँ तथा चिकुनगुनिया से बचने का तरीका तथा प्रभावी इलाज

चिकुनगुनिया, डेँगूँ तथा वायरल से सभी लोग भयभीत है क्योँकि यह बीमारियाँ बहुत ही खतरनाक रूप लेती जा रही है।चिकुनगुनिया का वायरस शरीर मेँ प्रवेश करने के बाद 2 से 4 दिन का समय फैलने मेँ लेता है।


लक्षण :-
 (1.) सर्दी के साथ तेज बुखार जिसमेँ शरीर का ताप 39 डिग्री सेo
         या 102.96 डिग्री फारेo रहता है।
 (2.) इसमेँ पहले धड़ और फिर हाथोँ तथा पैरोँ पर चकते बन जाते हैँ।
(3.) माँसपेशियोँ मेँ दर्द के साथ सूजन।
(4.) सिर दर्द, पेट मेँ दर्द, प्रकाश से भय लगना तथा आँखोँ मेँ दर्द होना।

इसमेँ बुखार 2 से 3 दिन तक रहता है और फिर अचानक समाप्त हो जाता है। इसके उपरान्त काफी लम्बे समय तक जोड़ोँ मेँ दर्द तथा सूजन रहती हैँ।
इस रोग से रोगी का पूर्णतः
ठीक होना उसकी उम्र पर निर्भर करता है।

जवान लोग= 5 से 15 दिन मेँ
मध्य आयु वर्ग= 1 से ढाई महिने मेँ
बुजुर्ग वर्ग = 4 से 8 महिने मेँ
पूर्णतः ठीक हो पाते है। गर्भवती महिलाओँ पर इसका दुष्प्रभाव नहीँ देखा गया है।

बचने का उपाय :- इन रोगोँ से हम अपना बचाव भी कर सकते है। जब भी मौसम मेँ बदलाव होने लगे तथा ताप(Temprature) मेँ उतार- चढ़ाव होने लगे तभी से हमेँ इन बीमारियोँ से बचने के लिए निम्न प्रकार से इस नुस्खे का प्रयोग रोजाना लगातार करते रहना चाहिए। यह निरापद है तथा इसका कोई साईड ईफेक्ट नहीँ हैँ।

(1.) अजवाइन = 5gm.

(2.) अश्वागंधा = 5gm.

(3.) गिलोय पाऊडर = 4gm.

(4.) शिलाजीत सत् = 2 से 3 बूंद

इनमेँ से अजवाइन तथा गिलोय पाऊडर को रोज सुबह खाली पेट गुनगुने पानी से निगल लेँ। इसके आधे घण्टे पश्चात् अश्वगंधा तथा शिलाजीत सत को गुनगुने दूध से लेँ।


रात को सोते समय एक कप दूध मेँ 3gm हल्दी को ऊबालकर उसमेँ चीनी डालकर पियेँ। हल्दी Antibiotic होती है तथा वायरल के कीटाणुओँ (Virus) का भी नाश करने मेँ मदद करती है।


सिर दर्द, बदन दर्द, गले की खराश, जोड़ोँ के दर्द तथा थोड़ी सी भी थकान होते ही आप तुरन्त पेनक्लिर लेने के आदी बन चुके हैँ । ये पेनक्लिर बहुत ही हानिकारक हैँ । शोधोँ के द्धारा सिद्ध हो चुका है कि ये पेनक्लिर तेजी से प्लेटलेटस की संख्या को कम कर देती हैँ। अतः उपरोक्त किसी भी प्रकार के दर्द होने पर निम्न नुस्खा प्रयोग करेँ।


10 लौँग+ 10 काली मिर्च +थोड़ी सी दालचीनी + 4 चम्मच चीनी
इन सबको एक गिलास पानी मेँ डालकर एक चौथाई गिलास पानी शेष बचने तक धीमी आँच पर ऊबालेँ । इस प्रकार यह सिरप जैसा बन जायेगा। अब इसमेँ से 4-4 चम्मच सिरप को आठ घण्टे के अन्तर से पीते रहेँ। गले मेँ दर्द तथा खराश होने पर इसमेँ शेष बची हुई लौँग काली मिर्च तथा दालचीनी को मूहँ मेँ रखकर चूसेँ। इससे आपको आधा घण्टे मेँ आराम मिल जायेगा।


Ayurvedic Treatment :-

(1.) महासुदर्शन घन वटी = 1 गोली
(2.) मृत्युन्जय रस = 1 गोली
(3.) महा ज्वरान्कुश रस = 1 गोली
(4.) आनन्द भैरव रस = 1 गोली


सभी चारोँ गोली की 1 dose को गुनगुने पानी के साथ लेँ। इसी तरह से इसे पहले 3 दिन चार चार घण्टे के अन्तर से लेँ। इसके बाद 4 दिन तक छः छः घण्टे अन्तर से लेँ।


Homeopathic Treatment
:-

(1.) Kalmegh Q
(2.) Tinospora cardifolia Q
(3.) Chirayata Q
(4.) Ceasalpeania bondusela Q
(5.) Azadirachta indica Q

इन सभी पाँचोँ दवाओँ का एक साथ मिलाकर मिक्सचर बना लेँ। अब इसमेँ से 1 चम्मच दवाई को 4 चम्मच पानी मेँ मिलाकर चार चार घण्टे के अन्तर से प्रयोग करेँ।

अगर Infection ज्यादा उग्र रूप मेँ हो तो उपरोक्त मिश्रण मेँ Echinesia Q की 10 बूंद मिलाकर प्रयोग करेँ।

ध्यान देँ :- यह दवाईयाँ बैक्टेरियल, वायरल तथा फँगल इंफैक्शन मेँ बराबर कारगर हैँ। इन दवाई का प्रयोग करते समय तक पानी का प्रयोग ज्यादा करेँ।



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सोमवार, 8 नवंबर 2010

सर्दी व जुकाम का नई दवा से अब स्थायी इलाज संभव।

ठंड का मौसम शुरू होते ही सर्दी व जुकाम की समस्या आम हो जाती हैँ, लेकिन क्या आपको पता है कि अब आप इससे खुद को बचा सकते हैँ। यह संभव हो सका हैँ नई दवा की खोज से।


Scientists ने शरीर मेँ मौजूद एक ऐसी महत्वपूर्ण system की खोज करने मेँ सफलता पाई है, जिससे Coldness & winter vomiting जैसी समस्याओँ से निपटने मेँ शरीर खुद सक्षम हो सकेगा। इस उल्लेखनीय खोज से जहाँ अब शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली(Immun System) को समझने मेँ मदद मिल सकेगी, वहीँ इसके माध्यम से सामान्य germs को भी दूर करने मेँ सहायता मिलेगी।
Specialists ने बताया कि अगले दशक तक ऐसे पाऊडर व गोलियाँ मार्केट मेँ मिल सकेँगी, जिनके द्धारा जुकाम के दौरान होने वाली कफ, छीँक व दर्द की समस्या को नोरोवायरस के द्धारा ठीक किया जा सकेगा।
Scientists के द्धारा खोजी गई इस महत्वपूर्ण दवा के द्धारा शरीर की प्राकृतिक प्रतिरक्षा क्षमता को cold virus से सुरक्षा के लिए और अधिक मजबूत किया जाता है, क्योँकि cold virus नाक, फेफड़े व पेट की कोशिकाओँ को न केवल संक्रमित करते हैँ बल्कि उसमेँ जगह बना लेते हैँ और वहीँ ब्रीडिँग भी करते हैँ। पहले ऐसा माना जाता था कि antibodies virus हमलोँ को झेल लेती हैँ और उन्हेँ कोशिकाओँ से बाहर फेँकने मेँ सक्षम होती हैँ। लेकिन ताजा रिपोर्ट मेँ पाया गया कि antibodies भी उसी वक्त कोशिकाओँ मेँ प्रवेश करती हैँ, जब virus कोशिकाओँ मेँ प्रवेश कर रहे होते हैँ और एक बार virus जब कोशिकाओँ के अन्दर प्रवेश कर जाते हैँ, उसके बाद ही antibodies श्रृंखलाबद्ध कोशिशोँ के जरिए virus को नष्ट करने मेँ सफल हो पाती हैँ।
रिपोर्ट कहती है कि कोशिकाओँ से virus को निकाल भगाने मेँ TRIM-21 नामक Protein कि महत्वपूर्ण भूमिका है, जिसकी सहायता से ही antibodies virus को निकालने मेँ सफल होती हैँ। TRIM-21 Protein, virus द्धारा क्षतिग्रस्त की गई कोशिकाओँ को शीघ्रता से दुरूस्त करने मेँ सक्षम है।
Scientists द्धारा बनाई गई नई दवा TREM-21 प्रोटीन लेवल मेँ वृद्धि करती है, जिससे Cold virus जैसे अन्य तमाम वायरसोँ के हमलोँ से भी कोशिकाओँ की रक्षा आसानी से की जा सकेगी।
शीर्ष शोधकर्ता डाँ. लियो जेम्स कहते हैँ कि TREM-21 की प्रचुरता से एंटीबाँडीज वैक्टीरिया से लड़ने मेँ शक्तिशाली हैँ, लेकिन बावजूद इसके कुछ एंटीवायरस दवाओँ का इस्तेमाल भी जरूरी है।



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